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प्रणब दा दो बार बन सकते थे देश के प्रधानमंत्री, लेकिन दोनों ही बार किसी और ने मार ली बाजी

नई दिल्‍ली। प्रणब मुखर्जी का जीवन यूं तो हमेशा से ही सत्‍ता के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब उन्‍होंने गुस्‍से में उस कांग्रेस पार्टी को ठोकर मार दी थी जिससे वह लंबे समय तक जुड़े रहे थे। इसकी वजह थी उनकी प्रधानमंत्री न बन पाने का दुख। ये वो दौर था जब इंदिरा गांधी को उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मार दी थी और उनका निधन दिल्‍ली के एम्‍स अस्‍पताल में हो गया था। उस वक्‍त प्रणब दा इंदिरा गांधी की केबिनेट में वित्‍त मंत्री की हैसियत से थे लेकिन उनका राजनीतिक कद काफी बड़ा था। यही वजह थी कि उस वक्‍त उन्‍हें पीएम पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था।

इंदिरा गांधी की हत्‍या

जिस वक्‍त इंदिरा गांधी की हत्या हुई उस वक्‍त वे और राजीव गांधी पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे। इंदिरा गांधी की हत्‍या की खबर सुनते ही दोनों ही तुरंत वापस दिल्‍ली आ गए। इस घटना के बाद पीएम पद को भरने पर गहरा मंथन चल रहा था। प्रणब दा पार्टी के सीनियर मैंबर थे और काफी इंदिरा गांधी के करीबी भी थे। इस वजह से पार्टी के कई सदस्‍य उन्‍हें इस पद के लिए योग्‍य उम्‍मीद्वार मानते थे। लेकिन उनके हाथ से बाजी निकल गई और आनन फानन में राजीव गांधी को पीएम बना दिया गया। राजीव गांधी संजय गांधी के निधन के कुछ ही समय बाद पार्टी में आए थे और एक अनुभवहीन महासचिव थे। इससे पहले सरकार के कामकाज में न तो उनका दखल था और न ही कोई अनुभव ही था। वहीं दूसरी तरफ एक परिपाटी ऐसी थी जहां पर लाल बहादुर शास्‍त्री के आकस्मिक निधन के बाद गुलजारी लाल नंदा को पीएम कार्यवाहक पीएम बनाया गया था। इसको दखते हुए भी कई लोग प्रणब दा को भावी पीएम के तौर पर देखते थे।

बहरहाल, पीएम न बनने से नाराज प्रणब दा उस वक्‍त और खफा हो गए थे जब राजीव गांधी की केबिनेट में उन्‍हें शामिल नहीं किया और दूसरे लोगों को तरजीह दी गई। इससे दुखी होकर प्रणब दा ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अपनी अलग राष्‍ट्रीय समाजवादी पार्टी बनाई थी। हालांकि कांग्रेस से अलग होकर वो कुछ खास नहीं कर सके थे। आलम ये था कि केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहने वाला एक शख्‍स हाशिये पर चला गया था। 1989 में उन्‍होंने इस पार्टी का विलय कांग्रेस में ही कर दिया था। इसके राजीव गांधी की हत्‍या के बाद केंद्र में नरसिंहराव की सरकार बनीं। इसी दौरान वो दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए थे, लेकिन, उन्‍हें सरकार में जगह नहीं मिली थी। हालांकि राव ने उन्‍हें योजना आयोग का उपाध्‍यक्ष जरूर बनाया था। राव की सरकार के अंतिम वर्ष में उन्‍हें केंद्र में विदेश मंत्री बनाया गया।

इसके बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी। वर्ष 2004 में यूपीए के तहत कांग्रेस की सत्‍ता में वापसी हुई तो तब सोनिया गांधी के पीएम बनने की राह में कई कांटे निकल निकल आए। उनके विदेशी मूल का होने की वजह से पार्टी के कुछ बड़े नेता ही उनके खिलाफ हो गए थे। ऐसे में सोनिया गांधी ने अपने कदम खुद ही वापस खींच लिए। उस वक्‍त दूसरी बार प्रणब दा के जीवन में पीएम बनने का मौका मिला था। लेकिन ये मौका भी हाथ से निकल गया और राव की सरकार में वित्‍त मंत्री की भूमिका निभाने वाले मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया गया। हालांकि उनकी सरकार में प्रणब दा को वित्‍तमंत्री बनाया गया था। इसके बाद साल 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया और वो देश के राष्ट्रपति चुने गए। एक बार बीबीसी को दिए एक इंटरव्‍यू में जब प्रणब दा से उनकी कांग्रेस से नाराजगी के बाद बनाई गई पार्टी का नाम पूछा गया था तो उन्‍होंने कहा कि अब तो उसका नाम भी याद नहीं रहा है। वर्ष 2019 में उन्‍हें देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान भारत रत्‍न से नवाजा था।

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