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34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में बदलाव- कई बदलाव ऐसे हैं, जिन्हें वाकई पढ़ा और समझा जाना चाहिए

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बीते दिन लगभग 34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में बदलाव किया। कई बदलाव ऐसे हैं, जिन्हें वाकई पढ़ा और समझा जाना चाहिए। सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि देश को वैश्विक स्तर पर मुखिया बनाने के दौर में शिक्षा नीति की भूमिका सबसे अहम होगी।

चाहे सामाजिक न्याय और समानता हो या अर्थव्यवस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी या देश की एकता, शिक्षा की भूमिका लगभग हर क्षेत्र में अहम है। सरकार ने इन सारी बातों को मद्देनज़र रखते हुए शिक्षा नीति में बड़े पैमाने पर बदलाव किए हैं।

सरकार ने शिक्षा नीति के इन बदलावों को बुनियादी स्तर पर 4 हिस्सों में बाँटा है। पहले और दूसरे हिस्से में प्राथमिक और उच्च शिक्षा का ब्यौरा है। तीसरे हिस्से में भाषा, संस्कृति और तकनीक पर विस्तार से चर्चा की गई है। चौथे हिस्से में इस बात का ज़िक्र है कि कैसे सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और नई नीति लागू कैसे की जाए।

स्कूली शिक्षा

हमारे देश की शुरुआती पढ़ाई का ढाँचा 10+2 पर आधारित था। इसके हिसाब से एक बच्चा 6 साल की उम्र में पहली कक्षा में पहुँचता है। यानी 3 से 6 साल की उम्र के बीच उसका शिक्षा से कोई सरोकार नहीं रहता है। नए बदलाव के हिसाब से इसे 5+3+3+4 कर दिया गया है। और इसका नाम रखा गया है  Early Childhood Care and Education (ECCE), यानी 3 साल की उम्र से ही बच्चों की पढ़ाई शुरू होगी।

शुरुआती उम्र से तैयार किए जाएँगे बच्चे

सरकार ने ऐसा करने के पीछे उल्लेखनीय कारण दिया है।  सरकार का कहना है एक बच्चे के दिमाग का 85 फ़ीसदी विकास 6 साल की उम्र के पहले हो जाता है। ऐसे में यह बेहद ज़रूरी है कि वह पहली कक्षा में जाने के पहले विद्यालय (स्कूल) के लिए पूरी तरह तैयार रहे। बच्चों को बेहतर भाषा और अक्षर ज्ञान कराने के लिए अलग-अलग तरह के खेल और क्रियाकलापों का हिस्सा बनाया जाएगा।

एनसीइआरटी (NCERT) दो हिस्सों में बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करेगी। पहला 0-3 साल तक की उम्र के बच्चों के लिए और दूसरा 3-8 तक की उम्र के बच्चों के लिए। इसके अलावा प्राथमिक शिक्षा को आँगनबाड़ी से भी जोड़ा जाएगा। साथ ही आँगनबाड़ी को बहुत मज़बूती प्रदान की जाएगी।

कक्षा 1 से पहले बच्चों को “Preparatory Class” यानी “बालवाटिका” में भेजा जाएगा। इसमें पढ़ाने वाले शिक्षक का ज़ोर बच्चों को स्कूली शिक्षा के लिए तैयार करना होगा। इसके पहले आँगनबाड़ी में काम करने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को एनसीइआरटी के नीति-निर्देशों के आधार पर तैयार किया जाएगा। आदिवासी इलाकों के लिए ECCE के लिए “आश्रमशाला” बनाई जाएगी और इसमें भी ऊपर दी गई जानकारी के आधार पर काम होगा।

30 बच्चों पर 1 शिक्षक का लक्ष्य

सरकार के मुताबिक़ देश के 5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन्हें अंकों का सही ज्ञान नहीं है। सरकार का ज़ोर इस बात पर होगा कि वह जोड़, घटाव, गुणा और भाग करना सीखें। सरकार इस योजना पर चल रही है कि साल 2025 तक बच्चों को संख्याओं और अंकों की सही समझ हो जाए। इसके लिए बच्चों को कक्षा 3 तक अच्छे से अंकों की पढ़ाई करवाई जाएगी।

