Friday , November 22 2024

तबलीगी जमात: आतंकवाद, चरमपंथ और खिलाफत आन्दोलन से जुड़े हैं तार

देश के 30 फीसदी कोरोना संक्रमण मामले तबलीगी जमात को समर्पित हैं जिसके चलते पूरे देश में डेढ़ हज़ार से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। यह एक ऐसी संस्था है जिसके बारे में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन यह जमात का प्रभाव ही है कि सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण मामलों का कारण होने के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने तबलीगी जमात का नाम नहीं लेने का फैसला किया है।

क्यों, आखिर है क्या इस तबलीगी जमात की असलियत? ऐसा क्या प्रभाव है इसका? क्यों तबलीगी जमातियों द्वारा लगातार गैरकानूनी और गलत हरकत करने के बावजूद क्यों इतने सारे लोग इसके बचाव में उतर आए हैं। जब हमने इसके बारे में पड़ताल की, तथ्यों की खोजबीन की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए-

  • तबलीगी जमात एक इस्लामिक मिशनरी आन्दोलन है जो विश्व भर के मुसलमानों को कट्टर इस्लाम अपनाने को प्रेरित करता है। इसे 20वीं शताब्दी का सबसे प्रभावी धार्मिक आन्दोलन माना जाता है। प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व के लगभग 200 देशों में इस जमात के सवा करोड़ से लेकर 8 करोड़ तक समर्थक हैं।
  • इसे 1926 में भारत के मेवात क्षेत्र में मोहम्मद इलियास अल-कंधलावी ने शुरू किया था। दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित वो इमारत जहाँ से ढाई हज़ार जमातियों को निकाला गया था, दरअसल तबलीगी जमात का मुख्यालय है।
  • जमाती छ: सिद्धान्तों पर काम करते हैं – कलीमा, सालाह, इल्मो ज़िक्र, इकारामे मुस्लिम, इकलासे नीयत और दावत-ओ-तब्लीग।
  • इनमें से छठे सिद्धान्त, दावत-ओ-तब्लीग का अंग्रेजी में मतलब है प्रोसेलिटाइजेशन (proselytization) यानि धर्मान्तरण या धर्म परिवर्तन। जी हाँ, तबलीगी जमात का एक महत्वपूर्ण उसूल है ज़्यादा से ज़्यादा गैर इस्लामिक लोगों को इस्लाम में लाना।
  • अमेरिका और ब्रिटेन समेत अन्य कई देशों की खुफिया संस्थाएँ और पत्रकारों की जाँच रिपोर्ट्स के अनुसार जमात के लोग बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन में लगे हुए हैं।
  • जमात के समूह के कई लोगों को आतंकवाद फैलाने के लिए भी सजा मिल चुकी हैं। (9 सितम्बर, 2008 को गार्डियन डॉट कॉम)
  • अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया संस्थाएँ तबलीगी जमात को ‘कट्टरपंथ का द्वार’ कहती हैं। चूँकि इस संगठन का कोई संविधान या कोई औपचारिक पंजीकरण नहीं है, इसके बारे में लोग ज़्यादा नहीं जानते हैं और इसके सदस्यों और उनकी संख्या के बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • तबलीगी जमात एक अनौपचारिक संगठनात्मक संरचना का पालन करती है। इसके सदस्य मीडिया से अपनी दूरी बनाए रखते हैं। जमात अपनी गतिविधियों और सदस्यता के बारे में विवरण प्रकाशित करने से बचता है। यही वजह है कि यह लोगों की निगाह में आने से बचा रहता है।
  • गैर-मुस्लिम क्षेत्रों में तबलीगी जमात आंदोलन की पैठ 1970 के दशक में शुरू हुई और इसी के साथ सऊदी वहाबियों और दक्षिण एशियाई देवबंदियों के बीच संबंधों की की भी शुरूआत हुई। हैरानी की बात यह है कि अन्य सभी तरह के इस्लामिक स्कूलों को खारिज करने वाले बहावी भी तबलीगी जमात की प्रशंसा करते हैं।
