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सरकार और किसानों के बीच टकराव बढ़ा, अब वार्ता को लेकर भी असमंजस

GHAZIABAD, DEC 14 (UNI):- Farmers blocking National Highway at Ghaziabad-Delhi border in protest against the Farm Laws, in Ghaziabad on Monday.UNI PHOTO-AK1U

नई दिल्ली। सरकार और किसानों के बीच शुक्रवार को हुई 11वें दौर की वार्ता में भी मुद्दे का कोई समाधान नहीं निकल पाया क्योंकि किसान नेता तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर पहले की तरह अड़े रहे।

वार्ता के पिछले 10 दौर के विपरीत 11वें दौर की वार्ता में अगली बैठक की कोई तारीख तय नहीं हो पाई। उल्लेखनीय है कि केंद्र द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में लगभग दो महीने से हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मानना है कि संबंधित कानून किसानों के खिलाफ तथा कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में हैं।
सरकार ने शुक्रवार को अपने रुख में कड़ाई लाते हुए कहा कि यदि किसान यूनियन कानूनों को निलंबित किए जाने संबंधी प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सहमत हो तो वह दुबारा बैठक करने के लिए तैयार है। इसके साथ ही किसान संगठनों ने कहा कि वे अब अपना आंदोलन तेज करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान सरकार का रवैया ठीक नहीं था।
केंद्र ने पिछले दौर की वार्ता में कानूनों को निलंबित रखने तथा समाधान ढूंढने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी। किसान नेताओं ने आज की बैठक के बाद कहा कि भले ही बैठक 5 घंटे चली, लेकिन दोनों पक्ष मुश्किल से 30 मिनट के लिए ही आमने-सामने बैठे।
बैठक की शुरुआत में ही किसान नेताओं ने सरकार को सूचित किया कि उन्होंने बुधवार को पिछले दौर की बैठक में सरकार द्वारा रखे गए प्रस्ताव को खारिज करने का निर्णय किया है। कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सहित तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने को कहा जिसके बाद दोनों पक्ष दोपहर भोज के लिए चले गए।
वार्ता टूट गई, क्योंकि…
किसान नेताओं ने अपने लंगर में भोजन किया जो तीन घंटे से अधिक समय तक चला। भोजन विराम के दौरान 41 किसान नेताओं ने छोटे-छोटे समूहों में आपस में चर्चा की, जबकि तीनों केंद्रीय मंत्रियों ने विज्ञान भवन में एक अलग कक्ष में प्रतीक्षा की। बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा कि वार्ता टूट गई है क्योंकि यूनियनों ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
मंत्रियों ने किसान यूनियनों से कहा कि उन्हें सभी संभव विकल्प दिए गए हैं और उन्हें कानूनों को निलंबित रखने के प्रस्ताव पर आपस में आंतरिक चर्चा करनी चाहिए। सूत्रों के अनुसार तोमर ने किसान नेताओं से कहा कि यदि वे प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं तो सरकार एक और बैठक के लिए तैयार है।
मंत्री ने यूनियनों का उनके सहयोग के लिए धन्यवाद भी किया और कहा कि हालांकि कानूनों में कोई समस्या नहीं है, लेकिन सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों के सम्मान में इन्हें निलंबित रखने की पेशकश की है। बैठक स्थल से बाहर आते हुए किसान नेता शिवकुमार कक्का ने कहा कि चर्चा में कोई प्रगति नहीं हुई और सरकार ने अपने प्रस्ताव पर यूनियनों से पुन: विचार करने को कहा।
कक्का बैठक से जाने वाले पहले व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने कहा कि यह ‘कुछ निजी कारणों’ की वजह से है। बुधवार को हुई बातचीत के पिछले दौर में सरकार ने तीनों नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित रखने और समाधान निकालने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी।
हालांकि बृहस्पतिवार को विचार-विमर्श के बाद किसान यूनियनों ने इस पेशकश को खारिज करने का फैसला किया और वे इन कानूनों को रद्द करने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी दो प्रमुख मांगों पर अड़े रहे।
कानून रद्द होने से कम कुछ भी मंजूर नहीं : किसान नेता दर्शनपाल ने कहा कि हमने सरकार से कहा कि हम कानूनों को निरस्त करने के अलावा किसी और चीज के लिए सहमत नहीं होंगे, लेकिन मंत्री ने हमें अलग से चर्चा करने और मामले पर फिर से विचार कर फैसला बताने को कहा।
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हमने अपनी स्थिति सरकार को स्पष्ट रूप से बता दी कि हम कानूनों को निरस्त कराना चाहते हैं, न कि स्थगित करना। मंत्रियों ने हमें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा। कुछ नेताओं ने आशंका जताई कि यदि किसान एक बार दिल्ली की सीमाओं से चले गए तो आंदोलन अपनी ताकत खो देगा।
भारतीय किसान यूनियन (असली अराजनीतिक) के अध्यक्ष हरपाल सिंह ने कहा कि अगर हम सरकार की पेशकश को स्वीकार भी कर लेते हैं, तो भी दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हमारे साथी भाई कानूनों को रद्द करने के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। वे हमें नहीं बख्शेंगे। हम उन्हें क्या उपलब्धि दिखाएंगे?
उन्होंने सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया और आरोप लगाया कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह 18 महीने तक कानूनों के क्रियान्वयन को स्थगित रखकर अपनी बात पर कायम रहेगी। सिंह ने कहा कि हम यहां मर जाएंगे, लेकिन कानूनों को रद्द कराए बिना वापस नहीं लौटेंगे।
41 किसान संगठनों से की बातचीत : सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश ने करीब 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता की।
संयुक्त किसान मोर्चा के तहत किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव पर बृहस्पतिवार को सिंघू बॉर्डर पर बैठक की थी। इसी मोर्चे के बैनर तले कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर किसान संगठन पिछले लगभग दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं।
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