Thursday , March 28 2024

मंगोलपुरी से मंगलदोई तक हिंदुओ कहना ही होगा- 21 की दिशा ही नहीं, फिदायीन मोहम्मद आदिल डार भी था

नई दिल्‍ली। मुस्लिम बहुल मंगोलपुरी का K ब्लॉक। इसी ब्लॉक में रहते थे 26 साल के रिंकू शर्मा। उनके घर से कुछ ही दूर वह भीड़ भी रहती है, जिसने निर्ममता से उनको मार डाला। संकरी गलियों वाले इस ब्लॉक में इन दिनों काफी चहलकदमी है। हिंदू खौफ में हैं। दिल्ली पुलिस और अर्धसैनिक बल की भारी तैनाती है। मीडिया के कैमरे चमक रहे हैं। बजरंग दल, विहिप, बीजेपी नेता एक-एक कर परिवार का दुख बाँटने पहुँच रहे हैं। न्याय के लिए कैंडल मार्च निकल रहा है। पीड़ित परिवार के लिए कुछ लोग ऑनलाइन फंड जुटा रहे हैं।

मंगोलपुरी उसी दिल्ली में है, जहाँ 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली की आड़ में हिंसा हुई। लाल​ किले पर तिरंगे का अपमान हुआ। यह सब कुछ जिस कथित किसान आंदोलन की आड़ में हुआ उसके समर्थन में दिल्ली का मुख्यमंत्री अपना पूरा अमला उतार देता है। देश का मुख्य विपक्षी दल और उसका युवराज अपनी पूरी ताकत झोंक देता है।

रिंकू शर्मा के परिवार के आँसू पोंछने के वक्त आपकी दिल्ली का मुख्यमंत्री कहाँ हैं? कहाँ हैं उनका अमला? कहाँ है कॉन्ग्रेस? युवराज कहाँ हैं?

कॉन्ग्रेस के युवराज राहुल गाँधी (14 फरवरी 2021) रविवार को असम में थे। उसी असम में जहाँ मंगलदोई है। उसी असम में जहाँ अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं। मंगलदोई के दर्द पर जाने से पहले ये जानते हैं कि राहुल ने असम में कहा क्या?

असम के शिवसागर की रैली में उन्होंने कहा, “हमने ये गमछा पहना है इस पर लिखा है सीएए। इस पर हमने क्रॉस लगा रखा है मतलब चाहे जो हो जाए सीएए नहीं होगा! हम दो हमारे दो…। अच्छी तरह सुन लो, (सीएए) नहीं होगा, कभी नहीं होगा।” उनके एक और बयान पर गौर करिए। इसमें उन्होंने कहा, “असम के चाय बगान में काम करने वाले वर्कर रोजाना 167 रुपए की मजदूरी पाते हैं, जबकि गुजरात को चाय बगान मिलते हैं। हम वादा करते हैं कि असम के वर्कर को रोजाना 365 रुपए की मजदूरी देंगे। इसके लिए पैसा कहाँ से आएगा? यह गुजरात के व्यापारियों से आएगा।”

गुजरात से कॉन्ग्रेस और गाँधी परिवार की घृणा समझी जा सकती है। वहाँ के एक नेता ने गुजरात को ऐसे किले में तब्दील किया जो कॉन्ग्रेस के लिए अभेद्य हो गया। जिसने केंद्र से कॉन्ग्रेस को उखाड़ फेंका। जिसने कॉन्ग्रेस को उसके सबसे बुरे दौर में धकेल दिया। ऐसी दुर्गति में जिसकी उसने सपनों में भी कल्पना नहीं की होगी। जहाँ से बाहर निकलने के उसे ख्वाब भी नहीं आते होंगे। जिसकी आभा ऐसी है कि मंदिर-मंदिर प्रदक्षिणा करने, खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण बताने और हार्दिक-जिग्नेश जैसों को हवा देकर भी 2017 में वह गुजरात जीत नहीं पाई।

पर उसे हिंदुओं की प्रताड़ना इतनी क्यों भाती है? यह हम नहीं कह रहे। यह खुद राहुल ने आज शिवसागर की रैली में दोहराया है। उन्होंने जिस सीएए (CAA) को लागू नहीं होने देने का संकल्प दोहराया है, वह किनके लिए है? पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे इस्लामी मुल्कों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए। ये अल्पसंख्यक कौन हैं? ये हैं- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई।

सीएए-एनआरसी के नाम पर देश में हुई हिंसा और शाहीनबाग जैसे प्रयोग छिपे नहीं हैं। कथित किसान आंदोलन भी उन्हीं प्रयोगों का हिस्सा है। असम में राहुल के इस बात पर जोर देने की वजह स्पष्ट है।

असल में एनआरसी असम के मंगलदोई के जिक्र के बिना अधूरी है। अपनी किताब ‘द लास्ट बैटल आफ सरायघाट’ में रजत सेठी और शुभ्राष्ठा ने लिखा है कि इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनावों में असम में कॉन्ग्रेस को 14 में से 10 सीटें मिली। तीन सीटें जनता पार्टी को मिली थीं। इनमें एक सीट मंगलदोई की थी। इस सीट पर जनता पार्टी के हीरा लाल पटवारी (तिवारी) चुनाव जीते थे। मंगलदोई लोकसभा क्षेत्र में 5,60, 297 मतदाता थे। एक साल बाद हीरा लाल की मौत हो गई तो उपचुनाव कराया गया।


साभार: द लास्ट बैटल आफ सरायघाट

महज़ एक साल से थोड़े से अधिक समय में जब मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) अपडेट की गई तो मतदाताओं की संख्या 80,000 बढ़ गई! यानी रातों-रात 15% की एकाएक वृद्धि! इनमें से लगभग 70,000 मतदाताओं का मजहब इस्लाम था। तमाम नागरिक समूहों ने इसके विरुद्ध शिकायतें दर्ज कराईं। ऐसे मामलों की संख्या भी लगभग 70 हज़ार थी, इनमें से 26 हज़ार ही टिक पाए। यहीं से भारतीय राजनीति में ‘अवैध बांग्लादेशी’ शब्द आता है, जिसका बड़ा हिस्सा बांग्लादेशी मुस्लिमों का है।

इसी वर्ग को शिवसागर में राहुल गाँधी सीएए के जरिए संदेश दे रहे थे। इनके लिए वह बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) जैसे दलों को साधते हैं। ये वही अजमल हैं, जिनके लिए असम के मंत्री हिमांत ​बिस्व सरमा ने कहा है कि समाज सेवा के लिए वह कट्टपंथी संगठनों से पैसा लेते हैं। इसके जरिए वह एक ऐसे नेटवर्क को पोषित करते हैं जो असम की संस्कृति के लिए खतरनाक है।

उनका लक्ष्य स्पष्ट है। वे पूरे असम को मंगलदोई बनाना चाहते हैं। उनकी चिंता 26 साल का रिंकू शर्मा नहीं, 21 साल की दिशा रवि है। सोचना आपको है। शुतुरमुर्ग की तरह जमीन में सिर गाड़े बैठे रहेंगे या फिर जब वे टूलकिट की साझेदार दिशा रवि की गिरफ्तारी पर उम्र का हवाला देंगे तो आप उठकर खड़े होंगे, यह बताने को कि पुलवामा में आतंकी हमले को अंजाम देने वाला जैश का फिदायीन मोहम्मद आदिल डार भी 21 बरस का था।

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About I watch