राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात में जिस खास बात पर फोकस किया वह थी ख्लिौना जगत की बात। दरअसल प्रधानमंत्री बच्चों के बहाने चीन को टारगेट कर रहे थ्ो। उन्होंने पिछले सप्ताह ही दिल्ली में बड़े अधिकारियों के साथ बैठक करके देशी खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने की बात भी कही थी। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देश से चीनी खिलौना उद्योग के वर्चस्व को खत्म किया जाए। एक जानकारी के मुताबिक भारत में ही हर साल चीन तकरीबन दस हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करता है। प्रधानमंत्री इसी लिए भारतीय बाजार से चीन के खिलौना बाजार के वर्चस्व खत्म करना चाहते हैं। पिछले तीन माह से चीन के साथ भारत की तनातनी और कोरोना के चलते चीनी खिलौने भारत में नहीं आ सके और देशी खिलौने की मांग बढ़ी है। वहीं बच्चों में भी कोरोना के लॉक डाउन के चलते खिलौनों के प्रति रुचि बढ़ी है।
इसीलिए प्रधानमत्री ने अपने मन की बात में भी बच्चों का खिलौनों के प्रति उत्साह बढ़ाया। इसी बहाने वह आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को बढ़ाना चाहते थ्ो ताकि देशी खिलौना उद्योग को बढ़ावा मिल सके। लेकिन यह मुहिम कितनी रंग लायेगी, यह भविष्य के गर्त में है।
हर बच्चों के हाथ में दिखने वाला खिलौना सिर्फ बाल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि बाल व किशोर व्यक्तित्व के निर्माण में भी उसकी बड़ी भूमिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे समझ लिया है और खिलौना मैन्युफैक्चरिग प्रोत्साहन योजना की शुरुआत भी करवा दी है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि देश में खिलौना निर्माण के कई कलस्टर हैं, जिनकी अपनी पहचान है और वहां पर सैंकड़ों कारीगर अपने अपने तरीके से स्वदेशी खिलौनों का निर्माण कर रहे हैं। अमूमन, ये घरेलू कारीगर जो खिलौना बनाते हैं, उनमें भारतीयता व हमारी संस्कृति की स्पष्ट छाप होती है, अद्भुत झलक मिलती है। यही वजह है कि इन कारीगरों और खिलौना निर्माण के कलस्टर को नए विचारों व सृजनात्मक तरीके से प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यही नहीं, तकनीक और नए आइडिया वाले खिलौनों के निर्माण के दौरान हमें उत्पाद की गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए, ताकि वे वैश्विक मानकों को पूरा कर सकें।
देखा जाए तो ऐसे खिलौने सिर्फ कारोबार के लिए नहीं होंगे, बल्कि वह बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करने में भी उनकी मदद करेंगे। देश के सभी आंगनवाड़ी केंद्रों व स्कूलों में ऐसे भारतीय खिलौनों के माध्यम से शैक्षणिक व मनोरंजन सम्बन्धी काम भी किया जा सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि खिलौना निर्माण में नई तकनीक तथा विचारों के सृजन के लिए देश के नौजवानों को इससे जोड़ना होगा। इसके लिए युवाओं में स्वस्थ स्पर्धा भी कराई जा सकती है। क्योंकि इस क्षेत्र में भारतीय कारोबार में आत्मनिर्भर बनने की पूरी गुंजाइश है। यही वजह है कि इस उद्योग के लिए वोकल फॉर लोकल नारे के तहत काम किया जा रहा है। आम तौर पर कारोबारियों को स्वदेशी खिलौने की बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है।
भारत का खिलौना बाजार
एक मार्केट रिसर्च फर्म आईएमएआर सी के मुताबिक, भारत में कारोबार 1०,००० करोड़ रुपये का है, जिनमें से संगठित खिलौना बाजार 3,5००-4,5०० करोड़ रुपए मूल्य का है। लेकिन, हमारी पूर्ववतीã सरकारों की नीतियां इतनी उदासीन रहीं कि संगठित खिलौना बाजार में भारत पचासी-नब्बे प्रतिशत तक चीन से आयात पर निर्भर करता है। यही वजह है कि शत्रु देश चीन से खिलौना आयात को हतोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने फरवरी 2०2० में आयात शुल्क में दो सौ फीसद की वृद्धि की थी, लेकिन दुर्भाग्यपूणã स्थिति है कि खिलौना आयात जारी है। जिसे रोकने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय जल्द ही खिलौना आयात पर लाइसेंस पद्धति शुरू कर सकता है। भारत में खिलौना उद्योग का मौजूदा कारोबार करीब 4००० करोड़ रुपए का है। खास बात यह कि यह सेक्टर सालाना 15 फीसदी दर से ग्रोथ हासिल कर रहा है। देखा जाए तो खिलौना उद्यम के तहत देश भर में करीब 15०० कंपनियां संगठित और इसके दो गुणा अधिक असंगठित क्षेत्र की हैं। बावजूद इसके, देश में खिलौने की मांग की 3० फीसदी आपूर्ति ही भारतीय कंपनियां कर पा रही हैं, जबकि 5० फीसदी मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से खिलौना आयात किया जाता है। मौजूदा हालात के बावजूद, भारत में सबसे ज्यादा खिलौने चीन से आयात किए जाते हैं।
भारतीय खिलौना उद्योग की कमजोरी
