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ड्रैगन का नया पैंतरा, चीन ने लद्दाख की समूची गलवां घाटी पर दावा ठोक तनाव और बढ़ाया

नई दिल्ली। कोविड-19 की वजह से अंतरराष्ट्रीय दबाव टालने में जुटा चीन अब भारत के साथ अपने सीमा विवाद को लेकर पूरा माइंड गेम खेलने में जुट गया है। लद्दाख की गलवां घाटी में भारत के नियंत्रण वाले इलाके में अपने सैनिकों को भेजने के बाद चीन ने इस समूचे क्षेत्र पर अपना दावा पेश कर दिया है। इस तरह का दावा सीधे चीन की सरकार के किसी प्रतिनिधि ने नहीं, बल्कि वहां की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्य समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स के जरिए पेश किया गया है।

चीन ने मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के आलेख के जरिए दिखाए तेवर

तनाव के लिए पूरी जिम्मेदारी भारत पर मढ़ी

इस आलेख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा तनाव के लिए पूरी जिम्मेदारी भारत पर डालते हुए कहा गया है कि भारत ने पूरी सोची-समझी रणनीति के तहत चीन के अधिकार वाली गलवां घाटी में घुसपैठ की है। मई के पहले हफ्ते से ही भारतीय सेना चीन के इलाके में प्रवेश कर रही है और जानबूझकर चीन के सैनिकों से उलझ रहे हैं। भारत को इस तरह से उकसाने की प्रवृत्ति से बाज आना चाहिए क्योंकि यह भारत व चीन के रिश्तों पर असर डालेगा और डोकलाम घटनाक्रम में जो हालात बने थे मामला उससे भी ज्यादा बढ़ सकता हैं।

लंबे समय तक इस तनाव को बनाए रखने को तैयार

आगे कहा गया है कि डोकलाम में जो तनावपूर्ण स्थिति बनी थी, उसे दूर करने में दोनों देशों के नेताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब फिर वैसी स्थिति नहीं बननी चाहिए। तनाव को लंबा खींचने की रणनीति यह आलेख चीन की पूर्वी लद्दाख को लेकर सोच को भी सामने लाता है और संकेत देता है कि वह लंबे समय तक इस तनाव को बनाए रखने को तैयार है।

आलेख में वर्ष 1962 के युद्ध का भी जिक्र

यह बात उसकी तरफ से एक हफ्ते के भीतर ही भारी पैमाने पर अस्थाई कैंपों के निर्माण से भी पता चलती है। आलेख में वर्ष 1962 के युद्ध का भी जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि अभी अमेरिका के साथ चीन के तनावपूर्ण रिश्ते हैं, लेकिन उसकी स्थिति वर्ष 1962 से बहुत अच्छी है जब उसने भारत को करारी शिकस्त दी। तब भारत व चीन के हालात काफी हद तक समान थे, लेकिन अभी चीन की अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुणी बड़ी है।

तनाव को खत्म करने का रास्ता भी बताने की कोशिश

उल्लेखनीय बात यह भी है कि ग्लोबल टाइम्स के इस आलेख से एक तरह से इस तनाव को खत्म करने का रास्ता भी बताने की कोशिश की गई है। इसमें सीधे तौर पर कहा गया है कि भारत को चीन के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए चीन के बारे में पश्चिमी देशों की सोच को छोड़ना होगा। अमेरिकी चश्मे से चीन को न देखने की हिदायत अमेरिका का जिक्र करते हुए कहा गया है कि जो लोग भारत की अमेरिका की तरफदारी करने वाली नीति के समर्थक हैं, वे भी राष्ट्रपति ट्रंप की अमेरिका फ‌र्स्ट नीति का समर्थन नहीं कर सकते।

भारत चीन को अमेरिकी चश्मे से नहीं देखे

ट्रंप प्रशासन भारत को चीन के खिलाफ भड़का रहा है, ताकि वह इसका फायदा उठा सके। अंत में यह उम्मीद जताई गई है कि भारत अपनी हजारों साल पुरानी सभ्यता के मुताबिक चीन के साथ रिश्ते को अमेरिकी चश्मे से नहीं देखेगा। यह भारत के हित में है कि वह चीन की वास्तविकता को समझेगा और अपनी नीतियों में वैसा ही बदलाव करेगा।

सनद रहे कि गालवां नदी घाटी के पास भारत व चीन के बीच 1962 के दौरान भी लड़ाई हुई थी। चीन ने वर्ष 1960 से ही इस क्षेत्र को लेकर नए दावे करने शुरू कर दिये थे, जबकि भारत समूचे अक्साई चीन को अपना हिस्सा मानता है। अक्साई चीन वह इलाका है, जिसे पाकिस्तान ने अनाधिकृत तरीके से चीन को दे रखा है।

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