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तुर्की में भारत ने ऐसा क्या किया कि पाकिस्तान की बढ़ गई चिंता

नई दिल्ली। तुर्की में आए भीषण भूकंप के बाद राहत और बचाव कार्य तेजी से जारी है जिसमें भारत एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. भारत ने तुर्की में ‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत 6 विमानों से राहत सामग्री, 30 बिस्तरों वाला मोबाइल अस्पताल, मेडिकल सामग्री सहित सभी जरूरी सामान पहुंचाए हैं. भारत की एनडीआरएफ की दो टीमें, जिसमें एक डॉग स्क्वॉड भी शामिल है, तुर्की में बचाव कार्य में जुटी है. तुर्की ने भारत की तरफ से दी जा रही मदद के लिए उसका आभार जताते हुए उसे अपना सच्चा दोस्त कहा है.

पाकिस्तानी विश्लेषकों का कहना है कि भारत इस आपदा को एक कूटनीतिक अवसर के तौर पर देख रहा है और मदद के जरिए अपने प्रति तुर्की के रुख को बदलने की कोशिश कर रहा है. भारत मदद के जरिए तुर्की को जता रहा है कि वो उसका हमदर्द है. पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक कमर चीमा का कहना है कि भारत तुर्की को भारी मात्रा में मदद भेज रहा है, यह पीएम मोदी की स्मार्ट रणनीति का हिस्सा है.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की मानवीय आपदा कहीं भी आ सकती है. दूसरी बात कि ऐसी आपदाएं, एक तरह से अवसर भी हैं. भारत मुस्लिम वर्ल्ड से अपनी नजदीकी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान और भारत की पिछली सरकारों ने जो गैप बनाया था कि तुर्की मुस्लिम देश है और इसे तो पाकिस्तान के साथ ही रहना है, अब वो गैप खत्म हो चुका है. हालात इस कदर बदले हैं कि पाकिस्तान मुस्लिम वर्ल्ड को कश्मीर की जो चूरन बेचता था, वो बंद हो गया है. इसका कारण यह है कि मुस्लिम देशों को अब कश्मीर में कोई दिलचस्पी रही नहीं, वो तो खुद इजरायल से अपने रिश्ते ठीक करने में लगे हैं. कश्मीर के मसले को वो भूल चुके हैं.’

तुर्की के लिए पाकिस्तान का दांव पड़ गया उलटा

पाकिस्तान को एक बड़ा कूटनीतिक झटका तब लगा जब तुर्की ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को भूकंप प्रभावित देश का दौरान करने से रोक दिया. दरअसल, सोमवार को तुर्की में आए भूकंप के बाद मंगलवार को पाकिस्तान के पीएम शरीफ ने तुर्की के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए तुर्की दौरे की घोषणा कर दी.

पाकिस्तान की सूचना मंत्री मरियम औरंगजेब ने ट्विटर पर लिखा, ‘पीएम शहबाज शरीफ तुर्की दौरे पर कल सुबह अंकारा रवाना होंगे. इस दौरान वो भूकंप से हुए जानमाल के नुकसान को लेकर राष्टपति एर्दोगन के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करेंगे.’

इस घोषणा के कुछ समय बाद ही तुर्की के राष्ट्रपति के पूर्व विशेष सहायक आजम जमील ने एक ट्वीट कर कहा कि तुर्की फिलहाल अपने देश के लोगों की देखभाल कर रहा है, वो किसी और की मेजबानी नहीं करना चाहता. उन्होंने ट्वीट किया, ‘इस वक्त तुर्की बस अपने लोगों की देखभाल करना चाहता है, इसलिए कृप्या राहत कर्मचारियों को ही भेजें.’

पाकिस्तान को इस जवाब से अपमानित होना पड़ा और उसका दांव उलटा पड़ गया. पाकिस्तान ने पीएम शरीफ का तुर्की दौरा रद्द करते हुए कहा कि दौरा राहत कार्य और खराब मौसम को देखते हुए रद्द की गई है. एक तरफ जहां पाकिस्तान को अपने बेहद करीबी दोस्त तुर्की से बेरूखी का सामना करना पड़ रहा है वहीं, दूसरी तरफ भारत राहत और बचाव कार्य में तुर्की की मदद कर वहां के लोगों और नेताओं की वाहवाही बटोर रहा है.

पाकिस्तान के करीब रहा है तुर्की

साल 2002 में जब राष्टपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन की पार्टी सत्ता में आई तब तुर्की खुद को मुस्लिम वर्ल्ड का नेता बनाने की कोशिश में जुट गया. इसी कोशिश में एर्दोगन ने मुस्लिम देशों के कश्मीर जैसे विवादित मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर रखना शुरू किया. एर्दोगन ने कई दफे पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ बात की.

2019 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में एर्दोगन ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पिछले 72 सालों से कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने में नाकाम रहा है.

फरवरी 2020 में जब एर्दोगन पाकिस्तान पहुंचे थे तब उन्होंने पाकिस्तानी संसद में कश्मीर मुद्दे पर भारत को घेरा था. एर्दोगन ने कहा था कि कश्मीर पाकिस्तान के लिए जितना अहम है, तुर्की के लिए भी यह मुद्दा उतना ही अहम है.