भारतीय खिलौना उद्योग की कमजोरी यह है कि देश में ज्यादातर खिलौने बनाने वाली कंपनियां सूक्ष्म स्तर की हैं। जिसके चलते क्वालिटी प्रोड्क्ट और कम वॉल्यूम में खिलौने का उत्पादन होता है। आलम यह है कि भारतीय कंपनियों को रॉ-मटेरियल की आपूर्ति भी ठीक से नहीं हो पाती है। वहीं, खिलौने बनाने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी का भी अभाव है। यहां अब भी बहुत ही साधारण मशीन का उपयोग किया जा रहा है। आधुनिक मशीन के अभाव में क्वालिटी प्रोड्क्ट का निर्माण नहीं हो रहा है। कुशल श्रमिकों की कमी और मशीनरी के अभाव में प्रोडक्शन कॉस्ट महंगा होने से खिलौने की कीमत अधिक होती है। इसके अलावा, देशी खिलौना उद्योग में नई आइडिया का भी अभाव है। देशी कंपनियां ब्रांडिग और विज्ञापन पर न के बराबर खर्च करती हैं। इसका फायदा चीनी कंपनियां ले रही हैं। चीनी खिलौने की मांग यहां ज्यादातर खिलौने की खरीदारी के पीछे गिफ्ट मार्केट का भी योगदान होता है। भारतीय खिलौने की कीमत के मुकाबले चीनी खिलौने की कीमत कम होती है। इसलिए लोगों के बीच चीनी खिलौने ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। वहीं, चीनी खिलौने आधुनिक मशीनरी से तैयार किए जा रहे हैं, इसके कारण यह कई वैरिएंट में मिल रहा है। वर्तमान में भारत की कुल आबादी में 21 फीसदी की उम्र 2 साल से कम है और अनुमान है कि साल 2०22 तक ० से 14 साल के उम्र के बीच बच्चों की कुल आबादी करीब 4० करोड़ होगी। इसलिए भारतीय खिलौना बाजार के सामने बड़े अवसर होंगे। वहीं, आबादी बढ़ने के साथ यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2०22 तक भारतीय खिलौने का कारोबार भी बढ़ेगा। क्योंकि कोरोना काल से इतर मध्यमवर्गीय परिवारों की आय बढ़ रही है। इसके कारण मांग में भी बढ़ोत्तरी होगी और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष खिलौना उद्योग पर भी इसका असर पड़ेगा। आईटी के समावेश और ऑनलाइन बिक्री का चलन बढ़ने के कारण खिलौना उद्यम इसका भी लाभ ले सकता है। मसलन, घरेलू ही नहीं, विदेशी बाजारों तक भी खिलौना उद्यम अपनी पहुंच बना सकता है। हालांकि, धीरे-धीरे चीनी खिलौने के कारोबार पर वैश्विक विश्वास में काफी कमी आई है। क्योंकि ज्यादा उत्पादन के चलते क्वालिटी से समझौता चीन को महंगा साबित हो रहा है। इसलिए भारतीय खिलौना उद्यम के पास काफी अवसर हैं।
खिलौना उद्योग में बढ़नी चाहिए भारत की आत्मनिर्भरता : पीएम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार ‘मन की बात’ के जरिए देश को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना काल में नागरिकों में अपने दायित्वों का अहसास है। कोरोना के चलते लोग अनुशासन बरत रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना काल में हर तरह के उत्सवों में लोग संयम बरत रहे हैं। इस बार गणेशोत्सव ऑनलाइन मनाया गया। देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है। प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में स्वदेशी गेम बनाने की अपील करते हुए कहा कि खिलौना उद्योग में भारत की भागीदारी बढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि आत्मविश्वास के साथ भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। भारत के भी और भारत में भी कम्प्यूटर गेम बनने चाहिए। कम्प्यूटर गेम में भारत की थीम होनी चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि खिलौने जहां एक्टिविटी बढ़ाने वाले होते हैं वहीं आकांक्षाओं को भी उड़ान देते हैं। खिलौने केवल मन ही नहीं बहलाते, खिलौने मन बनाते भी हैं और मकसद गढ़ने वाले भी होते हैं।
हमारे देश में लोकल खिलौनों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। कई प्रतिभाशाली और कुशल कारीगर हैं, जो अच्छे खिलौने बनाने में महारत रखते हैं। भारत के कुछ क्षेत्र खिलौनों के केन्द्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा कि अब सभी के लिए लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने का समय है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने युवाओं से कुछ नए प्रकार के अच्छी क्वालिटी वाले खिलौने बनाने की अपील की। पीएम मोदी ने कहा कि भारतीयों के इनोवेशन और सॉल्यूशन देने की क्षमता का लोहा हर कोई मानता है। शिक्षक दिवस का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि पूरे देश में सितम्बर माह को पोषण माह के रूप में मनाया जाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि पोषण या न्यूट्रिशन का मतलब केवल इतना ही नहीं होता कि आप क्या खा रहे हैं, कितना खा रहे हैं या कितनी बार खा रहे हैं। पोषण मतलब है कि शरीर को कितने जरुरी पोषक तत्व मिल रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना तभी हारेगा जब आप सुरक्षित रहेंगे। दो गज की दूरी, मास्क जरुरी है। पीएम मोदी के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ का ये 68वां संस्करण था।