  • हालाँकि तबलीगी जमात की वित्तीय गतिविधियाँ गोपनीय रहती हैं, लेकिन विश्व मुस्लिम लीग जैसे सऊदी संगठनों द्वारा तब्लिगी जमात को लाभ दिए जाने की खबरें हैं। 1978 में विश्व मुस्लिम लीग ने ड्यूसबेरी में तबलीगी मस्जिद के निर्माण पर सब्सिडी दी, जो तब से पूरे यूरोप में तब्लिगी जमात का मुख्यालय बन गया है।
  • जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के बार्कले केन्द्र द्वारा प्रकाशित एक लेख के अनुसार तबलीगी जमात वैश्विक सुन्नी इस्लामिक मिशनरी संस्था है जिसका उद्देश्य खिलाफत आन्दोलन चलाना है। 
  • जमात ने 1946 में अपनी गतिविधियों का विस्तार करना शुरू किया। दो दशकों के भीतर यह दक्षिण पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, यूरोप, और उत्तरी अमेरिका तक पहुँच गया।
  • 2007 तक, तबलिगी जमात के सदस्य ब्रिटेन की 1,350 मस्जिदों में से 600 पर काबिज थे।
  • एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में तबलीगी जमात के करीब 50,000 सदस्य सक्रिय हैं।
  • तबलीगी जमात का अमीर, जमात के परामर्श परिषद शूरा और यहां के बुज़ुर्गों द्वारा ताउम्र के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • खूरौज यानि धर्मान्तरण यात्रा जमात के लोगों के लिए अत्यन्त आवश्यक मानी जाती है। जमाती महीने में 120 दिन यानि तीन महीने बाहरी देशों की यात्रा करके अपने धर्म का प्रचार करते हैं।
  • इनका प्रचार का तरीका ज़मीनी स्तर पर लोगों को जोड़ने का है। यह बड़े राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों की बजाय गरीब, पिछड़े, भटके लोगों के बीच इस्लाम का प्रचार करते हैं। हालाँकि इनके लोग वैश्विक स्तर की राजनीतिक संस्थाओं में भी हैं।
  • इनकी ताकत है इनका अराजनैतिक रुख जिसके कारण यह कभी चर्चा औऱ खबरों में नहीं आते।
  • इसी वजह से यह अयूब खान (1960 के दशक) और इंदिरा गांधी (1975-77) की सरकारों के दौरान बच गए जबकि अन्य सामाजिक राजनीतिक इस्लामी समूहों को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।
  • इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ इस्लाम एंड क्रिश्चियनिटी के निदेशक डॉ पैट्रिक सुखदेव के अनुसार तबलीघी जमात ब्रिटेन में एक गुप्त समाज के रूप में संचालित होती है। इसकी बैठकें बंद दरवाजों के पीछे आयोजित की जाती हैं। कोई नहीं जानता कि उनमें कौन शामिल होता है, इसमें कितना पैसा है। यह लोग खुद के बारे में कोई बात नहीं करते। यहाँ तक हिसाब खिताब के खाते तक नहीं हैं।
  • पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पिता भी एक प्रमुख तबलीगी सदस्य और फाइनेंसर थे। इन्होंने तबलिगी सदस्यों को प्रमुख राजनीतिक पद लेने में मदद की। उदाहरण के लिए 1998 में तबलीगी समर्थक मुहम्मद रफीक तरार पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने और 1990 में तब्लीग से ही जुड़े लेफ्टिनेंट जनरल जावेद नासिर आईएसआई के महानिदेशक बने।
  • तबलीगी जमात को अलकायदा और लश्कर-ए-तैयबा जैसे जेहादी संगठनों के लिए उपजाऊ भर्ती जमीन माना जाता है। अमेरिकी अधिकारी एलेक्स एलेक्सीव के अनुसार, लगभग 80% प्रतिशत इस्लामी चरमपंथी तब्लीग से सम्बन्धित रहे हैं।
  • फ्रांसीसी खुफिया अधिकारी इसे कट्टरपंथ का द्वार (एंटीचैंबर) कहते हैं।
  • बहुत से पाकिस्तानी क्रिकेटर्स जैसे शाहिद अफरीदी, सईद अनवर, इंजमाम-उल-हक़, मुश्ताक अहमद समेत पाकिस्तानी आईएसआई के पूर्व प्रमुख और पाकिस्तानी आर्मी जनरल मोहम्मद अहमद भी तबलीगी जमात के सदस्य हैं।

