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‘परमबीर सिंह ने 26/11 मुंबई हमले के दौरान आतंकियों का मुकाबला करने से इनकार किया था’: पढ़िए उनका ‘काला-चिट्ठा’

26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान मुंबई के पुलिस आयुक्त रहे हसन गफूर ने परम बीर सिंह सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया कि उन्होंने आतंकवादियों से मुकाबला करने से इनकार कर दिया था। गफूर ने कहा था कि कानून-व्यवस्था के संयुक्त आयुक्त केएल प्रसाद, अपराध शाखा के अतिरिक्त आयुक्त देवेन भारती, दक्षिणी क्षेत्र के अतिरिक्त आयुक्त के वेंकटेशम और आतंकवाद-रोधी दस्ते के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह मुंबई आतंकी हमले के दौरान अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे थे।

गफूर की टिप्पणी के अनुसार, परम बीर सिंह ने उन्हें ‘बदनाम’ करने के लिए कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी। सिंह ने खुद का बचाव करते हुए दावा किया था कि उन्हें कई टीवी चैनलों पर देखा गया था, जब वह होटल ताज और ओबेरॉय में थे। खबरों के मुताबिक टेलीविजन चैनलों के लाइव प्रसारण ने आतंकियों की मदद की थी।

परम बीर सिंह के पिता होशियार सिंह ने मार्च 2010 में हसन गफूर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जिस पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्टे जारी कर दिया था।

26/11 मुंबई आतंकी हमला

26 नवंबर 2008 को लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने मुंबई को बम धमाकों और गोलीबारी से दहला दिया था। हमले में 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। मुंबई हमले को याद करके आज भी लोगों को दिल दहल उठता है। दक्षिणी मुंबई का लियोपोल्ड कैफे भी उन चंद जगहों में से एक था जो तीन दिन तक चले इस हमले के शुरुआती निशाने थे। यह मुंबई के नामचीन होटलों में से एक है, इसलिए वहाँ हुई गोलीबारी में मारे गए 10 लोगों में कई विदेशी भी शामिल थे, जबकि बहुत से घायल भी हुए। 1871 से मेहमानों की ख़ातिरदारी कर रहे लियोपोल्ड कैफे की दीवारों में धँसी गोलियाँ हमले के निशान छोड़ गई।

तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे। इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियाँ चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड़ती रही और ना सिर्फ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नज़रें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी रहीं।

परम बीर सिंह के खिलाफ याचिका

2009 में 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले के तुरंत बाद हमले के दौरान कर्तव्य की लापरवाही के आरोप में परमबीर सिंह और तीन अन्य अतिरिक्त पुलिस कमिश्नरों के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।

एक जनहित याचिका (PIL) में इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की माँग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि परमबीर सिंह जैसे अधिकारी तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के आदेशों का पालन करने में विफल रहे थे।

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि अगर वरिष्ठ अधिकारियों ने आदेशों का पालन किया होता तो स्थिति को बहुत पहले ही नियंत्रण में लाया जा सकता था और कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी। याचिकाओं में कहा गया था कि अगर अधिकारी ठीक से काम करते तो 2 और आतंकवादी जिंदा पकड़े जा सकते थे।

याचिका में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हसन गफूर के हवाले से कहा गया था कि इन अधिकारियों ने उनके आदेशों की अवहेलना की थी और मुंबई आतंकी हमले के दौरान अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे थे। इसके साथ ही याचिका में कहा गया था कि अधिकारियों ने आतंकवादियों से मुकाबला करने से इनकार कर दिया था और परेशानी वाले क्षेत्रों से दूर रहकर कंट्रोल रूम को गलत रिपोर्ट दी। यह याचिका हसन गफूर के बयान पर दायर की गई थी।

मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त जूलियो रिबेरो ने सिंह को एक ‘बुरा पुलिस’ कहा

