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बिहार चुनाव 2020: सियासी पिच पर दरकी रिश्तेदारी, कहीं भाई-भाई तो कहीं सास-बहू आमने-सामने

सियासत जो न कराए… कुर्सी की चाहत में अब नाते-रिश्तेदारी भी बेमानी हो गए हैं। मौजूदा विधानसभा चुनाव में अब तक जो तस्वीर उभर कर सामने आई है, उसमें कई सीटों पर सगे-संबंधी एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। कहीं भाई-भाई दो हाथ करने को तैयार हैं तो कहीं सास के खिलाफ पतोहू ने मोर्चा खोल दिया है। पीरपैंती विधानसभा सीट पर तो पिता-पुत्र ही आमने-सामने हैं। वहीं अगल-बगल की सीट पर भी एक-दूसरे के रिश्तेदार चुनावी मैदान में उतरे हैं।

सरफराज राजद से तो मो. शाहनवाज एआईएमआईएम से उतरे मैदान में 
जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र का चुनाव अब  दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। यहां कभी सीमांचल के कद्दावर नेता रहे स्व. सांसद तस्लीमुद्दीन के दो बेटे विधायक बनने के लिए आमने-सामने हैं।  जोकीहाट के निवर्तमान राजद विधायक व तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र का टिकट इस बार कट गया। बड़े भाई पूर्व सांसद सरफराज आलम को राजद ने टिकट  दिया है। सरफराज 2000, 2010 और 2015 में जोकीहाट के एमएलए भी रह चुके हैं, जबकि 2018 में हुए उपचुनाव में राजद ने तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे मो. शाहनवाज को टिकट दिया था। वह जीत भी गए थे। पर इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला। अब वह ओवैसी की एआईएमआईएम से मैदान में हैं। जोकीहाट विधानसभा से नामांकन करने वाले एक अन्य प्रत्याशी शब्बीर अहमद भी तस्लीमुद्दीन के करीबी रिश्तेदार हैं।

राजद प्रत्याशी रामविलास के सामने उनके पिता निर्दलीय ठोंक रहे ताल 
पीरपैंती विधानसभा सीट से इस बार भी पिता-पुत्र आमने सामने हैं। यहां के निवर्तमान राजद विधायक रामविलास पासवान तीसरी बार विस चुनाव लड़ रहे हैं। हर बार की तरह उनके पिता उदाली पासवान भी चुनावी मैदान में डटे हैं। रामविलास पहली बार 2001 से कुर्मा पंचायत से मुखिया बने थे। 2005 के भी मुखिया बने । इसके बाद 2010 में ही पहली बार राजद से चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के अमन पासवान से हार गए। 2015 में उन्होंने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने।  इस बार फिर राजद ने उन्हें टिकट दिया है। दूसरी ओर हर चुनाव में विधायक के पिता उदाली पासवान भी नामांकन कराते हैं। इस बार भी पुत्र के सामने डटकर खड़े हैं। पिता के समर्थक कहते हैं, उनका शौक है चुनाव लड़ना, इसीलिए नाम वापस नहीं लेते।

नरकटियागंज में भैंसुर और भावज एक-दूसरे को दे रहे हैं टक्कर 
नरकटियागंज विधानसभ क्षेत्र से विनय वर्मा और रश्मि वर्मा आमने-सामने हैं। दोनों आपस में भैंसुर और भावज हैं।  रश्मि वर्मा,  विनय वर्मा के चचेरे भाई स्वर्गीय आलोक वर्मा की पत्नी हैं। 2015 के चुनाव में भी दोनों आमने -सामने थे। तब भी विनय वर्मा कांग्रेस के उम्मीदवार ही थे। रश्मि वर्मा  को बीजेपी से टिकट नहीं मिला था तो  वह निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गई थीं।  विनय वर्मा चुनाव जीत गए थे और रश्मि वर्मा को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था।  इस बार भारतीय जनता पार्टी ने  रश्मि वर्मा पर विश्वास जताया है। फिर भावज और भैंसुर आमने-सामने हैं। चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन राजनीति के जानकारों के अनुसार दोनों के बीच जबरदस्त टक्कर होने का अनुमान है।

