मुंबई। राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए शनिवार (जून 27, 2020) को कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। 1962 के युद्ध का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि किसी पर आरोप लगाते समय यह भी देखना चाहिए कि अतीत में क्या हुआ था।
शरद पवार का इशारा कॉन्ग्रेस पार्टी की ओर था, जो गलवान घाटी में चीन के साथ लद्दाख सीमा पर चल रहे गतिरोध को लेकर केंद्र पर हमला कर रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, शरद पवार ने यह बयान कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी द्वारा केंद्र सरकार पर लगाए गए चीनी आक्रमण के सामने आत्मसमर्पण करने के आरोप के सम्बन्ध में दिया।
कॉन्ग्रेस पार्टी अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के नेतृत्व में, पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 15 जून को हुई हिंसक झड़प के बाद से केंद्र पर तंज कर रही है। उनका कहना है कि पीएम मोदी स्पष्ट करें कि चीन ने लद्दाख में भारत में घुसपैठ की है या नहीं। हालाँकि, पीएम मोदी इस सम्बन्ध में पहले ही आधिकारिक रूप से कह चुके हैं कि चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ नहीं की और हमारी सेना ने उन्हें मुँहतोड़ जवाब दिया।
इस पर राकांपा (NCP) अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि 1962 के युद्ध के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब पड़ोसी देश ने भारतीय भूमि के बड़े हिस्से पर दावा किया है।
उन्होंने कहा- “हम यह नहीं भूल सकते कि 1962 में क्या हुआ था जब चीन ने भारत के क्षेत्र के 45,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। ये आरोप लगाते समय, किसी को यह भी देखना चाहिए कि अतीत में क्या हुआ था। यह राष्ट्रीय हित का मुद्दा है और किसी को इस पर राजनीति में नहीं करनी चाहिए।”
गौरतलब है कि शरद पवार की राकांपा (NCP) शिवसेना के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार में कॉन्ग्रेस के साथ उनकी सहयोगी पार्टी है। अक्साई चिन क्षेत्र के विषय में बात करते हुए राकांपा प्रमुख ने यह भी कहा कि गलवान घाटी में गतिरोध के लिए केंद्र को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
उन्होंने कहा – “जब भी चीनी सैनिकों ने भारतीय जमीन पर अतिक्रमण करने की कोशिश की, हमारे सैनिकों ने चीनी सेना के जवानों को पीछे धकेलने का प्रयास किया है। यह कहना कि यह किसी एक की असफलता है या किसी रक्षा मंत्री की विफलता है, सही नहीं है। अगर हमारी सेना अलर्ट पर नहीं होती, तो हमें चीनी दावे की जानकारी नहीं होती।”
पवार ने भारत और चीन के बीच समझौते का हवाला देते हुए बताया कि दोनों राष्ट्रों ने एलएसी पर बंदूक का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला किया था।
उल्लेखनीय है कि गत 15 जून को भारत-चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। जिसके बाद से राहुल गाँधी निरंतर भारती सेना के नाम पर इसे राजनीतिक रंग देने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
पवार ने सर्वदलीय बैठक में भी दिया था केंद्र का साथ
गलवान घाटी में चल रहे गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने स्पष्ट कहा था कि सीमा पर सैनिक हथियार के साथ जाते हैं या नहीं, यह अंतरराष्ट्रीय संधि से तय होता है और सियासी दलों को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
दरअसल, शरद पवार कॉन्ग्रेस की ही सरकार में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय रक्षा मंत्री रह चुके हैं। वे 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच पहली बार शुरू हुए शांति प्रयासों के अगुआ भी रहे हैं। रक्षा मंत्री के रूप में 1993 में दोनों देशों के बीच पीस एंड ट्रंक्विलिटी एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने चीन भी वही गए थे।