इसके अलावा पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की बहाली की जाएगी। छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) 30:1 रखा जाएगा, यानी 30 बच्चों पर एक शिक्षक। वहीं आर्थिक और समाजिक रूप से कमज़ोर बच्चों के लिए यह अनुपात 25:1 रखा जाएगा। इसके लिए सरकार एक राष्ट्रीय स्तर का पोर्टल भी संचालित करेगी, Digital Infrastructure for Knowledge Sharing (DIKSHA)। बच्चों के पोषण (Nutrition) और मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) का ख़ास ध्यान रखा जाएगा।

जिससे बच्चों की पढ़ाई बीच में न छूटे

सरकार इस बात पर भी विशेष ध्यान देगी कि ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में बच्चे विद्यालयों में दाख़िला लें और शिक्षा हासिल करें। कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों की पढ़ाई का सकल नामांकन अनुपात Gross Enrollment Ratio (GER) 90.9 % था। यानी 90.9 % बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं लेकिन आगे की पढ़ाई में ऐसा नहीं है।

कक्षा 9 से 10 और 11 से 12 तक यह अनुआत सिर्फ 79.3% और 56.5% है। सरकार इस लक्ष्य पर काम कर रही है कि साल 2035 तक 12वीं तक के बच्चों की पढ़ाई का GER 100% हो जाए। इसके लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बच्चों के लिए National Institute of Open Schooling (NIOS) के तहत Open and Distance Learning (ODL) भी शुरू की जाएगी। साथ ही साथ पढ़ाई जारी रखने के लिए उनको बढ़ावा देने के लिए पूर्व छात्रों और स्थानीय समुदाय के लोगों की मदद भी ली जाएगी।

किस उम्र में कितने दर्जे में होगा बच्चा

इस नीति से बच्चों की शुरुआती पढ़ाई का पूरा ढाँचा बदला जाएगा। इसे कक्षा और आयु वर्ग के हिसाब से बदला जाएगा। यह कुछ इस तरह होगा, 3-8 साल, 8-11 साल, 11-14 साल और 14-18 साल। 5+3+3+4 कुछ इस तरह होगा,

  • Foundational Stage: कुल 3 साल का प्री-स्कूल और कक्षा 1-2 की पढ़ाई 3 से 8 साल की उम्र तक
  • Preparatory Stage: 8 से 11 साल उम्र तक कक्षा 3 से 5 तक की पढ़ाई
  • Middle School Stage: 11 से 14 साल की उम्र तक कक्षा 6 से 8 तक की पढ़ाई
  • High School or Secondary Stage: कक्षा 9 से 12 की पढ़ाई कुल दो हिस्सों में, 9-10 पहले हिस्से में और 11-12 दूसरे हिस्से में

इसके अलावा अलावा ECCE पाठ्यक्रम में अच्छे व्यवहार, मान-सम्मान की भावना, नैतिकता, व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता और सहयोग की भावना से जुड़ी चीज़ें भी बताई जाएँगी।

