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रांची से निकल कैसे क्रिकेट की दुनिया में छा गए धोनी, ऐसा रहा सफर

 

पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह दिया है. महेंद्र सिंह धोनी ने इंस्टाग्राम पोस्ट कर खुद के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने का ऐलान किया है. अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में एमएस धोनी ने लिखा, ‘आप सभी के प्यार और समर्थन के लिए बहुत धन्यवाद. आज शाम 7.29 बजे के बाद से मुझे रिटायर समझा जाए.’ अपने इस पोस्ट के साथ ही धोनी ने एक वीडियो भी शेयर किया है.

रांची से निकल कैसे क्रिकेट की दुनिया में छा गए धोनी, ऐसा रहा सफर

रांची के एक छोटे से परिवार से आकर क्रिकेट की दुनिया में छा जाने वाले महेंद्र सिंह धोनी एक बेहद साधारण से परिवार में पले बढ़ें. उन्हें अनेकों परेशानियों का भी सामना करना पड़ा. लेकिन उनके रास्ते के ये रोड़े क्रिकेट को लेकर उनके जुनून के सामने बौने साबित हुए. अब जबकि उन्होंने क्रिकेट की दुनिया से संन्यास ले लिया है आइए एक नजर उनके शानदार करियर पर डालते हैं.

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धोनी के स्पोर्ट्स टीचर केशव बनर्जी ने एक बार बताया था कि माही बचपन से ही छक्के मारने में माहिर थे. वो स्कूल खत्म होने के बाद मैदान में पहुंच जाते थे और करीब 3 घंटे अभ्यास करते थे. स्कूल में अभ्यास के दौरान अक्सर वो पास बने घरों की खिड़कियों के कांच तोड़ देते थे और जब गार्ड पूछते थे, तो बहाना बना देते थे कि किसी और ने पत्थर मारा होगा.

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मजबूरी में ट्रेन के टॉयलेट के पास सोकर किया सफर
राजदीप सरदेसाई अपनी किताब में बताते हैं कि धोनी 2016-17 रणजी सीजन में ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. जूनियर क्रिकेट के तौर पर वो कई बार बिना रिजर्वेशन वाले डिब्बों में सफर कर चुके थे. यहां तक कि धोनी को कई बार टॉयलेट के आसपास वाली जगहों में सोना पड़ता था. अब वो उस जगह पहुंच गए थे जहां उन्हें एसी के फर्स्ट क्लास डब्बे में सीट दी जा रही थी और साथ ही फैंस से बचने के लिए सिक्योरिटी भी मुहैया करवाई गई थी.

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16 साल में ठोकी पहली डबल सेंचुरी
1997 में एक स्कूल टूर्नामेंट में 16 साल के धोनी ने डबल सेंचुरी ठोकी और अपने पार्टनर के साथ 378 रनों की साझेदारी की. मजे की बात यह है कि यह मैच 40 ओवरों का था. इसका फायदा यह हुआ कि धोनी को मेकॉन क्रिकेट क्लब में एंट्री मिल गई और उन्हें लोग पहचानने लगे. उनके टीचर बनर्जी के मुताबिक धोनी विकेट के पीछे बॉल को ऐसे लपकते थे जैसे एक मछली मुंह खोले गेंद को पकड़ने की कोशिश कर रही हो.

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625 रुपये थी धोनी की पहली कमाई
मेकॉन क्लब के बाद महेंद्र सिंह धोनी ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की लोकल टीम में शामिल हो गए. यहां उनकी पहली कमाई हुई और उन्हें वेतन के रूप में 625 रुपये मिले. यह उनकी पहली कमाई थी. इसके बाद धोनी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) क्लब से जुड़े. यहां उनकी कमाई में भी इजाफा हुआ, जो बढ़कर 2000 रुपये हो गया. यही नहीं, धोनी को यहां 200 रुपये बोनस भी मिलता था, क्योंकि वो एक मैच विनर खिलाड़ी थे

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रणजी में सेलेक्शन की दिलचस्प कहानी
महेंद्र सिंह धोनी को सीसीएल और बिहार के लिए अंडर-19 में अच्छे परफॉर्मेंस का इनाम उन्हें साल 2000 में मिला. उन्हें रणजी ट्रॉफी में जगह मिली, लेकिन रांची जैसे शहर का होने के कारण यह जानकारी धोनी तक नहीं पहुंच सकी.
धोनी जब कोलकाता एयरपोर्ट पहुंचे तो टीम अगरतला के लिए निकल चुकी थी और धोनी ने ईस्ट जोन के लिए पहला मैच मिस कर दिया. हालांकि, धोनी इसके बाद वहां पहुंचे और टीम से जुड़े.

