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राष्ट्रहित पर राष्ट्र के साथ होनी चाहिए हमारी विचारधारा, राष्ट्र के खिलाफ नहीं- JNU में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा के अनावरण पर PM मोदी

नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार (12 नवंबर 2020) को जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) परिसर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण किया। यह प्रतिमा जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा से भी तीन फीट ऊँची बनाई गई है। इस दौरान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल, जेएनयू के कुलपति, प्राध्यापक और छात्र मौजूद थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस दौरान कई अहम बातें कहीं, उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत स्वामी विवेकानंद के विचारों से की। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े कई किस्से भी बताए।

उन्होंने बताया कि हर विचारधारा को देश के साथ जाना चाहिए, खिलाफ नहीं। इसके अलावा उन्होंने आपातकाल का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे अन्य विचारधाराओं के लोगों ने एक साथ आकर एकजुटता दिखाई थी। साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जेएनयू परिसर में लगी स्वामी विवेकानंद की यह मूर्ति देश के युवाओं को लोगों को कितने विविध पहलुओं को लेकर प्रेरित करेगी।

अपने भाषण की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “मैं प्रारम्भ में एक नारा बोलने का आग्रह करूँगा, मैं कहूँगा स्वामी विवेकानंद और आप कहेंगे अमर रहें, अमर रहें।” इसके बाद उन्होंने कहा, “उपनिवेशवाद के दौर में जब देश के लोगों पर अत्याचार होता था तब स्वामी विवेकानंद मिशिगन यूनिवर्सिटी गए थे। लगभग पिछली सदी में अंत में जब स्वामी जी वहाँ गए तो उन्होंने कहा कि यह शताब्दी भले आपकी है लेकिन सदी भारत की होगी। हमारे लिए बेहद ज़रूरी है कि हम स्वामी विवेकानंद की इस बात और उनकी दृष्टि को समझें।”

इसके बाद युवाओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कई अहम बातें कहीं। उन्होंने कहा, “मैं आशा करता हूँ कि जेएनयू परिसर में स्वामी विवेकानंद की यह मूर्ति युवाओं को प्रेरणा और ऊर्जा देगी। मैं यह भी आशा करता हूँ कि मूर्ति लोगों में वह साहस और उत्साह भरे जिसकी स्वामी विवेकानंद उम्मीद करते थे। उम्मीद है कि यह प्रतिमा लोगों को देश के प्रति स्नेह और त्याग सिखाएगी और यही स्वामी विवेकानंद का सर्वश्रेष्ठ संदेश था। यह प्रतिमा लोगों में ज़रूर एकता का भाव लेकर आएगी।

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अनेक अहम बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की। जिसमें कुछ महत्वपूर्ण बिंदु कुछ इस प्रकार हैं:

“देश का युवा दुनियाभर में ब्रांड इंडिया (Brand India) का ब्रांड एम्बेसडर (Brand Ambassador) है। देश के युवा भारत के संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आपसे अपेक्षा सिर्फ हज़ारों वर्षों से चली आ रही भारत की पहचान पर गर्व करने भर की ही नहीं है बल्कि 21वीं सदी में भारत की नई पहचान गढ़ने की भी है।”

“आप से (युवा और आम नागरिक) बेहतर ये कौन जानता है कि भारत में बदलावों (Reforms) को लेकर क्या बातें होती थीं। क्या भारत में अच्छे बदलावों को गंदी राजनीति नहीं माना जाता था? तो फिर अच्छे बदलाव, अच्छी राजनीति कैसे हो गए? इसको लेकर आप जेएनयू के साथी ज़रूर शोध करें। “

“आज तंत्र में जितने बदलाव किए जा रहे हैं, उनके पीछे भारत को हर प्रकार से बेहतर बनाने का संकल्प है। आज हो रहे बदलाव के साथ नीयत और निष्ठा पवित्र है। आज जो बदलाव किए जा रहे हैं, उससे पहले एक सुरक्षा कवच तैयार किया जा रहा है। इस कवच का सबसे बड़ा आधार है-विश्वास। “

“हमारे यहाँ लंबे समय तक गरीब को सिर्फ नारों में ही रखा गया। लेकिन देश के गरीब को कभी तंत्र से जोड़ने का प्रयास ही नहीं हुआ।”

“अब गरीबों को अपना पक्का घर, टॉयलेट, बिजली, गैस, साफ पीने का पानी, डिजिटल बैंकिंग, सस्ती मोबाइल कनेक्टिविटी और तेज़ इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा मिल रही है। यह गरीब के इर्द-गिर्द बुना गया वो सुरक्षा कवच है, जो असल में उसकी आकांक्षाओं की उड़ान के लिए ज़रूरी है।”

“आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है, यह स्वाभाविक भी है। फिर भी, हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में, राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ नहीं।”

“देश के इतिहास में देखिए, जब-जब देश के सामने कोई कठिन समय आया है, हर विचार हर विचारधारा के लोग राष्ट्रहित में एक साथ आए हैं।”

“आपातकाल के दौरान भी देश ने यही एकजुटता देखी थी। आपातकाल के खिलाफ उस आंदोलन में काँग्रेस के पूर्व नेता और कार्यकर्ता भी थे। आरएसएस के स्वयंसेवक और जनसंघ के लोग भी थे, समाजवादी लोग भी थे और वामपंथी भी थे।”

“इस एकजुटता में और इस लड़ाई में भी किसी को अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करना पड़ा था। बस उद्देश्य एक ही था- राष्ट्रहित इसलिए साथियों, जब राष्ट्र की एकता अखंडता और राष्ट्रहित का प्रश्न हो तो अपनी विचारधारा के बोझ तले दबकर फैसला लेने से, देश का नुकसान ही होता है।”

“विचार साझाकरण (Idea sharing) को, नए विचारों के प्रवाह को अविरल बनाए रखना है। हमारा देश वह भूमि है जहाँ अलग-अलग बौद्धिक विचारों के बीज अंकुरित होते रहे हैं और फलते फूलते भी हैं। इस परंपरा को मजबूत करना युवाओं के लिए आवश्यक है। इसी परंपरा के कारण भारत दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र है।”

बता दें कि स्वामी विवेकानंद की मूर्ति जेएनयू के कुछ पूर्व छात्रों के समर्थन से स्थापित की गई है। कुछ समय पहले दिल्ली की सड़कों को जाम करने के बाद यहाँ के कुछ वामपंथी छात्रों ने स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा को अपना निशाना बनाया था। इसी नई स्थापित मूर्ति को बदरंग करते हुए उसके पेडेस्टल पर माओवंशियों ने अपशब्द लिखे थे। “भगवा जलेगा”, “Fu&k BJP” आदि को लाल रंग के पेंट से लिखकर पेडेस्टल को क्षतिग्रस्त किया गया था।

 

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