बच्चों को बनाया जाएगा बहुभाषी

  • प्रायोगिक तरीके से पढ़ाई और सीखने पर ज़ोर दिया जाएगा, उदाहरण- किस्सागोई।
  • पाठ्यक्रम के लगभग हर पहलू में कला को शामिल किया जाएगा।
  • खेल-कूद को बढ़ावा दिया जाएगा, इसे फिट इंडिया मूवमेंट के तहत पढ़ाई में शामिल किया जाएगा।
  • बच्चों की पढ़ाई में ह्यूमैनिटीज़ (मानव मूल्यों) को भी शामिल किया जाएगा।
  • कक्षा 5 तक बच्चों की पढ़ाई में मातृभाषा अनिवार्य होगी। ऐसा निजी और सार्वजनिक दोनों तरह के विद्यालयों में किया जाएगा।
  • इसके अलावा भाषा की पढ़ाई पर ज़ोर दिया जाएगा। जिससे बच्चे ज़्यादा भाषाओं में संवाद कर सकें।
  • किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। बच्चों को 3 भाषाएँ पढ़ाने पर ज़ोर दिया जाएगा।
  • भाषाओं का चुनाव करने का अधिकार राज्य और बच्चों को दिया जाएगा।
  • एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना के तहत ‘The Languages of India’ नाम की पहल शुरू की जाएगी। इसके तहत बच्चों को बताया जाएगा कि भारत की एकता का आधार भाषाएँ रही हैं।
  • बच्चों की पढ़ाई में संस्कृत भी अनिवार्य रूप से शामिल की जाएगी।
  • संस्कृत के अलावा तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयाली, उड़िया, पर्शियन, प्राकृत और पाली भी (वैकल्पिक रूप से) शामिल की जाएगी।
  • रूसी, कोरियाई, जापानी, चीनी, जर्मन, फ्रांसीसी, स्पैनिश जैसी अंतर्राष्ट्रीय भाषा भी पढ़ाई में शामिल की जाएगी।
  • साथ ही सांकेतिक भाषा में बच्चों की पढ़ाई भी पाठ्यक्रम में शामिल की जाएगी।

बदला जाएगा परीक्षा और मूल्यांकन का स्वरूप

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत एनसीईआरटी National Curricular Framework, NCF 2020 लागू करेगा। इसका हर 5 से 10 साल में मूल्यांकन किया जाएगा। आसान शब्दों में इसका लक्ष्य बच्चों से किताबों का भार कम करना होगा। साथ ही इसका लक्ष्य बच्चों में सीखने समझने का कौशल तैयार करना होगा।

NCF के तहत बच्चों की परीक्षाओं का स्वरूप भी बड़े पैमाने पर बदला जाएगा। बोर्ड की परीक्षाओं में छात्रों को “बेस्ट ऑफ़ टू” असेसमेंट की सुविधा दी जाएगी। छात्रों के मूल्यांकन (असेसमेंट) के लिए National Assessment Centre बनाया जाएगा। इसका कार्य छात्रों की परीक्षाओं और मूल्यांकन के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना होगा। इसे लागू करने में State Achievement Survey (SAS) और National Achievement Survey (NAS) बनाया जाएगा।

विद्यालयों में विषय और प्रोजेक्ट संबंधी समूह (क्लब/सर्कल) बनाए जाएँगे। इसमें विज्ञान, गणित, संगीत, शतरंज, कविता, भाषा, परिचर्चा के अलग -अलग सर्कल बनाए जाएंगे। यह बच्चों की पढ़ाई से पूरी तरह होगा।

शिक्षकों के लिए भी होंगे तमाम नए अवसर

नई शिक्षा नीति में शिक्षकों के लिए भी काफी कुछ नया है। 4 साल के बैचलर ऑफ़ एजुकेशन प्रोग्राम के लिए विशेष छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया है। इससे स्थानीय स्तर पर काफी संख्या में रोज़गार पैदा होगा, खासकर महिला शिक्षिकाओं के लिए।

शिक्षकों का स्थानान्तरण भी विशेष परिस्थितियों में ही होगा। शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) को भी मज़बूत किया जाएगा। एक सुझाव के मुताबिक़ विद्यालयों को “स्कूल कॉम्प्लेक्स” बनाना चाहिए। इसके प्रबंधन के लिए स्थानीय लोगों को अभिवावकों की मदद ली जा सकती है।

शिक्षकों के पास अपने तरीके से पाठ्यक्रम लागू करने का अधिकार होगा। शिक्षकों को ऑनलाइन मंच दिए जाएँगे, जहाँ वह अपने सुझाव साझा कर सकें। उन्हें एक साल में 50 घंटे का समय खुद पर काम करने के लिए मिलेगा।इस दौरान अच्छा प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों को समय-समय पर प्रोन्नति भी मिलेगी।