एर्दोगन ने कहा था, ‘हमारे कश्मीरी भाई-बहन दशकों से पीड़ित हैं. हम कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ हैं. हमने इस मुद्दे को यूएन की आम सभा में भी उठाया था. कश्मीर के मुद्दे को युद्ध से नहीं हल किया जा सकता बल्कि इसे ईमानदारी और निष्पक्षता से ही सुलझाया जा सकता है. तुर्की इस काम में पाकिस्तान के साथ है.’ उनके इस संबोधन पर पाकिस्तान की संसद तालियों से गूंज उठी थी.

भारत ने हर बार एर्दोगन के इन बयानों की निंदा करते हुए कहा है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और इसमें तुर्की का हस्तक्षेप पूरी तरह से अस्वीकार्य है. भारत ने तुर्की को कई बार हिदायत दी है कि वो दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना सीखे. वहीं, पाकिस्तान ने एर्दोगन के इन बयानों की काफी प्रशंसा की है.

तुर्की और पाकिस्तान शीत युद्ध के दौर में करीब आए थे और एर्दोगन के राष्ट्रपति बनने के बाद से दोनों देशों का रिश्ता और मजबूत होता गया.

द्विपक्षीय व्यापार को लेकर भी तुर्की-भारत में रही है अनबन

भारत और तुर्की के व्यापारिक रिश्तों में एक तनातनी का माहौल रहा है. तुर्की पिछले कुछ समय से खाद्यान्नों की कमी से जूझ रहा है. बावजूद इसके उसने पिछले साल भारत की तरफ से भेजे गए हजारों टन गेहूं को लौटा दिया था. तुर्की ने मई 2022 में 56,877 टन गेहूं को यह कहते हुए वापस कर दिया था कि गेहूं में रूबेला वायरस पाया गया है.

विश्लेषकों का कहना था कि तुर्की ने यह गेहूं राजनीतिक फैसले के तहत लौटाया न कि गेहूं में किसी तरह का वायरस मिला था. बाद में तुर्की के लौटाए गेहूं को मिस्र ने खरीद लिया था.

भारत और तुर्की के व्यापार में असंतुलन की समस्या रही है. भारत तुर्की को जितना अधिक सामान बेचता है, उससे काफी कम सामान तुर्की से खरीदता है. तुर्की इस व्यापार असंतुलन को लेकर नाखुश रहा है. वो चाहता है कि भारत तुर्की से अपना आयात बढाए और तुर्की में निवेश पर भी फोकस करे.

भारत तुर्की को मीडियम ऑयल, ईंधन, कृत्रिम और प्राकृतिक रेशे, ऑटोमोटिव कल-पुर्जे, साजोसामान और ऑर्गेनिक कैमिकल भेजता है जबकि वो तुर्की से खसखस, इंजिनियरिंग उपकरण, लोहे और स्टील के सामान, मोती, संगमरमर आदि सामानों का आयात करता है. मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के मुताबिक, 2021-22 में भारत और तुर्की के बीच कुल 80 हजार करोड़ का व्यापार  हुआ जिसमें 65 हजार करोड़ का निर्यात और 15 हजार करोड़ का आयात शामिल है. तुर्की व्यापार में इसी असंतुलन को लेकर भारत से खफा रहता है.

परमाणु बिजली की तकनीक का मसला

तुर्की परमाणु बिजली बनाना चाहता है. उसके पास परमाणु बिजली बनाने के लिए थोरियम तो मौजूद है लेकिन इसकी तकनीक उसके पास नहीं है. तकनीक हासिल करने के लिए ही राष्ट्रपति एर्दोगन साल 2017 और 2018 में भारत आए थे लेकिन उन्हें यहां कुछ हासिल नहीं हुआ. एर्दोगन का यह दौरा विफल रहा और वो भारत से बेहद निराश हुए थे.

इन सब बातों ने तुर्की और भारत की दूरी बढ़ाईं और तुर्की पाकिस्तान के करीब होता चला गया. भारत ने भी मध्य-पूर्व के सभी मुस्लिम देशों से अपनी करीबी बढ़ानी जारी रखी लेकिन तुर्की भारत के रिश्ते उस तरह से मजबूत नहीं हुए. पीएम मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से मध्य-पूर्व के लगभग सभी मुस्लिम देशों का दौरा कर चुके हैं लेकिन वो कभी तुर्की की आधिकारिक यात्रा पर नहीं गए.

हालांकि, अब भारत तुर्की की विपदा में उसके साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. तुर्की को भी इस बात का एहसास है और उसने भारत की मदद की भी काफी सराहना की है.

भारत में तुर्की के राजदूत फिरात सुनेल ने कहा है कि भारत तुर्की का सच्चा दोस्त है जिसने जलजले के तुरंत बाद मदद का हाथ बढ़ाया. उन्होंने कहा कि वो भारत की तरफ के तुर्की को दी जा रही बड़ी मदद की सराहना करते हैं. भूकंप के बाद के 48 से 72 घंटे बेहद अहम होते हैं और इस दौरान भारत की टीमें तुर्की पहुंच गई थी जिसके लिए तुर्की भारत का आभार व्यक्त करता है.

तुर्की में भूकंप के बाद भारत द्वारा दी जाने वाली मदद से भारत के प्रति तुर्की के नजरिए में एक बदलाव तो जरूर आया है. इससे तुर्की और भारत के रिश्ते सुधरने की एक उम्मीद जगी है.

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