वैश्विक आतंकवाद और तबलीगी जमात

  • 9/11 के हमले के बाद तबलीगी जमात अमेरिकन एफबीआई और ब्रिटिश इन्टैलीजेन्स की निगाहों में आया।
  • तबलीगी सदस्यों पर लगातार आंतकवाद का आरोप लगाया जाता रहा है। पेरिस में अमेरिकी दूतावास उड़ाने की साजिश रचने वाला अल कायदा का सदस्य हो या स्पेन में जनवरी 2008 में बमबारी की साजिश में हो, नागरिकों पर हमले हों या 7/7 लंदन बम विस्फोट का मामला हो या फिर ग्लासगो हवाई अड्डे पर हमले की साजिश हो, इनसे जुड़े आतंकवादियों के तार कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रूप से तबलीगी जमात से जुड़ते रहे हैं।
  • स्पेन की पुलिस ने 19 जनवरी 2005 को बार्सिलोना में अपार्टमेंट इमारतों, एक मस्जिद और एक प्रार्थना हॉल पर छापों के दौरान बम बनाने की सामग्री जब्त की और 14 लोगों को गिरफ्तार किया था जो शहर में बमबारी करने की योजना बना रहे थे। यह सभी तबलीगी जमात से जुड़े थे।
  • भारत का कफील अहमद जो कि ग्लासगो एयरपोर्ट पर असफल अटैक के लिए गिरफ्तार किया गया था, वो भी तबलीगी जमात से जुड़ा था।
  • 7/7 के लंदन बॉम्बर्स में से दो शहजाद तन्वीर और मोहम्मद सिद्दीक खान भी ड्यूसबरी स्थित तबलीगी मस्जिद में जाते थे।
  • साल 2012 में प्रकाशित इस्लाम ऑन दी मूव- नाम की किताब में मलेशिया के पॉलिटिकल साइन्टिस्ट फारिश नूर ने दावा किया है कि लश्कर-ए-तयैबा के एक सदस्य हमीर मोहम्मद ने तबलीगी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान का वीज़ा लेने की कोशिश की थी। इसी तरह सोमालिया के मोहम्मद सुलेमान ने भी इसी तरह पाकिस्तान में प्रवेश लेने की कोशिश की थी।
  • अबू ज़ुबैर अल हैली, जो कि बोस्निया हर्जेगोविना में अल कायदा की मुज़ाहिदीन बटालियन का कमान्डर था, भी एक तबलीगी के रूप में पाकिस्तान आया था। जबकि सऊदी निवासी अब्दुल बुखारी जो कि जिसकी बहुत सारे देशों को तलाश थी, भी खुद को तबलीगी बताते हुए दिल्ली के निज़ामुद्दीन के तबलीगी मरकज़ में शामिल हो गया था। (मिन्ट रिपोर्ट- 2013)
  • पूर्वी लंदन की अधिकतर मस्जिदें तबलीगी जमात के नियंत्रण में हैं। टाइम्स के क्राइम और सिक्योरिटी एडीटर शॉन ओ नील इसे अतिरूढ़िवादी लोगों की जमात कहते हैं। 1989 में लंदन में तबलीगी जमात की क्वीन्स रोड स्थित एक मस्जिद का संचालन उग्रवादी समूह- अल मुहाजिरों के लीडर, उमर बखरी मोहम्मद के हाथ में था जिस पर बाद में प्रतिबन्ध लगा दिया गया। (द गार्डियन रिपोर्ट- 9 सितम्बर, 2008)

वैश्विक उग्रवाद और जिहादवाद में तबलीगी जमात की भूमिका

  • तब्लीग को चरमपंथी प्रचारक संस्था मानते हुए उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • अमेरिकी विदेश नीति परिषद की रिपोर्ट के अनुसार यह जिहादी समूहों का एक निष्क्रिय समर्थक है। इनकी पूरे संसार की इस्लामीकरण करने के प्रति अटूट प्रतिबद्धता है। इनका लक्ष्य योजनाबद्ध तरीके से दुनिया पर विजय प्राप्त करना है।
  • फ्रेन्च अधिकारी भी यह दावा कर चुके हैं कि लगभग 80 फीसदी रेडिकल इस्लामिस्ट्स जिनसे वो मिले कहीं ना कहीं, तबलीगी जमात से जुड़े हुए थे।
  • तबलिगी जमात इस्लामी चरमपंथ की प्रेरक ताकत है और दुनिया भर में आतंकवादी कारणों के लिए एक प्रमुख भर्ती एजेंसी है। अधिकांश युवा मुस्लिम चरमपंथियों के लिए, तबलीगी जमात में शामिल होना उग्रवाद की राह पर पहला कदम है ।
  • यही नहीं शिया विरोधी सांप्रदायिक समूहों, कश्मीरी उग्रवादियों और तालिबान से बने कट्टरपंथी देवबंदी गठजोड़ के बीच भी अप्रत्यक्ष संबंध पाए गए हैं।

उपरोक्त सभी जानकारियाँ विश्वसनीय वेबसाइट्स की न्यूज़ रिपोर्ट्स आर्काइवस से ली गई हैं। संबन्धित लिंक-

https://web.archive.org/web/20140905014000/http://www.stratfor.com/weekly/tablighi_jamaat_indirect_line_terrorism (23 जनवरी 2008, स्ट्रैटफॉर ग्लोबल इन्टैलीजेन्स, फ्रेड बर्टन और स्कॉट स्टीवर्ट की रिपोर्ट)

https://www.meforum.org/686/tablighi-jamaat-jihads-stealthy-legions

प्रस्तुत आलेख वरिष्ठ पत्रकार यामिनी अग्रवाल ने लिखा है

साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।

About I watch