साल 2022 के अंत तक National Professional Standards for Teachers (NPST) बनाई जाएगी। इसमें शिक्षकों के विकास प्रोन्नति से जुड़े दिशा-निर्देश मौजूद होंगे। दिव्यांग बच्चों के लिए अलग शिक्षक रखे जाएँगे, जिनका काम उन बच्चों के विकास पर ध्यान देना होगा। साल 2030 के अंत तक शिक्षकों को पढ़ाने के लिए 4 साल का बीएड अनिवार्य होगा।

दिव्यांग, ट्रांसजेंडर और लड़कियाँ सभी को समान शिक्षा

सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEDGs) से आने वाली आबादी को कई श्रेणी में बाँटा गया है। जिसमें मुख्य रूप से लैंगिक आधार पर (महिलाएँ और ट्रांसजेंडर), अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक को रखा गया है। इसके अलावा दिव्यांग, गरीबी रेखा से नीचे के लोग, तस्करी का शिकार हुए बच्चे, अनाथ और शोषित वर्ग से आने वाले बच्चे इन सभी के लिए सामान शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

जिन इलाकों में SEDGs श्रेणी के बच्चे ज़्यादा होंगे उन इलाकों को Special Education Zones घोषित कर दिया जाएगा। जवाहर नवोदय विद्यालय के तरह के विद्यालय तैयार किए जाएँगे जिसमें छात्रों को लगभग मुफ़्त सुविधाएँ मिलेंगी। इसमें लड़कियों और ट्रांसजेंडर की शिक्षा और सुरक्षा को मद्देनज़र रखते हुए छात्रावास तैयार किए जाएंगे।

इसके अलावा दिव्यांग अधिकार क़ानून 2016 के तहत दिव्यांग बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित कराने के लिए उचित कदम उठाए जाएँगे। दिव्यांग बच्चों को समान शिक्षा दिलाने के लिए शिक्षा पद्धति में उनके अनुसार बदलाव होंगे। SEDGs वर्ग के बच्चों के लिए कई छात्रवृत्ति योजना भी शुरू की जाएँगी।

पढ़ाई में बढ़ाई जाएगी गवर्नेंस की भूमिका

शिक्षा में गर्वनेंस को बढ़ावा देने के लिए इससे जुड़े अधिकारियों को अहम ज़िम्मेदारियाँ दी जाएगी। इसमें मुख्य रूप से ज़िला शिक्षा अधिकारी (DEO) और खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) शामिल किए जाएँगे। यह विद्यालयों के कॉम्प्लेक्स/समूह के साथ मिल कर नीति-निर्देश लागू करेंगे।

हर ज़िले या राज्य में “बाल भवन” का निर्माण कराया जाएगा जिसमें बच्चे हफ्ते के एक दिन जा सकेंगे। यह मूल रूप से सामुदायिक शिक्षा पर केन्द्रित होंगे और कई विद्यालयों के साथ मिल कर चलाए जाएँगे। विद्यालयों को बतौर ‘सामाजिक चेतना केंद्र’ भी स्थापित किया जाएगा।

सार्वजनिक विद्यालयों में होगा सुधार

पुरानी शिक्षा नीति में ज़्यादातर नीति-निर्देश तैयार करने का अधिकार कुछ ही इकाइयों के पास है। मसलन, स्कूली शिक्षा विभाग। इसका तंत्र ऐसा है कि बड़े बदलावों की जगह बहुत कम बचती है। इसकी वजह से निजी क्षेत्र में शिक्षा का व्यवसायीकरण बहुत बढ़ा है। शिक्षा भले महँगी हुई है लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो पा रहा है या नहीं।