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रेलवे में मिलते थे 3000 हजार रुपये
2001 में धोनी की किस्मत ने करवट ली और उन्हें बंगाल के खड़गपुर में स्पोर्ट्स कोटा से दक्षिण-पूर्व रेलवे में नौकरी मिली. यहां उन्हें क्लास 3 की टिकट चेकर की नौकरी मिली और उनका वेतन 3000 रुपये था. इसके बाद धोनी को किस्मत का साथ मिला और वो तीन महीने के भीतर ही स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट में शामिल हो गए. हालांकि वो रेलवे की टीम में जगह नहीं बना पाए.

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2004 में ऐसे मिला टीम इंडिया के लिए मौका
किरण मोरे ने धोनी के खेल को देखा और उनके मुरीद हो गए. यह वो दौर था जब टीम इंडिया के पास विशेषज्ञ विकेटकीपर नहीं था. राहुल द्रविड़ को पार्ट टाइम विकेटकीपिंग करनी पड़ रही थी. 2004 में मोहाली में नॉर्थ और ईस्ट जोन के बीच मुकाबला हुआ जिसे सभी चयनकर्ताओं ने देखा.

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2003 में छोड़ दी थी नौकरी
इसके बाद उन्होंने जीवन का सबसे बड़ा फैसला लेने के लिए खुद को तैयार किया. 2003 में 22 साल के धोनी ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और अपनी फिटनेस को ठीक करने में जुट गए. इसके बाद बंगाल के पूर्व कप्तान प्रकाश पोद्दार को ईस्ट जोन के लिए नए टैलेंट को खोजने की जिम्मेदारी मिली. उन्होंने धोनी के खेल को देखा और रिपोर्ट चयनकर्ता कमेटी के चेयरमैन किरण मोरे तक पहुंचाई.

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2004 में ऐसे मिला टीम इंडिया के लिए मौका
किरण मोरे ने धोनी के खेल को देखा और उनके मुरीद हो गए. यह वो दौर था जब टीम इंडिया के पास विशेषज्ञ विकेटकीपर नहीं था. राहुल द्रविड़ को पार्ट टाइम विकेटकीपिंग करनी पड़ रही थी. 2004 में मोहाली में नॉर्थ और ईस्ट जोन के बीच मुकाबला हुआ जिसे सभी चयनकर्ताओं ने देखा.

रांची से निकल कैसे क्रिकेट की दुनिया में छा गए धोनी, ऐसा रहा सफर
इसमें धोनी ने विकेटकीपिंग की और खबर फैला दी गई कि दीपदास गुप्ता को चोट लगी है उनकी जगह धोनी कीपिंग करेंगे. यहां धोनी ने 5 कैच लपके और चौथे दिन 47 गेंदों में 8 चौके और 1 छक्के की मदद से 60 रन बनाए. यहां उन्होंने आशीष नेहरा की गेंद को हुक कर चौका मारा और चयनकर्ताओं का दिल जीत लिया. इसके बाद उन्हें इंडिया-ए टीम के लिए चुन लिया गया.

 

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और फिर धोनी बन गए माही

केन्या में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ दो शतक लगाए. इसके बाद संदीप पाटिल धोनी के फैन हो गए. धोनी की किस्मत ने एक बार फिर करवट ली और दो शतक लगाने के बाद उन्हें 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे मैच में टीम इंडिया के लिए अपना पहला मैच खेला. लेकिन धोनी की शुरुआत अच्छी नहीं रही और शुरू की चार इनिंग में सबसे ज्यादा स्कोर 12 रन था.

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इसके बाद विशाखापत्तनम में धोनी ने पाकिस्तान के खिलाफ 148 रनों की धमाकेदार पारी खेली. इस पारी के साथ ही धोनी की टीम इंडिया में बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज जगह पक्की हो गई.

 

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