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इकोनॉमी के भी संकटमोचक थे प्रणब मुखर्जी, मंदी के माहौल से उबारा था देश

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी शख्सियत हमेशा याद की जाएगी. एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले प्रणब मुखर्जी को राजनीति सफर में जब जो जिम्मेदारी मिली, उन्होंने बखूबी निभाई.

सरकार के लिए थे संकटमोचक

राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणब मुखर्जी यूपीए सरकार में संकटमोचक की भूमिका में थे. जब भी सरकार या फिर कांग्रेस पर कोई मुसीबत आई, प्रणब मुखर्जी ने उससे उबारने का काम किया, प्रणब मुखर्जी फैसले लेने से कभी नहीं हिकचते थे.

प्रणब मुखर्जी का निधन

भले ही प्रणब मुखर्जी ने अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं की थी, लेकिन वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से नहीं उतरने दी. पहली बार उन्हें 1984 में राजीव गांधी की सरकार में भारत का वित्त मंत्री बनाया गया. उसके 25 साल बाद फिर 2009 में मनमोहन सरकार में उन्हें वित्त मंत्रालय सौंपा गया.

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर थे सफल

मनमोहन सरकार में प्रणब मुखर्जी 2009 से 2012 तक भारत के वित्त मंत्री रहे. देश की बदलती स्थितियों पर भी उनकी लगातार नजर रहती थी. इसलिए 25 साल बाद एक बार फिर उन्हें देश की अर्थव्यवस्था को सही रास्ते पर ले जाने का जिम्मा मिला था. प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल के दौरान ही साल 2010 में देश की जीडीपी ग्रोथ 8.50 फीसदी दर्ज की गई थी, जो साल 2000 से 2020 के दौरान सबसे अधिक है.

बड़े फैसले लेने में हिचकते नहीं

मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहला बजट 6 जुलाई 2009 को प्रणब मुखर्जी ने पेश किया. इस बजट में उन्होंने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए फ्रिंज बेनिफिट टैक्स और कमोडिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स को हटाने सहित कई तरह के टैक्स सुधारों की घोषणा की. उस दौरान ही प्रणब मुखर्जी जीएसटी लागू करने के पक्ष में थे. बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी प्रणब मुखर्जी के फैसलों से सहमत थे. 2009 में अर्थव्यवस्था को मंदी से निकालने में उनकी बड़ी भूमिका थी.

कई योजनाओं की थी शुरुआत

प्रणब ने वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सरकार में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, लड़कियों की साक्षरता और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं पर फोकस किया था. इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, बिजलीकरण का विस्तार और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन सरीखी बुनियादी सुविधाओं वाले कार्यक्रमों को भी विस्तार देने का काम किया था.

कई भूमिका में आए नजर

जब प्रणब मुखर्जी को पहली बार 1984 में वित्त मंत्री बनाया गया तो उनके काम से प्रभावित होकर यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उन्हें विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के तौर पर मूल्यांकन किया गया. 1984 में जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे तो उनके कार्यकाल में डॉ मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे. वैश्वीकरण के दौर में 1991 से 1996 तक प्रणब मुखर्जी योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर थे.

नहीं रहे प्रणब मुखर्जी

प्रणब मुखर्जी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंक के प्रशासक बोर्ड के सदस्य भी रहे थे. सन 1984 में उन्होंने आईएमएफ और विश्व बैंक से जुड़े ग्रुप-24 की बैठक की अध्यक्षता की थी. मई और नवम्बर 1995 के बीच उन्होंने सार्क मन्त्रिपरिषद सम्मेलन की अध्यक्षता की थी.

पश्चिम बंगाल में हुआ था जन्म

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था. उन्होंने शुरुआती पढ़ाई बीरभूम में की और बाद में राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया. उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल की थी.

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