प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए कुख्यात सबा नकवी ने हाल ही में एक वीडियो के जरिए मुस्लिमों के बचाव में हिन्दुओं के खिलाफ जमकर जहर उगला है और हिन्दुओं की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है।
सबा नकवी ने इस वायरल वीडियो के माध्यम से हिन्दुओं पर मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया है और बेहद चालाकी से मुस्लिमों के करनामों पर पर्दा डालने का प्रयास किया है। यही नहीं उन्होंने सावधानी से विक्टिम कार्ड भी खेला है।
The bigoted Hindu supremacists, the communalists are not buying vegetable from Muslims. How sick are you? All the medicine you take come from a Muslim manufacturer.
Listen to this message from @_sabanaqvi pic.twitter.com/7mM4r9VMPN
— Dr. Sanjukta Basu, M.A., LLB., PhD (@sanjukta) April 15, 2020
इस वीडियो में सबा नकवी ने तमाम मुस्लिम समुदाय के लोगों के कुकृत्यों को छुपाने के लिए कुछ ‘अच्छे मुस्लिमों’ का जिक्र करते हुए सभी हिन्दुओं को असहिष्णु बताया है। और ऐसा करते हुए उन्होंने हिन्दू धर्म के लोगों का समाज के प्रति योगदान का कहीं भी किसी प्रकार का जिक्र नहीं किया है।
इस वायरल वीडियो में सबा नकवी कहते हुए देखी जा सकती हैं कि ‘हम लोगों से आप और क्या चाहते हैं?’ इसमें ‘हम’ शब्द का प्रयोग मुस्लिमों के लिए किया गया है। हालाँकि, सबा नकवी को हिन्दुओं को बुरा बताने का प्रयास नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि इन्हीं विषयों पर हिन्दुओं का पक्ष रख कर तथ्य सामने रखे जाएँ तो सबसे पहले ‘विक्टिम कार्ड’ का रोना वही रोएँगी।
‘क्या हमें चले जाना चाहिए’ यह सवाल सबा नकवी अपने इस वीडियो में पूछती नजर आती हैं, जिसका उत्तर न दिया जाए तो बेहतर है क्योंकि यह फिर से सबा नकवी के लिए असहिष्णुता का प्रश्न पैदा कर सकता है।
कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनकी उम्मीद हिन्दू धर्म के लोग मुस्लिमों से करते हैं और यह इतनी भी ‘आसमानी माँग’ नहीं हैं कि मुस्लिम समुदाय उन्हें पूरा कर पाने में असमर्थ हो।
1 – उनका साथ मत दो, जो डॉक्टर्स पर थूकते हैं या उनका यौन उत्पीड़न करते हैं
निजामुद्दीन मरकज में शामिल लोगों को जब क्वारंटाइन करने के लिए अस्पताल ले जाया गया तो उन्होंने डॉक्टर्स पर थूकने, अश्लील इशारे करने से लेकर तमाम तरह की बदसलूकियाँ कीं। फिर भी मुस्लिम समुदाय के चुनिन्दा ‘अच्छे मुस्लिमों’ ने उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका। वो अस्पताल में महिला स्वास्थ्यकर्मियों के सामने नंगे होकर घूमते रहे।
यहाँ तक की अस्पताल के बिस्तर पर एक जमाती ने शौच तक कर डाली। यदि मुस्लिम और उनके साथी ऐसे बदतमीज मुस्लिमों का बचाव करना छोड़ दें तो बड़ी मेहरबानी होती। क्योंकि वह भी उन्हीं के समुदाय से हैं जिनका जिक्र सबा नकवी अपने वीडियो में करती हैं।
2 – टिकटोक पर फेक न्यूज़ फैलाना और कोरोना को अल्लाह की NRC बताना बंद कर दें
सबा नकवी जैसे प्रोपेगैंडा पत्रकारों के संचार और समाचार के प्रमुख स्रोत टिकटोक पर हर प्रकार के मजहबी वीडियो शेयर किए जाते हैं। टिकटोक के जरिए ‘काफिरों’ को तमाम तरह के सन्देश दिए गए जिनमें बताया गया कि नमाजियों का कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकता या फिर अल्लाह और इस्लाम ही कोरोना का इलाज हैं।
हदें तो तब पार हुईं जब कोरोना वायरस को अल्लाह की NRC बताया गया। ऐसा करने वाले भी सबा नकवी के ही समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। मुस्लिमों को उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिए।
3 – स्वास्थ्यकर्मियों-डॉक्टर्स से नाजायज माँग करनी बंद करें, उन पर पत्थरबाजी ना करें
क्वारंटाइन में तबलीगी जमात के लोगों ने जो भी उपद्रव मचाया है उनमें सबसे ज्यादा ‘वाहवाही’ उनकी बिरियानी, अंडा-करी और 25-25 रोटियों की माँग ने बटोरी है। यही नहीं, जहाँ कहीं भी डॉक्टर्स की टीम जाँच के लिए गई वहाँ उन पर थूका गया, पत्थर फेंके गए और सैकड़ों मुस्लिमों ने इकट्ठे होकर अल्लाह-हो-अकबर के नारे लगाते हुए उन्हें घेर लिया। यदि मुस्लिम इस तरह की हरकतों पर भी लगाम लगा सकें तो यह देश पर निश्चित ही बड़ा उपकार होगा।