चाचा-भतीजा ने चुनाव को बनाया रोचक
ढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र के चुनाव मैदान में चाचा-भतीजा आमने सामने हैं। जनता दल राष्ट्रवादी के प्रत्याशी चाचा जयराम राय के खिलाफ भतीजा आनंद राय ने निर्दलीय ताल ठोंका है। आनंद राय छपरा के पूर्व जदयू विधायक रामप्रवेश राय के पुत्र हैं। जयराम राय 2010 का चुनाव निर्दलीय व 2015 का चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ चुके हैं।

रामनगर में सास भागीरथी देवी को चुनौती दे रहीं पतोहू रानी कुमारी
राम नगर विधानसभा चुनाव में पतोहु ने सास के खिलाफ ताल ठोक दिया है। रामनगर की विधायक भागीरथी देवी और उनकी पतोहू रानी कुमारी आमने-सामने हैं। भाजपा से प्रत्याशी सह स्थानीय विधायक भागीरथी देवी ने शनिवार को नामांकन का पर्चा दाखिल किया था।
सोमवार को उनकी पतोहू रानी देवी ने भी पर्चा दाखिल कर दिया। पर्चा दाखिल करने के बाद दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। पतोहू रानी ने कहा कि उनकी सास जब अपना घर नहीं संभाल सकीं तो विधानसभा क्षेत्र क्या संभाल पाएंगी। सास ने भी वार किया है। सास भागीरथी देवी पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित हैं।

मनेर में ममेरे-फुफेरे भाइयों ने चुनाव को बनाया त्रिकोणीय
विधानसभा के चुनाव में मनेर की लड़ाई दिलचस्प हो गई है। रिश्ते में ममेरे और फुफेरे भाई निखिल आनंद और श्रीकांत निराला आमने – सामने हैं। हालांकि श्रीकांत निराला दूर की रिश्तेदारी बताते हुए इस बात को खारिज करते हैं। भाजपा से टिकट कटने के बाद पूर्व विधायक श्रीकांत निराला निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। निखिल आनंद को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने को श्रीकांत निराला अपने पुराने दिनों के साथियों व अल्पसंख्यक समाज के लोगों को असली समाजवादी और सेक्युलर बताते हुए मनेर विधानसभा के चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने में दिन – रात, गांव – गांव का दौरा कर रहे हैं। वहीं, निखिल आनंद अपने स्व. दादा मनेर से विधायक रह चुके श्रीभगवान सिंह को अपना आदर्श बताते हुए वोट मांग रहे हैं।

शाहपुर में देवरानी और जेठानी में ठनी एक-दूसरे के खिलाफ अखाड़े में उतरीं
भोजपुर के शाहपुर विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 23 प्रत्याशी हैं पर यहां देवरानी व जेठानी के बीच मुकाबले को ले चर्चा गर्म है। पूर्व विधायक मुन्नी देवी को भाजपा ने एक बार फिर अपना उम्मीदवार बनाया है तो उनकी जेठानी शोभा देवी बतौर निर्दलीय चुनावी अखाड़े में उतर गई हैं। पिछले चुनाव में शोभा देवी के पति विशेश्वर ओझा भाजपा के उम्मीदवार थे। चुनाव बाद उनकी हत्या कर दी गई। उनकी पत्नी शोभा देवी भी टिकट की दावेदार थीं पर टिकट से वंचित होने पर उन्होंने देवरानी के सामने ही ताल ठोंक दिया है। दोनों एक दूसरे के वोटों में सेंधमारी की जुगत में हैं। पूर्व विधायक अपने कार्यों के आधार पर जनसमर्थन मांग रही हैं तो शेाभा देवी के बेटे राकेश विशेश्वर ओझा अपने पिता की हत्या की सहानुभूति वोट बटोरने में जुटी हैं।

