माओवादी पिछले कई सालों से पश्चिम बंगाल में दहशत की वजह बने हुए हैं खासकर जंगलमहल क्षेत्र में। इस पूरे इलाके में पश्चिम मिदनापुर, पुरुलिया, झारग्राम और बंकुआ जैसे जिले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी) का गढ़ बने हुए हैं। साल 2009 से 2011 के बीच माओवादी जंगलमहल में एक अलग क्षेत्र बनाने में काफी हद तक कामयाब रहे थे।
वामपंथ के चरमपंथी समूह और सुरक्षाबलों के बीच तब गोलीबारी का लंबा दौर चला था। इस घटना में कुल 350 आम नागरिकों ने अपनी जान गँवाई थी और 80 माओवादी नेताओं पर कार्रवाई हुई थी। इसे पश्चिम बंगाल के जंगली कॉरिडोर का सबसे भयानक और कठिन अभियान माना जाता है। इसमें लगभग 50 सुरक्षाबल शहीद भी हुए थे। मल्लौला कोटेश्वर राव उर्फ़ किशन जी की हत्या के बाद इस घरेलू आतंकवादी समूह का प्रभाव लगभग ख़त्म हो गया था। इसके बाद पूरे इलाके में माओवादी गतिविधियाँ काफी कम हो गई थी।
ख़बरों की मानें तो ऐसा माना जाता है कि माओवादी झारखंड के सिंहभूम जिले में अपना कैम्प लगाते हैं। पीछे कुछ महीनों से माओवादी झारग्राम में काफी सक्रिय रहे हैं। पिछले कुछ समय में झारग्राम में ऐसी 4 घटनाएँ हुई हैं, जिनके आधार पर माओवादियों की मौजूदगी और सक्रियता का डर फिर से बढ़ रहा है। ऐसी जानकारियों के आधार पर राज्य प्रशासन और खुफ़िया एजेंसियों ने हालात नियंत्रण में करने के लिए अभियान शुरू कर दिया है।
हाल ही में माओवादियों ने पश्चिम बंगाल के बेलपहाड़ी स्थित सिमुलपल इलाके में टंगी कुसुमग्राम में पर्यटकों के एक समूह के साथ डकैती की। खड़गपुर से आए पर्यटकों को मोबाइल समेत अपने पास लगभग हर चीज़ देनी पड़ी। क्योंकि वह पूरा क्षेत्र पर्यटन के लिए मशहूर था, इसलिए वहाँ आने वाले लोगों के बीच भय का माहौल बन गया है। माओवादियों की संख्या 6 थी, जिसमें 3 महिलाएँ थीं और उन सभी के पास बंदूकें थीं। उन्होंने दिन में ही पर्यटकों को रोका और उनके मोबाइल फोन छीने। इसके बाद वह पड़ोसी राज्य झारखंड की तरफ आगे बढ़ गए।
एक पोस्टर में लिखा था ‘ठेकेदार सौरव सड़क का काम बंद करो।’ पोस्टर में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया का ज़िक्र था और उसमें ठेकेदार सौरव रॉय को धमकी दी गई थी। धमकी में ऐसा कहा गया था कि वह धरसा से पराड़ी के बीच 40 किलोमीटर की सड़क का काम बंद करे। हालाँकि सौरव रॉय को इस बात की जानकारी नहीं थी और वह अपने काम में लगातार जुटे हुए थे।
इसके कुछ समय बाद माओवादियों ने गैस डीलर बिद्युत दास पर जानलेवा हमला किया था। माओवादियों ने उनसे 2 लाख रूपए की माँग की थी, जिसे देने से उन्होंने इनकार कर दिया था। इसके बाद 28 अगस्त को माओवादियों ने उन पर और उनकी पत्नी पर रात के 9:30 बजे अंधाधुंध गोलियाँ चलाई थीं।
घटना झारग्राम जिले के बेलापहाड़ी स्थित पोछा पानी गाँव में हुई थी। जब माओवादियों ने पति-पत्नी पर गोली चलाई, तब वह छत पर मौजूद थे। जैसे ही उन्होंने गोलीबारी की आवाज़ सुनी, वह जान बचाने के लिए छत से कूद कर भागे। अँधेरे का फायदा उठाते हुए माओवादी मौके से भाग निकले। घटना पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा था, “लगता है माओवादी फिर से इकट्ठा हो रहे हैं और दास जी की जान लेना चाहते हैं।”
15 अगस्त के दौरान भी माओवादियों ने झारग्राम के भूलाभेदा इलाके के 2-3 गाँवों में पोस्टर्स लगाए थे। पोस्टर्स में लिखा था कि स्थानीय लोग 15 अगस्त को ‘काले दिवस’ के तौर पर मनाएँ। इस पोस्टर पर कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का ज़िक्र था। इस तरह के लगभग 10-12 हाथ से लिखे गए पोस्टर झारग्राम पुलिस ने बरामद किए थे।
इस पर पुलिस अधिकारी ने कहा था, “माओवादियों के पास फिलहाल किसी भी तरह की सेना नहीं बची है। साल 2011 में मल्लौला कोटेश्वर राव उर्फ़ किशन जी की मौत के बाद बहुत से माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। ऐसे पोस्टर पश्चिमी मिदनापुर में पिछले साल पाए गए थे।”
फिलहाल इस मामले में जाँच शुरू कर दी गई है लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इस तरह की कई घटनाएँ सामने आने के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर इस मुद्दे पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा था कि एक बार फिर राज्य में माओवादियों की सक्रियता स्पष्ट रूप से नज़र आ रही है।
हैरानी की बात यह है कि माओवादियों को प्रदेश सरकार से पूरा सहयोग भी मिल रहा है। ममता बनर्जी ने छात्रधर महतो को टीएमसी की प्रदेश कार्यकारिणी समिति में शामिल किया था। महतो 10 साल तक जेल में रह चुका है और माओवादी संगठनों के लिए काम भी करता था।