के विक्रम राव
हिन्दू-बहुल नेपाल के परले दर्जे के दहशतगर्द, नक्सली प्रधान मंत्री पंडित खड्ग प्रसाद शर्मा उर्फ़ ओली ने अपने इष्टदेव लाल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को प्रसन्न कर दिया| ऐसी बेला पर जब दो एशियाई महाशक्तियां (लोकतान्त्रिक भारत तथा कम्युनिस्ट चीन) बौद्ध (पूर्वी) लद्दाख में बीजिंग द्वारा प्रायोजित मुठभेड़ में आमने सामने हैं, तो नेपाल ने एक नया मानचित्र प्रकाशित कर डाला| इसमें उत्तराखण्ड के धारचूला क्षेत्र वाले लिपुलेख मार्ग को अपना भूभाग दर्शा दिया| उसकी नीयत यही है कि दुनिया को दिखाये कि भारत विस्तारवादी राष्ट्र है जो दोनों पड़ोसियों से एक साथ उलझ गया है | संयोग नहीं, नेपाल का ऐसा इरादा है कि अट्ठावन-वर्ष पूर्व हुए भारत-चीन संग्राम को दुबारा मंचित किया जाय| इसी गलवान नदी के निकट भारतीय क्षेत्र अक्साई चिन के सरोवरों पर तब अपना कब्ज़ा किया था| आज उसे मजबूत करने का लाल चीन का आशय है| इसीलिए तब (20 अक्टूबर 1962) युद्ध हुआ था| लोक सभा में इसी अक्साई चिन क्षेत्र पर नेहरु सरकार की फजीहत हुई थी| तब पूरी संसद चीन की जनमुक्ति सेना द्वारा बोमडिला (आज का अरुणांचल) से अक्साई चिन (लद्दाख) तक भारतीय सेना के संहार और लूट से आक्रोशित थी| रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन ने सदन को आश्वस्त करते कहा था कि “चीन-अधिकृत सीमा क्षेत्रों में घास तक नहीं उगती|” इस पर देहरादूनवासी महावीर त्यागी ने कहा था “मेरी गंजी खोपड़ी पर भी कुछ नहीं उगता है| अतः पण्डित नेहरु जी, इसे भी चीन को दे दीजिये|”
आज छः दशक बाद फिर सीमा पर संकट है| इस बार लजाकर, पराजय बोध लिए आँख में पानी भरने को भारतीय तैयार नहीं हैं| चीन ही नहीं, कम्युनिस्ट-नियंत्रित नेपाल से भी हिसाब चुकता करना होगा| एक घोषणा भारतीय संसद ने 1953 में की थी कि नेपाल पर आक्रमण भारत पर ऐलाने-जंग माना जायेगा|
आखिर इस शर्मा ‘ओली’ की साजिश क्या है ? कौन है यह ? इन्हें इस्लामिक स्टेट ऑफ़ ईराक एण्ड सीरिया का मृत आतंकी, स्वघोषित आलमी खलीफा अबू बकर अल बगदादी का ही फोटोकॉपी माना जाता है|
नक्सली चारु मजूमदार का प्रेरित शिष्य, यह ओली नेपाल-बंगाल सीमा पर, कभी अपनी जन अदालत बनाकर भूस्वामियों का सर कलम करता था| वर्गशत्रु की हत्या को नक्सली धर्म कहता था| लेकिन ऐसा किसान-पुत्र शीघ्र ही अकूत धन और जमीन हथियाने लगा| धन बल से सत्ता पाना लक्ष्य हो गया| क्रमशः इनके वैचारिक भटकाव से ग्रसित नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी भी कई टुकड़ों में विभाजित हो गई| पुष्प कमल दहल प्रचण्ड, विष्णु प्रसाद पाउडेल, माधव कुमार नेपाल, वामदेव गौतम, रामबहादुर थापा, झालानाथ खनल आदि| इनकी अतिवादिता में सिर्फ मात्रा का अन्तर ही है|
