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प्रधानमंत्री ऑफिस में अपने आदमी रखवाना चाहते थे पीके, 2011 में कारोबारी के जरिये मोदी से मिले थे

प्रशांत किशोर के लिये कोई नीति-सिद्धांत नहीं है, वो सिर्फ अवसरवादी हैं

नई दिल्ली। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर नये सियासी ठिकाने की तलाश में हैं, इस दिशा में वो कई विपक्षी महागठबंधन के नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं, अब दावा किया जा रहा है कि पीके बिहार में नीतीश और बीजेपी के विरोध में नया गठबंधन बनाना चाह रहे हैं, पीके की टीम मोदी में साल 2011 में एंट्री हुई थी, तब वो 33 साल के थे, और यूएन में हेल्थ प्रोफेशनल के तौर पर अफ्रीकी देश चाड में काम कर रहे थे।

मोदी के करीब पहुंचे
बिहार में पैदा हुए और पले-बढे प्रशांत किशोर ने यूपी में रहकर भी पढाई की है, यूएन में काम करते हुए उन्होने गुजरात में कुपोषण को लेकर एक पेपर लिखा था, जिस पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की नजर गई थी, बताया जाता है कि एक रियल एस्टेट कारोबारी के जरिये पीके नरेन्द्र मोदी से मिलने 2011 में पहुंचे थे, इसके बाद उनके करीबी बन गये, 2013 गुजरात विधानसभा चुनाव में उन्होने मोदी के लिये रणनीति बनाये थे, जिसके वो उनके और करीब पहुंच गये।

बीजेपी का वॉर रुम संभाला
2014 लोकसभा चुनाव में जब नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी चुनावी ताल ठोक रही थी, तो प्रशांत किशोर के जिम्मे बीजेपी का वॉर रुम था, अच्छे दिन आने वाले हैं और चाय पर चर्चा जैसे नारे पीके ने गढा था, लोकसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद वो पीएमओ में एंट्री चाहते थे।

लैटरल एंट्री के पक्षधर
पीके की कंपनी आई-पैक के अंदरुनी सूत्रों के अनुसार पीके सरकार में लैटरल एंट्री के बड़े पक्षधर थे, उन्होने प्रधानमंत्री मोदी को इसका आइडिया दिया था, सूत्रों का दावा है कि पीके अपनी टीम के साथ पीएमओ में एक प्रोफेशनल टीम को लीड करना चाहते थे, लेकिन उनकी योजना मूर्त रुप नहीं ले सकी, हालांकि मोदी ने शुरुआत में इस योजना में काफी रुचि दिखाई थी।

अवसरवादी हैं पीके
गुजरात बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने प्रशांत किशोर को अति महत्वाकांक्षी और अवसरवादी करार दिया, उन्होने कहा कि 2011 में मुंबई के एक बड़े रियल इस्टेट कारोबारी ने उनकी नरेन्द्र भाई से मुलाकात कराई थी, तब उन्हें इस बात की भनक नहीं थी कि राजनीति पीके की महत्वाकांक्षा का अभिन्न अंग है, कई सालों तक लोगों से एक चुनावी कंसल्टेंट और प्रोफेशनल कंपनी चलाने वाले के तौर पर ही मिलते रहे, उनके लिये कोई नीति-सिद्धांत नहीं है, वो सिर्फ अवसरवादी हैं।

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