राणा यशवंत
प्रधानमंत्री की लिट्टी चोखा खाते हुए तस्वीर आज वायरल है. बिहार का लिट्टी चोखा और चूड़ा दही पर पेटेंट है. कहीं और में वो बात नहीं आती. चूंकि प्रधानमंत्री ने खाया और उसकी तस्वीर भी खिंचवाई, मतलब कोई बात होगी. समझदार लोग कहते हैं कि बिहार में चुनाव आ रहे हैं. पहले से ही बिहारियों में चर्चा में बने रहना जरुरी है. जाकर देखिए बिहार में सब जगह बात चल रही होगी- देखल मरदे मोदी जिउआ का लिट्टी चोखा पता बा, हंचड़ के खईलो होईहन.
आगे गाहे बगाहे लिट्टी चोखा खानेवालों के बीच प्रधानमंत्री बतकही में रहेंगे. आटा, सतुआ, सरसों का तेल, लहसुन, अजवाइन, नमक, नींबू सबका लिट्टी के स्वाद में रहते हैं. आटा गूंधिए, सुतआ के साथ बाकी सब मिलाकर मसाला बनाइए और आटे के गोले के अंदर डालकर उपले पर रख दीजिए. जब पक जाए तो घी में डालिए या फिर मटन में- मजा दोनों में है. और चोखा साथ तो रहता ही है. चोखा भी बस आलू पकाइए, सरसों नमक, प्याज, नींबू डालिए और हो गया.
ये जो रेसिपी है वो बस ये बताने के लिये कि इतनी आसानी से कोई खाना नहीं बन सकता. खाने के लिये बर्तन ना हो तब भी कोई बात नहीं और खाने के बाद जो बचा उसको कई दिन तक खाते रहिए, तब भी खराब नहीं. कहते हैं लिट्टी चोखा सैनिकों का खाना था. मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था और सैनिक अक्सर अभियान पर रहते. इस समय छावनियों में कम पानी और कम आग में पकाने और पकाकर रखने का इससे बेहतर खाना कोई हो नहीं सकता था. बाद में ये किसानों, कामगारों, मजदूरों और गरीबों का भोजन हो गया.
अब लिट्टी चोखा ब्रांड हो गया है औऱ बड़ी बड़ी कंपनिया सिर्फ लिट्टी चोखा का आउटलेट खोले बैठी हैं. ज़ोमैटो और स्वीगि जैसी कंपनियां अटारियों और अपार्टमेंट में करीने से पैक कर लिट्टी चोखा सप्लाई करती हैं. बिहारियों को जमावड़ा हो तो खाने के लिये पूछना नहीं है. तय है लिट्टी चोखा तो होगा ही. सच कहिए तो वो हम बिहारियों का खाना नहीं बल्कि संस्कृति है. देश के प्रधानमंत्री अब सरेआम लिट्टी चोखा खाते हैं तो समझिए उस संस्कृति की सियासत में कितना असर है. बूझे की नहीं. ए पीएम जी, एक दिन आप दही चिउड़ा भी खा के दिखाइए.