राजेश श्रीवास्तव
पिछले दो दिनों से आम जनमानस के बीच इस तरह के सवाल उठने लगे हैं कि आखिर सरकार लॉक डाउन की तरफ क्यों नहीं बढ़ रही है। वह भी तब जब भारत में अब यह संख्या प्रतिदिन तेरह से 15 हजार तक बढ़ रही है और मरने वालांे का रोज का आंकड़ा भी तकरीबन 35० से ज्यादा हो रहा है। आखिर सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत के बाद भी इस पर कोई रणनीति क्यों नहीं बनायी। खुद उत्तर प्रदेश की भी स्थिति अब डराने वाली हो गयी है। यहां भी अब हर रोज पांच सौ से ज्यादा मरीज हो रहे हैं। पिछले तीन दिनों से तो यह आंकड़ा 7००-8०० हो गया है। आम जनमानस भले ही इस तरह की चिंता करें पर सरकार अब लॉक डाउन जैसी चीज करने से बच रही है इसके पीछे कारण साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शायद अब यह भ्रम हो रहा है कि अनलॉक करने से अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है। यह कयास नहीं है, मुख्यमंत्रियों से कोरोना मामलों पर बातचीत के बाद जब उन्होंने संबोधित किया तो उनकी पूरी बातचीत का मतलब तो कुछ ऐसा ही निकल रहा था। लेकिन जब उनके भाषण की विवेचना करेंगे तो आपको लगेगा कि उनको उद्बोधन भ्रम से अधिक कुछ नहीं था क्योंकि उन्होंने जो आंकड़े गिनाये वह यथार्थ और उम्मीद पर तो खरे उतरते नहीं दिखायी दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने 16 जून को 21 राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपालों से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए बात करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘ग्रीन शूट’ दिखने लगा है यानी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में कुछ आंकड़े दिए। जैसे उन्होंने कहा कि इस साल खरीफ की फसल की खरीद 12-13 फीसदी ज्यादा हुई है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में दोपहिया वाहनों की बिक्री लॉकडाउन से पहले की स्थिति के 7० फीसदी के बराबर हो गई है। खुदरा कारोबार में डिजिटल भुगतान भी लॉकडाउन के पहले की स्थिति में पहुंच गया है। इन सब आंकडों के आधार पर प्रधानमंत्री ने आर्थिक क्ष्ोत्र में सुधार का दावा किया। पर यह एक किस्म का भ्रम है। अगर प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों का या देश के लोगों को हौसला बढ़ाने के लिए इन आंकडों की जानकारी दी तो अलग बात है, लेकिन अगर सरकार सचमुच समझ रही है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच उसके लॉकडाउन हटा देने से आर्थिकी पटरी पर लौट रही है तो यह निश्चित रूप से भ्रम से अधिक कुछ नहीं लगता है।
इसकी असलियत को समझने के लिए सबसे पहले तो यह समझना होगा कि लॉकडाउन शुरू होने से पहले की क्या स्थिति थी? लॉकडाउन शुरू होने के बाद एक हफ्ते बाद पिछला वित्त वर्ष खत्म हुआ था। वित्त वर्ष 2०19-2० के आखिरी महीने के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन लागू हुआ था। अभी लॉकडाउन के मध्य में उस तिमाही का आर्थिक आंकड़ा आया तो पता चला कि जनवरी से मार्च की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 3.1 फीसदी रही और उस पूरे साल की जीडीपी की वृद्धि दर 4.2 फीसदी रही। जनवरी से मार्च की तिमाही से पहले लगातार छह तिमाहियों में विकास दर में गिरावट हुई। जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तब देश की विकास दर आठ फीसदी से ऊपर थी। दो साल बाद तक यह स्थिति बनी रही पर नोटबंदी के फैसले के बाद आर्थिक विकास दर गिरने लगी और उसके बाद गिरती ही गई। वह गिर कर 3.1 फीसदी पर आ गई। अप्रैल से जून की जीडीपी का आंकड़ा अगले महीने आएगा, जिसका और नीचे जाना तय है।
इसलिए अगर प्रधानमंत्री बार बार यह मिसाल दे रहे हैं कि लॉकडाउन से पहले की स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं यह भी कोई खुश होने की बात नहीं है। भारत जैसे देश के लिए तीन-चार फीसदी की विकास दर का कोई मतलब नहीं है। अगर प्रधानमंत्री के इस लक्ष्य पर ही विचार करें कि भारत को अगले पांच साल में पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है तब भी उसके लिए अगले पांच साल भारत को दस फीसदी से ज्यादा की विकास दर से बढ़ना होगा, जो किसी हाल में अभी संभव नहीं लग रहा है। अभी तो दुनिया भर की एजेंसियों ने भारत की विकास दर शून्य या उससे भी नीचे निगेटिव में जाने का अनुमान जाहिर किया है। प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से यह भी कहा कि अनलॉक-एक के दो हफ्ते हो गए हैं और अब उन्हें अनलॉक-दो के लिए तैयार रहना है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री सचमुच इसकी तैयारी कर रहे हैं। वे इस बात को मान चुके हैं कि कोरोना वायरस के साथ रहते हुए सब कुछ खोल देना है। वे इस भ्रम में हैं कि सब कुछ खोल देने से विकास दर फिर से पटरी पर लौट आएगी, जबकि हकीकत यह है कि अनलॉक-एक से कहीं भी बाजारों में रौनक नहीं लौटी है। ज्यादातर बड़े बाजार बंद हैं और जहां दुकानें खुली हैं वहां कामधंधा जीरो है। दुकानों से ग्राहक नदारद हैं और इसका कारण यह है कि सरकार ने कोरोन वायरस से निपटने की योजना के तहत जो प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया उसमें सरकार का सारा ध्यान सप्लाई साइड पर रहा। उसने डिमांड साइड का ध्यान नहीं दिया, मांग बढ़ाने का कोई भी उपाय नहीं किया गया। लोगों के हाथ में रुपया नहीं पहुंचा और इसका नतीजा यह है कि अभी महीनों, बरसों तक बाजार में मांग नहीं लौटने वाली है। इस बात को समझ कर ही दुनिया भर की रेटिग एजेंसियों ने भारत की रेटिग बदली है। भारत की रेटिग लगभग जंक के पास पहुंच गई है। यहीं हकीकत है, बाकी भ्रम है। लोगों ने बैंकों से नकदी निकाल कर घरों में रख लिया है और चूंकि दुकानें काफी समय तक बंद रहीं तो लोगों ने ई-कॉमसã की सुविधाओं का ज्यादा लाभ उठाया, जिससे डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी हो गई। इसके अलावा इन बातों का कोई मतलब नहीं है। इसलिए अभी ‘ग्रीन शूट’ का मतलब सिर्फ इतना है कि लोग जी-खा रहे हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह कोरोना संक्रमण रोकने की कारगर नीति बनाये और सब्जबाग न दिखाये।