4 – मजहब को देशहित पर हावी न होने दें
कोरोना वायरस के हावी होते ही भारत में भी फ़ौरन लॉकडाउन का ऐलान किया गया। लेकिन सरकार की अपील को सिर्फ मजहबी कारणों से ठुकराते हुए मुसलमान देखे गए। उन्होंने ना सिर्फ सामूहिक नमाज में हिस्सा लिया बल्कि सार्वजनिक उपक्रमों में भी उसी तरह शामिल रहे मानो इसका उपाय सोशल डिस्टेंस ना होकर वाकई में वही हो जैसा कि 15-16 साल के मुस्लिम युवा टिकटोक पर बताते रहे हैं।
5 – इस्लामिक आतंकियों के कारनामों के सामने आने पर विक्टिम कार्ड ना खेलें
जब भी कोई आतंकी घटना सामने आती है या फिदायीन हमला होता है उसमें आश्चर्यजनक रूप से एक ‘विशेष-स्रोत‘ के लोगों का नाम होता है। उस पर सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह होता है कि सबा नकवी जैसे लोग ही तब यह कहकर नकारते हुए देखे जाते हैं कि नहीं, इस आतंकवाद का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है।
यहाँ तक कि इन खबरों पर बात करने वालों को इस्लामोफोबिया से ग्रसित बता दिया जाता है। जबकि मीडिया सिर्फ इस्लामिक आतंकवादियों या अपराधियों द्वारा किए गए कारनामों का ही जिक्र कर रहे होते हैं। अतः यह भी निवेदन है कि मुस्लिमों को ऐसी मासूम शिकायतें नहीं करनी चाहिए।
6 – नरसंहार करने वालों का महिमामंडन करना बंद करें
यह कोई छुपा हुआ तथ्य नहीं है कि भारत देश के इतिहास को मुस्लिम आक्रान्ताओं ने ‘बुत परस्तों’ के रक्त से सींचा है। फिर भी हर उस मुस्लिम आक्रान्ता का महिमामंडन अक्सर किया जाता है जिसने चाहे हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया हो, वह चाहे बलपूर्वक हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने वाला औरंगजेब हो, जहाँगीर हो, खिलजी हो या फिर टीपू सुल्तान हो, मुस्लिम समुदाय ने हर समय इन आक्रान्ताओं को अपना आदर्श बनाकर पेश किया है।
और इन आतताइयों के समर्थन के पीछे कारण सिर्फ उनका मुस्लिम होना रहा है, यानी शुद्ध मजहबी कारण। यदि हो सके तो हिन्दुओं के व्यापक नरसंहार के लिए जिम्मेदार इन मुस्लिम आक्रंताओ का गुणगान भी मुस्लिम समुदाय को बंद करना चाहिए। इसमें किसी भी तरह की गंगा-जमुनी तहजीब नहीं छुपी हुई है।
7 – उम्माह को सामाजिक सौहार्द से ऊपर रखना बंद करना होगा
सोशल मीडिया पर मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग ने मध्य पूर्व स्थित इस्लामिक देशों में रहने वाले हिंदुओं के खिलाफ एक नियत अभियान चलाया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर हिंदुओं द्वारा तबलीगी जमात और इस्लामी आतंकवादियों के खिलाफ की गई टिप्पणियों के स्क्रीनशॉटों को कैप्चर किया और उन्हें नौकरी या उनके संस्थान से निकालने की सिफारिश के साथ स्थानीय अधिकारियों को भेजा।
ध्यान देने की बात यह है कि इस तरह हिन्दुओं को चुनकर निशाना बनाने की हरकतों से भारत में मुसलमानों का भला नहीं होता है और हमारे देश में सांप्रदायिक संबंधों को भी बहुत नुकसान पहुँचता है। अगर मुसलमान ऐसी हरकतों को रोक सकते हैं, तो यह बहुत अच्छा होगा।
8 – मस्जिदें बनाने के लिए तोड़े गए मंदिरों को हिन्दुओं को लौटा दें
यह एक स्थापित ऐतिहासिक तथ्य है कि मस्जिदों के निर्माण के लिए इस्लामिक आक्रान्ताओं ने असंख्य हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया था। कई जगहों पर तो मंदिरों के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री का उपयोग मस्जिद के निर्माण में किया गया था। सदियों के प्रयास और दशकों बाद भारतीय न्यायालयों में समय बिताने के बाद हिंदुओं ने राम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त किया है।
इस से सीख लेकर मुसलमानों को काशी-मथुरा सहित शेष मंदिरों को अब हिन्दुओं को वापस सौंप देने के बारे में सोचना चाहिए। यह निश्चित तौर पर सामाजिक सद्भावना का ही एक प्रतीक होगा और यह हिंदू-मुस्लिम संबंधों के मिशाल की तौर पर सदियों तक याद भी रखा जाएगा। शायद इससे ज्यादा कहने की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती है।