इस ढाँचे में बदलाव के लिए कुछ निर्देश तैयार किए गए हैं। निजी से लेकर सार्वजनिक सभी तरह के विद्यालयों का उचित मूल्यांकन होगा। इससे बच्चों को बेहद शुरुआती स्तर से अच्छी शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा Sustainable Development Goal4 (SDG4) सुनिश्चित किया जा सकेगा। सार्वजनिक विद्यालयों को बढ़ावा दिया जाएगा जिससे बच्चों को वहाँ भी अच्छी शिक्षा मिले। अभिवावकों को इस बात का विकल्प कि वह बच्चों का दाख़िला यहाँ भी करवा सकते हैं। National Achievement Survey (NAS) के तहत बच्चों की नियमित रूप से जाँच कराई जाएगी।

उच्च शिक्षा के लिए कई खामियों का उल्लेख करते हुए उन पर काम करने की जरूरत बताई गई है। ये हैं;

  • सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए संस्थानों में अलग प्रावधान न होना।
  • शिक्षक और संस्थागत स्वायत्तता न होने की वजह से छात्रों का विकास न होना।
  • पाठ्यक्रम और विषयों के विस्तृत न होने से छात्रों में समग्र गुणों की कमी।
  • विश्वविद्यालयों में फंडिंग न होने के चलते शोध और अनुसंधान की कमी।
  • विश्वविद्यालयों में गवर्नेंस और मानकों की कमी।
  • नियमों की अनदेखी और फ़र्ज़ी तरीके से चल रहे शैक्षिक संस्थानों में बढ़ोतरी।

उच्च शिक्षा का हिस्सा लिबरल आर्ट्स

सॉफ्ट स्किल्स (बुनियादी कौशल) को भारतीय शिक्षा का अहम हिस्सा बनाया जाएगा। इसमें कला (विशेष रूप से लिबरल आर्ट्स) को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाएगा। छात्रों को ज़्यादा से ज़्यादा कला विधा की समझ और जानकारी देने के लिए तक्षशिला और नालंदा की पद्धति पर काम किया जाएगा।

बाणभट्ट के कादम्बरी में 64 कलाओं के बारे में विस्तार से बताया गया था। इसमें सिर्फ चित्र कला और गायन नहीं बल्कि विज्ञान से संबंधित तमाम विषय शामिल थे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में भी इस तरह की शिक्षा पर ज़ोर दिया जाएगा। इनके पाठ्यक्रम में भी ह्यूमैनिटीज़ और कला को शामिल किया जाएगा।

उच्च शिक्षा में मानव संबंधी मूल्यों को विशेष रूप से शामिल किया जाएगा, सत्य, धर्म, शांति, प्रेम, अहिंसा, नागरिक मूल्य और जीवन कौशल। एक एकेडमिक बैंक ऑफ़ क्रेडिट बनाया जाएगा जिसके तहत संस्थानों के क्रेडिट का ब्यौरा तैयार किया जाएगा।

दुनिया में भारतीय शिक्षा को बढ़ावा

देश में अच्छा प्रदर्शन करने वाले विश्वविद्यालयों को कई बड़े अवसर दिए जाएँगे। एक ऐसा केंद्र तैयार किए जाएगा जिसमें विदेशी छात्र भारतीय छात्रों के साथ मिल कर अनुसंधान संबंधी विषयों पर काम कर सकते हैं। दूसरे देशों के साथ इस पर समझौते भी किए होंगे जिससे ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में साझा कार्यक्रम पूरे किए जा सकें। इसमें छात्रों से लेकर प्राध्यापकों तक सभी शामिल होंगे।

देश में अच्छा प्रदर्शन करने वाले विश्वविद्यालयों को दुनिया के कुछ देशों में अपना परिसर बनाने का मौक़ा मिलेगा। इसके अलावा दुनिया के 100 सबसे अच्छे विश्वविद्यालय भारत में अपना परिसर स्थापित कर सकेंगे। साथ ही छात्रों को उच्च शिक्षा मुहैया कराने के लिए उन्हें आर्थिक मदद भी की जाएगी। इसके लिए नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल को बढ़ाया जाएगा। इसके अलावा शिक्षक और छात्रों का अनुपात कम से कम 10:1 और ज़्यादा से ज़्यादा 20:1 रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

