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कॉन्ग्रेस में बगावत के पीछे थरूर की डिनर पार्टी: 5 महीने पहले ही बन गई थी योजना, राज्यसभा का एंगल भी आया सामने

नई दिल्ली। कॉन्ग्रेस के 23 नेताओं ने पत्र लिख कर पार्टी के प्रथम परिवार को असहज कर दिया था। अब पता चला है कि बगावत के ये तेवर जो आज दिख रहे हैं, इसकी नींव 5 महीने पहले ही पड़ गई थी। कॉन्ग्रेस में रिफॉर्म की माँग के लिए एजेंडा शशि थरूर द्वारा आयोजित एक डिनर पार्टी में ही तैयार कर लिया गया था, जिसमें कई कॉन्ग्रेस नेता शामिल हुए थे। इसका ही परिणाम सोनिया गाँधी को पत्र भेजे जाने के रूप में सामने आया।

हालाँकि, थरूर की पार्टी में ऐसे कई नेता भी थे, जिन्होंने गाँधी परिवार के प्रति वफादारी दिखाने के लिए पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया था। उनमें पी चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति चिदंबरम, सचिन पायलट और मणिशंकर अय्यर शामिल थे। अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि वो डिनर में उपस्थित थे, जिसके लिए उन्हें एक दिन पहले ही आमंत्रित किया गया था। उस दौरान पार्टी में रिफॉर्म्स को लेकर चर्चा होने की बात भी उन्होंने कबूली है।

ये सब ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में हरिंदर बावेजा की एक रिपोर्ट में सामने आया है। सिंघवी ने HT को बताया कि पत्र लिखे जाने के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं था। जबकि चिदंबरम ने पार्टी के मामलों पर बात करने से इनकार कर दिया। सचिन पायलट ने तो पिछले ही महीने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत की थी। वो भी टिप्पणी करने से बचते नज़र आए। वही मणिशंकर अय्यर ने कहा कि उन्हें पत्र पर साइन करने कहा ही नहीं गया था, इसीलिए उन्होंने ऐसा नहीं किया।

मणिशंकर अय्यर ने कहा कि उनसे इसके लिए किसी ने संपर्क ही नहीं किया था। उन्होंने बताया कि शशि थरूर के डिनर में इस बात पर चर्चा हुई थी कि पार्टी का जीर्णोद्धार कैसे किया जाए और इसकी सेक्युलर विचारधारा की तरफ कैसे लौटा जाए। उन्होंने कहा कि उसी दौरान पत्र लिखने पर बात हुई थी और किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया था। उन्होंने कहा कि डिनर के बाद उनसे किसी ने संपर्क ही नहीं किया।

सोमवार (अगस्त 24, 2020) को हुई बैठक में इस पत्र को लेकर चर्चा हुई, जिसमें राहुल गाँधी द्वारा इन नेताओं पर तल्ख़ टिप्पणी करने की बातें सामने आईं, जिसे बाद में नकार दिया गया। एक अन्य नेता ने बताया कि वो शशि थरूर के डिनर में उपस्थित थे और उन्होंने पत्र पर हस्ताक्षर भी किया, क्योंकि पार्टी में बड़ी सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ये मुद्दों की लड़ाई है, व्यक्तित्वों की नहीं।

साथ ही उक्त नेता ने गाँधी परिवार को सलाह दी कि वो सन्देश को समझने की बजाए सन्देश देने वालों पर निशाना साधने से बचें। बता दें कि 1999 में शरद पवार के बाद से पार्टी में सोनिया गाँधी की एकमात्र सत्ता को चुनौती देने की हिम्मत कोई भी नहीं जुटा पाया है। कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने गाँधी परिवार के खिलाफ पत्र पर साइन तो नहीं किया लेकिन वो भी पार्टी में सुधार के लिए खासे इच्छुक हैं।

वहीं इस पूरे मामले में राज्यसभा का एंगल भी सामने आ रहा है। कर्नाटक में पूर्व IIM प्रोफेसर राजीव गौड़ा को पीछे हटने बोल कर राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए राह बनाने को कहा गया था, जिसके बाद पार्टी में कइयों की भौहें तन गई थी क्योंकि 9 बार सांसद रहे खड़गे 2014-19 में संसद में कॉन्ग्रेस के नेतृत्वकर्ता थे और गाँधी परिवार के पुराने वफादार हैं। ऊपर से वो लोकसभा चुनाव भी हार चुके हैं।

आनंद शर्मा भी राज्यसभा में पार्टी के नेता बनने के दावेदार थे लेकिन खड़गे की वहाँ एंट्री से उनकी और गुलाम नबी आजाद की भौहें तनी हुई हैं। यहाँ तक कि गाँधी परिवार के करीबी मुकुल वासनिक ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किया। महाराष्ट्र में भी कॉन्ग्रेस ने राहुल गाँधी के वफादार राजीव सतव को उम्मीदवार बनाया था। परिवार के वफादारों को जगह मिलने से पार्टी के अन्य नेता नाराज़ हैं।

बता दें कि सोनिया गाँधी के दोबारा अंतरिम अध्यक्ष बनने से पहले उनके इस्तीफे की खबर आई। फिर जल्द ही दावा किया गया कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था। सोनिया गॉंधी को कॉन्ग्रेस ने भले फिर से अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया हो, लेकिन इसने पार्टी के अंदरूनी कलह को बेनकाब कर दिया है। ताजा घमासान के बाद सब कुछ सामान्य होने और नुकसान का ठीक-ठीक पता लग पाने में ही महीनों लग सकते हैं।

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