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अमेरिका में ट्रंप आए… भारत के लिए क्या लाए? कितनी मजबूत होगी दोनों देशों की दोस्ती

नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की दोस्ती काफी गहरी बताई जाती है (फाइल फोटो)अमेरिका के चुनाव नतीजों ने नया इतिहास रचा है. 4 साल पहले राष्ट्रपति पद से हटने के बाद जिस डोनाल्ड ट्रंप को राजनीतिक रूप से कानूनी भंवर में फंसा हुआ देखा जा रहा था, उन्होंने सारे विवादों और आरोपों के बादल को चीरते हुए चुनाव फतह कर लिया है. ट्रंप की इस जीत का दुनिया भर की राजनीति पर असर तो पड़ेगा ही, भारत के लिए भी ट्रंप की जीत के विशेष मायने हैं. ये मायने ट्रंप के पिछले शासन काल के दौरान मजबूत हुई भारत के साथ दोस्ती को देखते हुए लगाए जा रहे हैं. पीएम मोदी ने एक्स पोस्ट के बाद ट्रंप को फोन करके भी बधाई दी.

इसमें पहला है ट्रेड यानी कारोबार. दूसरा है टेक्नोलॉजी. तीसरी है एनर्जी यानी ऊर्जा और चौथा है रक्षा और सामरिक रिश्ते. इन्हीं चार कड़ियों से जुड़ी दोस्ती के रंग आने वाले दिनों में कितने चटख दिखेंगे, इसकी उम्मीद दोनों देशों को लोगों को है और उसकी वजह है ट्रंप और मोदी की दोस्ती.

5 साल पहले टेक्सास के ह्यूस्टन में हाउडी मोदी से लेकर 2020 के कोरोना काल में अहमदाबाद के नमस्ते ट्रंप तक, दुनिया ने कई मौकों पर मोदी और ट्रंप के रिश्तों की केमिस्ट्री के रंग देखे हैं.

ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ सकती है 

अमेरिका में ट्रंप सरकार की आमद से भारत के कारोबारी रिश्ते कैसे होंगे, ये देखने वाली बात है. लेकिन पिछली ट्रंप सरकार के दौरान शुरू हुई दोनों देशों के बीच दोस्ती की बुनियाद पर ही आज भारतीयों के लिए अमेरिका बड़ा निर्यात केंद्र बना हुआ है. मिसाल के तौर पर साल 2023-24 के ही आंकड़े देखें तो भारत के अंदर अमेरिका से 42.2 अरब डॉलर का आयात हुआ. जबकि भारत से 77.52 अरब डॉलर का निर्यात अमेरिका को किया गया.

इससे पहले ट्रंप सरकार की नीतियां चाइनीज मोनोपॉली के खिलाफ रही हैं, ऐसे में संभावना जताई जा रही है ट्रंप के आने के बाद अब चाइनीज आयात पर टैक्स बढ़ सकता है. ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने का रास्ता खुल सकता है. चीनी उत्पादों पर टैक्स बढ़ा तो टेक्सटाइल से लेकर टाइल तक और वायर से लेकर केबल्स का निर्यात बढ़ाने के मौके मिलेंगे. भारत के मेटल एक्सपोर्टर्स के लिए अमेरिकी मार्केट खुलने की उम्मीद बढ़ेगी. भारत के केमिकल और फार्मास्यूटिकल एक्सपोर्टर्स के लिए मौके बढ़ सकते हैं.

भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती का एक बड़ा फैक्टर चीन भी है. चीन को काबू में करने के लिए अमेरिका ने इंडो पैसिफिक में एक मोर्चा तैयार किया था. ट्रंप के आने के बाद क्वाड का वो मोर्चा और मजबूती से आगे बढ़ेगा. भारतीय समुद्री क्षेत्र के आस पास साझा युद्धाभ्यास बढ़ेंगे, जिससे हथियारों की खरीद बिक्री का भी फायदा हो सकता है. देशों के बीच टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मौके बढ़ सकते हैं और चीन के बढ़ते मंसूबों के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बरकरार रह सकता है.

ट्रंप आए तो भारत के लिए टेंशन क्या? 

डोनाल्ड ट्रंप के पुराने शासनकाल के रिकॉर्ड को देखते हुए कई आशंकाएं भी बरकरार हैं. उनके सामने तमामा घरेलू चुनौतियां हैं, महंगाई, बेरोजगारी, टैक्स, इमिग्रेशन जैसी समस्याओं को लेकर ट्रंप ने तमाम चुनावी वादे किए हुए हैं. और इसमें इमिग्रेशन और रोजगार दो ऐसे बड़े मुद्दे हैं जिन पर ट्रंप के फैसले भारत और भारतीयों के हक के खिलाफ जा सकते हैं.

दरअसल, ट्रंप के आने से इमिग्रेशन को लेकर सख्त नीतियों की आशंका है. एचवन बी वीजा पर ट्रंप की नीतियां भारतीयों के लिए मुश्किल बन सकती हैं क्योंकि इससे अमेरिका में भारतीयों के लिए रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं. वैसे भी पिछले ही साल अमेरिका से 1100 अवैध भारतीयों को डिपोर्ट किया जा चुका है. ट्रंप की हुकूमत में एक नई टेंशन टैरिफ को लेकर भी है, क्योंकि ट्रंप कभी भारत को टैरिफ किंग कहते हैं, कभी अब्यूजर.
2019 में भारत ने अमेरिका के कई उत्पादों पर जब टैक्स लगाया था तो हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल्स के मु्ददे पर ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर हाई टैरिफ लगाने की धमकी दी थी. तब अमेरिका ने लोहा और अल्यूमीनियम पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ा भी दी थी और भारत को तरजीही कारोबारी मुल्क वाला समझौता भी तोड़ दिया था. इतना ही नहीं, जब भारत ने ईरान से तेल खरीदा तब भी ट्रंप सरकार ने प्रतिबंधों की धमकी दी थी और रूस से एस-400 सौदे को लेकर भी सैंशन की धमकी दी थी.

ऐसे में अगर ट्रंप सरकार की टैरिफ नीति के टारगेट पर भारत आता है तो भारत पर अमेरिकी निर्यात में टैक्स कम करने का दबाव हो सकता है और ऐसा नहीं होने पर आईटी, फार्मा, टेक्स्टाइल जैसेअमेरिका से होने वाले कारोबार पर असर पड़ सकता है. हालांकि कोविड के बाद बदले वर्ल्ड ऑर्डर में बाजार की दरकार पूरी दुनिया को है और भारत से रिश्ते बनाए रखना हर मुल्क के लिए फायदेमंद ही होगा.

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