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कानपुर कांड ने ताजा कर दिए यूपी पुलिस के कई पुराने जख्म

लखनऊ। अपराध और अपराधियों के विरुद्ध मुहिम के तहत कार्रवाई के बाद भी पुलिस कुख्यातों के दुस्साहस को कुचलने में नाकाम रही है। उत्तर प्रदेश के कानपुर की घटना ने शासन से लेकर पूरे पुलिस महकमे को हिलाकर रख दिया है। यूपी पुलिस के इतिहास में कभी इतनी दुर्दांत घटना नहीं हुई, जिसकी कीमत उसे इतनी बड़ी शहादत से चुकानी पड़ी हो। वस्तुत: राजनीतिक संरक्षण ही ऐसे अपराधियों का मनोबल बढ़ाते रहे हैं। जरायम की दुनिया से निकलकर राजनीतिक दलों में दखल और अपराधियों के बाहुबली बनने की हसरतें हमेशा पुलिस पर ही भारी पड़ी हैं। कानपुर कांड ने एक बार फिर यूपी पुलिस के जख्म ताजा कर दिए हैं।

पुलिस अधिकारी हो या कर्मीं, सब सकते में हैं। उत्तर प्रदेश में इससे पूर्व 22 जुलाई, 2007 को कुख्यात दस्यु ददुआ गिरोह का खात्मा करने के बाद पुलिस जंगल में ठोकिया गिरोह की तलाश कर रही थी। तब बांदा के फतेहगंज क्षेत्र में अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया ने अपने साथियों के साथ मिलकर पुलिस टीम को घेर लिया था और ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं। उस वारदात में एसटीएफ के छह जवान शहीद हुए थे। पुलिस ने इस घटना के करीब एक साल बाद मुठभेड़ में ठोकिया को मार गिराया था।

दो मार्च, 2013 को प्रतापगढ़ के कुंडा में पुलिस पर किए गए हमले में सीओ जियाउल हक को मौत के घाट उतार दिया गया था। इससे पूर्व 16 जून, 2009 को कुख्यात दस्तु घनश्याम केवट से हुई मुठभेड़ में पीएसी के प्लाटून कमांडर समेत दो पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे जबकि तत्कालीन डीआइजी वीके गुप्ता गोली लगने से घायल हुए थे।

वर्ष 1997 में कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ के हजरतगंज में उसे पकड़ने गई पुलिस टीम में शामिल उपनिरीक्षक आरके सिंह कीे गोली मारकर हत्या कर दी थी। बाद में एसटीएफ ने श्रीप्रकाश को मार गिराया था। इससे पूर्व वर्ष 2004 में नक्सलियों ने चंदौली में लैंडमाइन से पीएसी के ट्रक को उड़ा दिया था। तब करीब 17 जवान शहीद हुए थे। किसी बदमाश को पकड़ने गई पुलिस टीम के साथ हुई मुठभेड़ में कानपुर कांड अब तक की सबसे बड़ी घटना बन गई है।

कुछ अन्य घटनाएं

  • वर्ष 1994 में पडरौना में डकैतों के पुलिस टीम पर हमले में छह पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
  • वर्ष 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में उनके दो सरकारी गनर शहीद हुए थे।
  • वर्ष 2017 में डकैत बबली कोल के साथ हुई मुठभेड़ में इंस्पेक्टर जेपी सिंह शहीद हुए थे।

खाकी के इकबाल पर फिर भारी पड़ा दुस्साहस : पुलिस की हनक और इकबाल से ही कानून-व्यवस्था संभलती है। एक दौर था जब गांवों में चौकीदार की लाल पगड़ी देखकर ही बदमाश भाग खड़े होते थे। अपराधियों के बढ़ते दुस्साहस का ही नतीजा है कि अब वे पुलिस पर सीधे गोली दागने से भी पीछे नहीं हटते। सपा शासनकाल में तो पुलिस पर हर 32वें घंटे पर पुलिस पर हमले की घटनाएं सामने आ रही थीं। कानून-व्सवस्था के मोर्चे पर भाजपा सरकार ने कई कड़े कदम उठाए। अपराध व अपराधियों के विरुद्ध जीरो टालरेंस और ‘बदमाशों पर टूट पड़ो की रणनीति’ पर कदम बढ़ाए।

अब तक मारे गए 113 अपराधी : पुलिस कार्रवाई पर नजर दौड़ाएं तो 20 मार्च 2017 से एक जुलाई मध्य सूबे में पुलिस व अपराधियों के बीच 6143 मुठभेड़ हुई हैं। इस दरम्यान पुलिस ने 13241 अपराधियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है। पुलिस की गोली लगने से 2250 से अधिक अपराधी घायल हुए और 113 बदमाशों को पुलिस ने मौत के घाट भी उतारा। बदमाशों से हुए इन मुकाबलों में पुलिस ने डटकर खतरों का सामना भी किया। बदमाशों से मुठभेड़ के दौरान 881 पुलिसकर्मी घायल हुए, जबकि पांच पुलिसकर्मी शहीद हुए। कानपुर कांड ने यह संख्या बढ़ा दी है। पुलिस बदमाशों पर लगातार शिकंजा तो कस रही है कि लेकिन उसके इकबाल पर रह-रहकर बदमाशों का दुस्साहस भारी पड़ता है। कानपुर कांड ने पुलिस के सामने नई चुनौतियां जरूर खड़ी कर दी हैं।

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