राजेश श्रीवास्तव
पिछले 22 दिनों से पूरे देश मंे जहां पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार कुछ न कुछ बढ़ोत्तरी हो रही हैं। वहीं दिल्ली में तो डीजल पेट्रोल से भी महंगा बिक रहा है। शायद दिल्ली नया इतिहास गढ़ रही है। लेकिन जब यह स्थिति तब है जब क्रूड आयल की कीमतें बेहद कम हैं और जनता की जेब बेहद ढीली। ऐसा नहीं कि वर्तमान की केंद्र सरकार इस सच से वाकिफ नहीं है क्योंकि वह खुद इन्हीं स्थितियों के विरोध में सड़कों पर उतर चुकी है। इसके लिए आपको जरा पीछे जाना होगा जब कांग्रेस के मनमोहन सिंह के कार्यकाल में क्रूड आयल में जबरदस्त उछाल आने के चलते पेटàोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की गयी थी तब उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबरदस्त मोर्चा खोला था और पूरे देश में भाजपा ने जगह-जगह प्रदर्शन किये थ्ो। लेकिन आज सरकार का यह मानना है कि देश कोरोना काल से गुजर रहा है। सरकार का खजाना खाली है ऐसे में इस कारण पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं ।
जानकारों की मानें तो देश में कोरोना के प्रकोप को देखते हुए लगभग ढ़ाई महीने तक लॉकडाउन लागू रहा। इस कारण सरकार का खजाना खाली हो गया था। इसके बाद सरकार के पास पेट्रोल-डीजल एकमात्र ही ऐसा सोर्स था, जहां से वो अच्छा राजस्व प्राप्त कर सकती थी। जीएसटी और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में तो कोरोना लॉकडाउन की वजह से भारी गिरावट आई है। अप्रैल में सेंट्रल जीएसटी कलेक्शन महज 6,००० करोड़ रुपये का हुआ, जबकि एक साल पहले इस अवधि में सीजीएसटी कलेक्शन 47,००० करोड़ रुपये का हुआ था। इस कारण सरकार को लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने पड़े।
दरअसल, कोरोना काल में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट आई, तो सरकार ने इसे राजस्व बढ़ाने के मौके के रूप में देखा। जब कच्चे तेल की कीमत में कमी लगातार जारी रही तो सरकार ने टैक्सेज बढ़ाकर इनके दाम बढ़ा दिए। इससे पेट्रोलियम कंपनियों को तो मुनाफा नहीं हुआ, लेकिन सरकार का राजस्व काफी बढ़ा। पिछले पांच सालों में सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज ड्यूटी से 2.23 लाख करोड़ रुपये का राजस्व कमाया है। वहीं इससे पहले पेट्रोलियम पदार्थों से सरकार का राजस्व इससे आधा था।
बता दें कि सरकार पिछले लंबे वक्त से पेट्रोल और डीजल की कीमत के अंतर को कम करना चाह रही थी। इसके पीछे का कारण यह है कि पेट्रोल और डीजल की लागत एक समान होती है। डीजल पहले इसलिए सस्ता था, क्योंकि इस पर सरकार सब्सिडी देती थी। डीजल पर सब्सिडी देने के पीछे अब तक की सरकारों की कल्याणकारी सोच होती थी। दरअसल, डीजल का प्रयोग खेती, बिजली और ट्रांसपोर्ट जैसे ज़रूरी सेक्टर में होता है। हालांकि, 2०14 से पहले यूपीए सरकार में डीजल पर सब्सिडी को बोझ काफी ज्यादा हो गया था। इसी कारण पिछले लंबे वक्त से पेट्रोल और डीजल की कीमत को एक समान करने की बात हो रही थी। पिछले कुछ वक्त में मोदी सरकार ने पेट्रोल से ज्यादा डीजल पर टैक्स लगाया है। इस कारण ही डीजल की कीमत आज पेट्रोल से ज्यादा हो गई।
इंडियन ऑयल के मुताबिक पेट्रोल की बेस प्राइस जहां 22.11 रुपये प्रति लीटर है, वहीं डीजल की बेस प्राइस 22.93 रुपये प्रति लीटर है। लेकिन सच यह भी है कि सरकार भले ही सब्सिड़ी की मार की बात कर रही हो लेकिन डीजल की कीमत बढ़ने से आम आदमी पर इसकी चौतरफा मार पड़ेगी। इससे पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो महंगा होगा ही साथ ही महंगाई भी बढ़ेगी। खेती पर भी इसका काफी असर पड़ेगा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के किराए के साथ-साथ ऑटो सेक्टर की बिक्री पर भी इसका गंभीर असर होगा। एक दूसरी वजह यह भी है कि मई के पहले हफ्ते में भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर भारी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई। पेट्रोल पर प्रति लीटर उत्पाद शुल्क 1० रुपये बढ़ाया गया, जबकि डीजल पर प्रति लीटर उत्पाद शुल्क 13 रुपये बढ़ाया गया। यहां भी डीजल के महंगा होने की राह तैयार की गई।
बता दें कि प्रति दिन सुबह छह बजे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है। सुबह छह बजे से ही नए रेट लागू हो जाते हैं। पेट्रोल और डीजल के रेट में एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और अन्य चीजें जोड़ने के बाद इसका दाम लगभग दोगुना हो जाता है। बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में ईंधन की कीमत 1०० के आंकड़ों को छू सकती है। ऐसे में पेट्रोल और डीजल का दाम अगर बढ़ता रहा तो, जल्द ही कई सामानों का दाम भी बढ़ सकता है।