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कानपुर कांड के बहाने अखिलेश ने सरकार को घेरा, कहा- सत्ता व अपराध के गठजोड़ का वीभत्स दौर

लखनऊ। कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की घटना को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को एक बार फिर घेरा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश आज सत्ता व अपराध के गठजोड़ के उस वीभत्स दौर में है, जहां न तो पुलिस को मारने वाले दुर्दांत अपराधी पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही उस अधिकारी पर जिसकी संलिप्तता का प्रमाण चतुर्दिक उपलब्ध है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि चाहे कोरोना हो, भ्रष्टाचार हो या फिर कानून व्यवस्था सभी नियंत्रण के बाहर हैं। चारों तरफ अराजकता व्याप्त है। जनता त्रस्त है। भाजपा सरकार में पुलिस पर भी लगातार हमले हो रहे हैं। सत्ता के अपराधीकरण ने पूरे प्रदेश में असुरक्षा की भावना जगा दी है। अखिलेश ने बुधवार को जारी बयान में कहा कि प्रदेश सत्ता व अपराध के गठजोड़ के उस वीभत्स दौर में हैं जहां न तो पुलिस को मारने वाले दुर्दांत अपराधी पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही अधिकारी पर जिसकी संलिप्तता का प्रमाण जगजाहिर है। ऐसे में तथाकथित निष्पक्ष जांच भी उनसे करवाई जा रही है जो खुद कठघरे में खड़े हैं।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि कानपुर के बिकरू कांड की आग अभी बुझी भी नहीं कि अलीगढ़ की तेबथू पुलिस चौकी के अंदर घुसकर पुलिस पर हमला हो गया। सुलतानपुर में 24 घंटे में डबल मर्डर से सनसनी फैल गई। सोमवार शाम को बदमाशों ने रामपुर निवासी विनय शुक्ल को गोलियों से छलनी कर दिया। बलिया में तैनात पीसीएस अधिशासी अधिकारी सुश्री मणि मंजरी राय का खुद के खिलाफ हो रहे षड्यंत्र से हारकर आत्महत्या करना कई सवाल खड़े करता है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री यह दावा करते नहीं थकते कि उनके राज में अपराधी डरे हुए हैं, ज्यादातर जेलों में हैं लेकिन सच्चाई यह है कि भाजपा सरकार और उसकी पुलिस के पास तो इलाकों के मोस्ट वांटेड की सूची भी नहीं है। कानपुर के अपराधी की तो क्राइम हिस्ट्री को दरकिनार कर उसका नाम ही टॉपटेन अपराधियों की सूची से बाहर कर दिया गया था। अक्षम नेतृत्व के कारण प्रदेश बुरी तरह संकट ग्रस्त है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार पर तंज कसते ट्वीट किया कि अब तो विकास खुद ही पूछ रहा है कि ‘विकास’ को कब गिरफ्तार करोगे, करोगे भी या नहीं? वैसे उत्तर प्रदेश की ‘नाम बदलू’ भाजपा सरकार के पास एक विकल्प और है। किसी और का नाम बदलकर ‘विकास’ रख ले और फिर बाकी क्या कहना, जनता खुद समझदार है।

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