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‘यही लोग संस्थानों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने का मौका नहीं छोड़ते’: उमर खालिद के समर्थकों को पूर्व जजों ने लताड़ा

नई दिल्ली। दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के मामले में उमर खालिद की गिरफ्तारी के बाद लगातार एक लॉबी दिल्ली पुलिस पर, सरकार की मंशा पर तरह-तरह के सवाल उठा रही है। ऐसे में कुछ दिन पहले 15 पूर्व जजों ने अपना साझा बयान जारी करके इस लॉबी को करारा जवाब दिया।

अपने बयान में इन पूर्व न्यायाधीशों ने सिविल सोसायटी की नुमाइंदगी का दावा करने वाले कुछ लोग को लताड़ा और उमर खालिद मामले में चल रही न्यायिक प्रक्रिया में अड़ंगे लगाने के लिए खरी-खरी सुनाई। बयान में पूर्व जजों ने लिखा, “ये वही लोग हैं जो संसद, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग जैसे संस्थानों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने का कोई मौका नहीं छोड़ते।”

पूर्व न्यायाधीशों ने बयान में कहा कि ऐसे लोग खुद संवैधानिक पदों पर रह चुके हैं और न्यायिक प्रक्रिया से भली-भाँति परिचित है, मगर फिर भी विभाजनकारी एजेंडे को समर्थन दे रहे हैं। ऐसे लोग इस खयाल में जीते हैं कि देश की सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को उनके हिसाब से काम करना चाहिए।

इस बयान में पूर्व न्यायाधीशों ने यह भी कहा है कि दिल्ली दंगों के संबंध में एक के बाद देश विरोधी गतिविधियों का खुलासा हो रहा है। लेकिन इसी बीच बार-बार जाँच प्रक्रिया और ट्रायल पर सवाल खड़े कर अड़ंगे लगाने की कोशिश की जा रही है। उमर खालिद के संदर्भ में ये समझा जाना चाहिए कि बेल के लिए न्याय व्यवस्था में पूरी प्रक्रिया दी हुई है। न्याय प्रक्रिया के दौरान किसी को दोषी सिर्फ सबूतों के आधार पर ही सिद्ध किया जा सकता है।

फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का मतलब ये नहीं कि इससे किसी भी अपराध को करने या उसे बढ़ावा देनी की छूट मिल जाती है। राष्ट्रीय एकता को कुछ लोगों की विशेष सोच की कीमत पर बलिदान नहीं किया जा सकता है। कानून को अपना रास्ता अपनाना चाहिए। उमर खालिद भारत में नियम कानून के लिए अपवाद नहीं है।

बता दें कि उमर खालिद के समर्थन में उतरे लोगों को जवाब देने के लिए पूर्व न्यायधीशों द्वारा जारी किए गए बयान में जम्मू-कश्मीर व दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीसी पटेल, मुंबई हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के आर व्यास, राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल दियो सिंह, सिक्किम हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रमोद कोहली का नाम भी शामिल है। इनके अलावा 11 अन्य पूर्व न्यायाधीश ने भी इस बयान पर हस्ताक्षर किया है। इनके नाम नीचे सूची में लिखे हैं:

गौरतलब है कि इससे पहले दिल्ली दंगों में पुलिस की जाँच पर सवाल उठाने वाले लोगों पर पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों ने भी खत लिख कर नाराजगी जाहिर की थी। अधिकारियों का मत था कि बाहरी दबाव बनाकर जाँच की प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जाना चाहिए।

बता दें कि जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने 13 सितंबर 2020 को दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार किया था। उस पर दंगों का षड्यंत्र रचने का आरोप है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने उमर खालिद पर गैरक़ानूनी गतिविधि (नियंत्रण) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था।

पुलिस ने उमर खालिद से लगभग 11 घंटे तक पूछताछ करने के बाद उसे गिरफ्तार किया था। इसके बाद ही सोशल मीडिया पर खालिद को रिहाई दिलवाने के लिए बकायादा अभियान चला दिया गया, जिसमें मीडिया गिरोह के लोगों से लेकर कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवि भी शामिल रहे।

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