जिससे छात्रों की उच्च शिक्षा जारी रहे

देश के हर वर्ग और हर क्षेत्र से आने छात्र उच्च शिक्षा जारी रखें इसके लिए भी कई नए प्रावधान किए गए हैं। सबसे पहले सरकार उच्च शिक्षा के लिए फंड बढ़ाएगी। उच्च शिक्षा में लिंगानुपात पर भी विशेष ध्यान रखा जाएगा। देश में ज़्यादा से ज़्यादा स्पेशल एजुकेशन ज़ोन बनाए जाएँगे। विश्वविद्यालयों में भारतीय और स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई कराने पर ज़ोर दिया जाएगा।

उच्च शिक्षा में छात्रवृत्ति भी बढ़ाई जाएगी और शिक्षा में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया जाएगा। उच्च शिक्षा में ऐसे बदलाव होंगे जिससे ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों का रोज़गार सुनिश्चित हो। इस बात का ख़ास ख़याल रखा जाएगा कि पढ़ाई के दौरान किसी छात्र का शोषण न किया जा रहा हो।

प्रोफेशनल स्टडीज़ को उच्च शिक्षा का अहम हिस्सा बनाया जाएगा। इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय, विधि विश्वविद्यालय, स्वास्थ्य और विज्ञान विश्वविद्यालय, तकनीकी विश्वविद्यालय समेत हर तरह के शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा दिया जाएगा। लक्ष्य के मुताबिक़ साल 2030 तक प्रोफेशनल स्टडीज़ प्रदान करने वाले हर संस्थान को समूह के तौर पर विकसित किया जाएगा। अलग-अलग प्रोफेशनल पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले संस्थानों के लिए उनकी आवश्यकता के हिसाब से निर्देश तैयार किए जाएँगे।

देश और दुनिया में ऐसी तमाम घटनाएँ हो रही हैं जिन पर शोध और अनुसंधान की ज़रूरत है। जैसे जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या बढ़ोतरी और नियंत्रण, बायो टेक्नोलॉजी, डिजिटल दुनिया का प्रभाव और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे कई अहम मुद्दे। ऐसे ज़रूरी मुद्दों पर अच्छे नतीजे हासिल करने के लिए सरकार शोध और अनुसंधान पर विशेष ध्यान देगी।

शोध और अनुसंधान, Research & Innovation (R&I) इतना अहम विषय होने के बावजूद भारत इस पर अपनी जीडीपी का केवल 0.69 हिस्सा खर्च करता है। वहीं दूसरे देशों से तुलना करें तो अमेरिका 2.8%, इज़रायल 4.3%, चीन 2.1% और दक्षिण कोरिया 4.2% हिस्सा खर्च करता है।

भारत भी अब इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम करने वाला है। भारत का इतिहास शोध और अनुसंधान के मामले में बेहद गहरा है, इस नीति में उसे वापस हासिल करने की बात की गई है। इसके लिए National Research Foundation (NRF) तैयार की जाएगी, जिसका काम देश के विश्वविद्यालयों में शोध कार्य को बढ़ावा देना होगा।

साथ ही यह विश्वविद्यालयों में होने वाले शोध का मूल्यांकन भी करेगा। इसके बाद कारगर शोध कार्यक्रमों की जानकारी सरकारी समूहों और एजेंसियों को देगा। शोध कार्यों को फंड दिलाना भी NRF के तहत ही आएगा।

कैसे लागू होंगे उच्च शिक्षा के बेहतर विकल्प

उच्च शिक्षा का स्वरूप बेहतर करने के लिए इसका रेगुलेटरी सिस्टम (लागू करने की पद्धति) बदला जाएगा। यह सारे कार्य भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) के तहत किए जाएँगे। इस आयोग में 4 स्वतंत्र इकाइयाँ शामिल की जाएँगी। इनके जरिए उच्च शिक्षा का बुनियादी ढाँचा सुधारा जाएगा। इसकी सबसे पहली इकाई होगी,