चाचा-भतीजा की ‘लड़ाई’ का गवाह बनेगा गरुआ विधानसभा क्षेत्र
गया के गुरुआ विधानसभा क्षेत्र से चाचा-भतीजा चुनाव में आमने सामने हैं। इमामगंज प्रखंड के करमौन गांव के रहने वाले शेरघाटी विधान सभा क्षेत्र के पहले विधायक व स्वतंत्रता सेनानी स्व. जगलाल महतो के पुत्र अशोक प्रसाद और इनके भतीजे अरविंद कुमार महतो एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। चाचा अशोक प्रसाद भारतीय लोक चेतना पार्टी से तो भतीजा अरविंद कुमार महतो पीपल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) के टिकट से किस्मत आजमा रहे हैं। दोनों जगलाल महतो का सपना पूरा करने की बात कहते हैं। अशोक प्रसाद कई वर्षों से शिविर लगा लोगों को चिकित्सा मुहैया करा रहे हैं।  साथ ही बेरोजगारों को रोजगार के लिए प्रशक्षिण कर रहे हैं। वहीं, भतीजा अरविंद महतो आईटीआई कॉलेज खोल कर छात्र-छात्राओं को तकनीकी शिक्षा दे रहे हैं।

रामगढ़ में जगदानंद सिंह के बेटे की राह रोकने को चचेरा भाई है तैयार
राजद प्रत्याशी सुधाकर सिंह सहुका घराने के हैं। वह रामगढ़ विधानसभा से छह बार विधायक रहे व वर्तमान में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र हैं। दिल्ली से पढ़ाई कर चुके सुधाकर सिंह 10 वर्ष पहले भाजपा के टिकट पर रामगढ़ सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। तब राजद से अंबिका सिंह ने जीत दर्ज की थी। सुधाकर सिंह ने राजनीति में 15 वर्ष पहले ही कदम रख दिया, लेकिन तब पार्टी व संगठन से जुड़े रहे। वर्ष 2010 में भाजपा ने टिकट दिया तो तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा से इनका मोहभंग हो गया और पुन: राजद में वापस हो गए। एक साल पहले से ही चुनाव की तैयारी में जुट गए। आखिरकार पार्टी ने टिकट दिया और अब जीत की गोटी लाल करने की जुगत में पसीना बहा रहे हैं।

विरोधियों को विजय प्रकाश जमुई तो भतीजी दिव्या तारापुर से दे रहीं टक्कर
जमुई के दो राजनीति घराने से दो-दो प्रत्याशी चुनाव मैदान में डटे हैं। पहला राजनीति घराना पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव का है जिनकी पुत्री दिव्य तारापुर से तो भाई विजय प्रकाश जमुई से चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों को राजद ने अपना प्रत्याशी बनाया है। विजय प्रकाश 2005 के फरवरी में जमुई विधानसभा से विधायक चुने गए थे।  सरकार नहीं बनने और राष्ट्रपति शासन लगने की स्थिति में शपथ ग्रहण नहीं हो सका था। दुबारा 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी के रूप में विजय प्रकाश ने जीत हासिल की थी। सरकार गठन के बाद नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में विजय प्रकाश श्रम संसाधन राज्य मंत्री भी बने थे। मुंगेर जिले की तारापुर विधानसभा सीट राजद की प्रत्याशी दिव्या प्रकाश पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव की बड़ी सुपुत्री हैं। उनके चाचा विजय प्रकाश जमुई से राजद के टिकट पर तो वे खुद तारापुर से चुनाव मैदान में डटी हुई हैं।  पिछले ही वर्ष 2019 में यूपी के एक बड़े व्यवसाई से उनकी शादी हुई है। दिव्या प्रकाश ने स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई की है। राजनीति इनको विरासत में मिली है। तारापुर से चुनाव लड़ना सक्रिय राजनीति में उनका पहला कदम है। दिल्ली में पढ़ाई लिखाई होने के कारण भाषा पर भी अच्छी पकड़ है। विकास का एजेंडा लेकर वह चुनाव लड़ रही हैं। उनका मुकाबला जदयू के मेवालाल चौधरी से है।