इन लाल सितारों की राजनीतिक गंभीरता का अंदाजा यह जानकर लग जाता है की भारत के विरुद्ध विष-वमन तथा चीन के प्रति चरणछू प्रतिस्पर्धा में इनमें कौन कितना तेज है? इस वक्त पण्डित ओली अव्वल नम्बर पर हैं| उनका निष्कर्ष, उनका सुविचारित निदान है कि भारत से नेपाल में आया कोरोना ज्यादा भयंकर है| बनिस्बत चीन से फैले वायरस के| यह मूढ़ता और बुद्धिशून्यता का चरम हो गया है| इन्हीं प्रधान मंत्री ओली ने कहा कि सुता क्षेत्र नेपाल का है| जबकि गोरखपुर से लगा यह इलाका बिहार के पश्चिमी चंपारण जनपद का भूभाग है |
पण्डित ओली की एक और ख्याति है| उनके नाम से रंग बिरंगे एनजीओ पलते हैं| सारा धन (देसी व विदेसी) इन्हीं के मार्फ़त जमाखर्च होता है| पिछले अप्रैल में आये भूकम्प के समय बटोरी 40 लाख डालर की राशि अभी तक राहत में खर्च नहीं हुई| तो किसके जेब में खो गयी? ओली जानें| विचारधारा से कम्युनिस्ट ओली लेनिनवादी नहीं हैं, वे स्तालिनवादी हैं| कट्टर हैं| शायद ही कोई अपराध उनसे नहीं हुआ हो| नेपाल समाजवादी पार्टी के नेता सुरेन्द्र यादव का अपहरण तथा हत्या की साजिश का श्रेय ओली को जाता है|
यहाँ यादगार बात है कि जब भूटान का डोकलाम वाला हादसा हुआ था तो भारत अड़ गया| चीन को पीछे हटना पड़ा था| ठीक तभी राहुल गाँधी चीन के राजदूत के दिल्ली-स्थित शांतिपथ आवास में रात्रिभोज पर गये थे| फिर वे तिब्बत भी गए थे| इस बार वे खामोश हैं| शायद उनके पिताश्री के नाना की 1962 के सीमा संग्राम में हुई पराजय का बोध ताजा रहा होगा| इस बार उनकी जननी और भगिनी भी मोदी पर कुछ बोली नहीं| शायद योगी की बसों पर अटकी होंगी| उनकी टिप्पणी अपेक्षित थी जब ओली शर्मा ने नरेंद्र मोदी की भर्त्सना में राय दी थी| वे बोले थे कि सीमा मामले पर भारतीय प्रधान मंत्री “सत्यमेव जयते” पर यकीन करते हैं अथवा “सिंहमेव जयते” (ललाट के तीन शेर) को मानते हैं| अर्थात बल प्रयोग पर भरोसा है?
दुखद आश्चर्य होता है कि पूज्य मत्स्येन्द्रनाथ द्वारा पवित्र की गयी भूमि आज अनीश्वरवादी कम्युनिस्टों के चंगुल में सिसक रही है| विश्व के इस एकमात्र हिन्दू राष्ट्र पर भी तेरहवीं सदी में शमशुद्दीन बेग आलम नाम के इस्लामिक आक्रमणकारी ने हमला किया था। इस्लामिक सेना काफी बड़ी थी और नेपाल की गुरखा सेना बेहद छोटी थी। फलस्वरूप गुरखा हार गए लेकिन हमेशा की तरह वे बहादुरी से लडे थे जिससे इस्लामिक सेना को भी बडा भारी नुकसान हुआ था। युद्ध के पश्चात् गोरखा सेनापति अकेला बचा था और दस दस मुस्लिम सैनिकों को टक्कर दे रहा था। यह नजारा देख कर शमशुद्दीन ने अपने सैनिकों को लडाई रोकने का आदेश दिया और त्रस्त होकर मैदान छोड़ दिया|
आज इस्लामाबाद के साये में भारत-नेपाल सीमा पर मस्जिदों का बेतहाशा निर्माण हो गया है| चीन के साथ मिलकर, पाकिस्तान से यारी कर पण्डित ओली भारत-विरोधी त्रिगुट रच रहे हैं| नेपाल की धर्मप्रिय जनता को समाधान पर सोचना होगा|