जुलाई 2018 में, रिबेरो ने ‘मुंबई पुलिस आयुक्त के पद के लिए लड़ रहे दो पुलिस’ पर एक लेख लिखा था। परम बीर सिंह का नाम लिए बिना, रिबेरो ने ‘अच्छे पुलिस-बुरे पुलिस’ वाले सादृश्य को तैयार किया था, जहाँ परम बीर सिंह को ‘बुरा पुलिस’ कहा गया। उसी को अपराध मानते हुए, सिंह ने रिबेरो से माफी माँगने के लिए कहा था। इतना ही नहीं, उन्होंने उन पर मुकदमा चलाने की भी धमकी दी थी।

साध्वी प्रज्ञा ने लगाए परम बीर सिंह के खिलाफ अत्याचार के आरोप

परम बीर सिंह के सबसे विवादास्पद कार्यकालों में से एक एटीएस में उनका कार्यकाल था। परम बीर सिंह पर भोपाल की वर्तमान सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह साध्वी ने गंभीर अत्याचार का आरोप लगाया गया था।

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आरोप लगाया था कि कथित ‘भगवा आतंक मामले’ में उनकी भूमिका को जबरदस्ती कबूल करने के लिए मुंबई एटीएस द्वारा उन पर काफी अत्याचार किया गया था। मुंबई एटीएस के सदस्यों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए साध्वी प्रज्ञा ने खुलासा किया था कि परम बीर सिंह सहित एटीएस अधिकारियों ने उन्हें अवैध हिरासत में रखा था और 13 दिनों तक उन्हें प्रताड़ित किया था।

साध्वी प्रज्ञा ने आरोप लगाया था कि खानविलकर, परम बीर सिंह और (दिवंगत) हेमंत करकरे, सभी ने उन्हें प्रताड़ित किया। साध्वी प्रज्ञा का कहना था कि आजादी से पहले या बाद में कभी भी किसी महिला को इतना प्रताड़ित नहीं किया गया होगा, जितना उन्हें किया गया।

परमबीर सिंह ने सिंचाई घोटाले में अजित पवार को क्लीनचिट दे दी

1988 बैच के आईपीएस अधिकारी परम बीर सिंह को इस साल फरवरी में मुंबई पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। मुंबई पुलिस प्रमुख के तौर पर नियुक्ति से पहले वे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) के महानिदेशक (DG) थे।

महाराष्ट्र एसीबी में भी परम बीर सिंह का कार्यकाल विवादास्पद रहा है। सिंह ने पिछले साल दिसंबर में सिंचाई घोटाले में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार को क्लीनचिट दे दी थी। अजित पवार 12 विदर्भ सिंचाई विकास निगम (VIDC) परियोजनाओं से जुड़े एक घोटाले में आरोपित थे।

2009 में परम बीर सिंह पर ड्रग मामले में प्रोवोग के सह-मालिक सलिल चतुर्वेदी को झूठे केस में फँसाने का आरोप लगाया गया था। एसीपी पश्चिमी क्षेत्र के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सिंह और उनकी टीम ने ड्रग के मामले में सलिल चतुर्वेदी को गिरफ्तार किया था। हालाँकि, सालों बाद चतुर्वेदी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।

चतुर्वेदी की रिहाई के बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे स्थित राज्य सीआईडी को मामले में पुलिसकर्मियों की भूमिका की जाँच करने का निर्देश दिया था। जाँच के बाद, महाराष्ट्र CID ने पाया कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने चतुर्वेदी के आवास में कोकीन प्लांट किया था।

सलिल चतुर्वेदी पर छापा मारने वाले पुलिसकर्मियों में से एक अशोक भोसले ने कबूल किया था कि उन्हें वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर व्यवसायी के घर में ड्रग्स प्लांट करने के लिए कहा गया था। हालाँकि, बाद में सीआईडी के सामने वो अपने बयान से पलट गए। तब सीआईडी ने आरोप लगाया था कि भोसले ने ऐसा परम बीर सिंह के दबाव में आकर किया।

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