दो भाई अगल-बगल के जिलों में आजमा रहे किस्मत
पूर्व विधायक नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय और उनके छोटे भाई पूर्व विधान पार्षद हुलास पांडेय इस बार अलग-अलग जिलों से चुनावी अखाड़े में उतरे हैं। चार बार विधायक का चुनाव जीतने वाले सुनील पांडेय भोजपुर के तरारी विधानसभा क्षेत्र से इस बार निर्दलीय मैदान में उतरे हैं तो पूर्व विधान पार्षद हुलास पांडेय सीमावर्ती बक्सर जिले के ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं। उन्हें लोजपा ने अपने टिकट पर चुनावी अखाड़े में उतारा है। सुनील पांडेय ने 2000 में पीरो से पहला चुनाव जीता और पहले पीरो और परिसीमन के बाद तरारी से लगातार जीत का चौका लगाया। पिछली बार उनकी पत्नी गीता पांडेय तरारी विस क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर मैदान में थीं पर कांटे के मुकाबले में महज 272 वोटों से चुनाव हार गईं। वहीं हुलास पांडेय आरा-बक्सर स्थानीय निकाय से विधान परिषद का चुनाव जीतकर छह साल विधान परिषद सदस्य रहे। विधान परिषद का पिछला चुनाव हार गये थे।

अजय प्रताप जमुई तो सुमित चकाई से चुनावी रण में कूदे
कभी बिहार की राजनीति में नरेंद्र सिंह की तूती बोलती थी। इस बार उनके दो बेटे अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। बड़ा बेटा अजय प्रताप जमुई से रालोसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में है। 2015 का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर उन्होंने लड़ा था। हालांकि महागठबंधन के प्रत्याशी विजय प्रकाश से पराजित हो गए थे। पांच वर्षों तक वे पार्टी में रहे। जब पार्टी ने उन्हें 2020 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया तो उन्होंने रालोसपा का दामन थाम लिया। अजय प्रताप ने स्नातक तक की पढ़ाई की हैं। राजनीति में आने से पहले पत्राकारिता से जुड़े थे। नरेंद्र सिंह के छोटे बेटे सुमित कुमार सिंह उर्फ विक्की बिहार के सबसे आखिरी विधानसभा क्षेत्र चकाई से निर्दलीय चुनाव मैदान में डटे हैं । 2010 के विधानसभा चुनाव में श्री सिंह ने जेएमएम के टिकट पर विजय हासिल की थी। बाद में उन्होंने अपना विश्वास मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में जताते हुए जदयू की सदस्यता ले ली थी। 2020 के चुनाव में जदयू से टिकट नहीं मिलने पर बागी उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बनाया। सुमित कुमार सिंह की प्रारंभिक शिक्षा बिहार में हुई थी। बाद में उन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। जमुई से प्रतिनिधित्व करने वाले स्वर्गीय अभय सिंह को वे अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं।

नवादा की सियासत में पति-पत्नी की धमक
नवादा जिले में पति-पत्नी की जोड़ी भी चुनाव मैदान में है। यह जोड़ी जिले की राजनीति में अपनी खास धमक रखती है। नवादा विधानसभा क्षेत्र से जदयू के टिकट पर कौशल यादव और गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र जदयू के ही टिकट पर पूर्णिमा यादव चुनावी रण में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्शा रहे हैं। छात्र राजनीति को आगे बढ़ाते हुए अपने विधायक पिता युगल किशोर सिंह यादव और विधायक माता गायत्री देवी की विरासत संभालते-संभालते कौशल यादव जिले की राजनीति के क्षत्रप बन चुके हैं। यही कारण है कि वह अब तक खुद चार बार विधानसभा पहुंच चुके हैं, जबकि अपनी पत्नी पूर्णिमा देवी को भी चार बार विधानसभा पहुंचाने में सफल रहे हैं। पति की अगुआई में राजनीतिक जीवन का आरंभ करने वाली पूर्णिमा यादव अब इतना पारंगत हो चुकी हैं कि उनके राजनीतिक कौशल का भी सानी नहीं है। वह एक मुखर वक्ता हैं। कई मंचों पर वह अपनी मौजूदगी का अहसास ही नहीं कराती रही हैं, बल्कि जनसभा को प्रभावित करने में भी सफल रही हैं।

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