  • National Higher Education Regulatory Council (NHERC) का काम मुख्यतः रेगुलेशन सुनिश्चित करना होगा।
  • National Accreditation Council (NAC) का काम मान्यता दिलाना होगा।
  • Higher Education Grants Council (HEGC) का काम फंडिंग उपलब्ध कराना होगा।
  • General Education Council (GEC) का काम शिक्षा के उचित मानक तय कराना होगा।

 उच्च शिक्षा में गवर्नेंस

उच्च शिक्षा में गवर्नेंस को लेकर कई अहम कदम उठाए जाएँगे। सुविधाजनक मान्यता प्रणाली और स्वायत्तता तैयार की जाएगी। इसकी मदद से संस्थान खुद सकारात्मक बदलाव और बड़े कदम उठा सकेंगे।

उच्च शिक्षा संस्थानों में बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स स्थापित किया जाएगा। इनका काम उच्च शिक्षा संस्थानों को राजनीति दखलंदाज़ी से बचाकर रखना होगा। प्राध्यापकों की भर्ती करना होगा और संस्थागत निर्णय लेना होगा। यह शिक्षाविदों और शिक्षा से जुड़े अनुभवी लोगों का एक समूह होगा जो उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए स्वतंत्र रूप से काम करेगा। तय लक्ष्य के मुताबिक़ साल 2035 के अंत तक देश के लगभग सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स का यह समूह होगा।

भाषाओं के ज़रिए युवाओं को पढ़ाने का लक्ष्य

इसके अलावा जिस बात पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया जाएगा वह है युवाओं की शिक्षा और भारतीय भाषाओं का प्रचार। इन दो बातों के अलावा प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कला और संस्कृति को भी शामिल किया जाएगा। दशकों पहले देश में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन शुरू किया गया था, इसे आधार बनाते हुए सरकार देश के हर युवा को साक्षर और शिक्षित बनाने लक्ष्य लेकर चल रही है। देश भर में इसके लिए एडल्ट एजुकेशन सेंटर शुरू किए जाएँगे।

नई शिक्षा नीति में ‘अतुल्य भारत’ को आधार बनाते हुए भारतीय संस्कृति के एक बड़े हिस्से को पढ़ाई में शामिल करने की बात कही है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लगभग लुप्त बताया है। पिछले 50 सालों में लगभग 50 भारतीय भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं। इसके अलावा एक और नए तरह का संस्थान शुरू किया जाएगा Indian Institute of Translation and Interpretation (IITI)। इसका काम व्याख्या और अनुवाद संबंधी काम को बढ़ावा देना होगा।

भाषा और संस्कृति की पढ़ाई करने वालों के लिए छात्रवृत्ति शुरू की जाएगी। इतना ही नहीं डिजिटल इंडिया अभियान के तहत देश में आधुनिक माध्यमों के ज़रिए संवाद को बढ़ावा दिया जाएगा।

जीडीपी का 6% शिक्षा पर

नई शिक्षा नीति में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ को मज़बूत करने पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा। शिक्षा को सबसे ऊपर रखने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर ‘शिक्षा मंत्रालय’ किया जाएगा। इसके अलावा नई शिक्षा नीति में सबसे ज़्यादा इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी का 6% तक खर्च हो। फिलहाल यह 4.43% ही है। यह दुनिया के तमाम विकासशील और विकसित देशों से कमतर हैं। इसलिए नई शिक्षा नीति में शिक्षा पर किए जाने वाले खर्च को बढ़ावा देने की बात का ज़िक्र है।

यह भारत की साक्षरता और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए ही बहुत ज़रूरी है। सरकार इस योजना पर काम कर रही है कि 2030 से 2040 के दशक के बीच यह शिक्षा नीति पूरी तरह प्रभावी होगी।

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