इन्हें कैसे बनाया गया यह विज्ञान के लिए आज भी एक अबूझ पहेली है, क्योंकि कोई ऐसी तकनीक नहीं थी जो उस जमाने में इस ‘एयरपोर्ट’ को बना सकती थी। आज की आधुनिक टेकनोलॉजी को भी इसे बनाने भी भारी मशक्कत करना पड़ेगी तब उसक काल के मानव के लिए यह बनाना असंभव था। इसे कोई एलियंस ही बना सकता है और वह भी रातोंरात?
इंका सभ्यता के राजा से जब यह पूछा गया कि यह विशालकाय इतनी सुंदर तरीके से तराशी गई चट्टाने कहां से आई और इन्हें स्मारक जैसा रूप किसने दिया तो राजा ने कहा कि यह मैंने नहीं बनवाई यह आकाश से कोई आया था जिसने यह बनाए और हमारे लिए छोड़कर चले गए।
रातोरात पूरी सभ्यता कैसे खड़ी की जा सकती है? दक्षिण अमेरिका के इस गुमनाम शहर का नाम है- ‘पुम्मा पुंकु’। कऐते हैं कि इस शहर को ‘एलियंस’ ने बसाया और इसके पास महज 7 मिल की दूर पर उन्होंने एक ‘एयरपोर्ट’ भी बनाया और वह भी रातोंरात।
रातोंरात खड़े किए गए इस विशालकाय ढाचे का एक-एक पत्थर 26 फीट ऊंचा और 100 टन वजनी है। ग्रेनाइट पत्थर से बने यह एच शैप के पत्थर 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आखिर कैसे ले जाए गए। एक या दो पत्थर नहीं सैकड़ों H ब्लॉक। वैज्ञानिकों ने जब इन पत्थरों पर शोध किया तो पाया इतनी सफाई से बने ये पत्थर के ब्लाक हाथों से तो कतई नहीं बनाए जा सकते। यह तो भौतिकी का बेहतर उदाहरण है। उनके होल्स, और इनके किनारे बिल्कुल सटिक बने हैं। यह किसी मशीनी टूल्स, डायमंड टूल्स या लेजर से ही बन सकते हैं।
खोजकर्ताओं ने इसके कार्बन टेस्ट से पाया कि ये पत्थर करीब 27 हजार वर्ष पूराने हैं। इन एच ब्लाक को पत्थरों फिर से कंप्यूटर पर उसी तरह जोड़ा गया जबकि उन्हें उस काल में जोड़ा गया था तो एक विशाल प्लेटफार्म या कहें ट्रैक बनता है जो विशालकाय जायंट एयरशटल के उतरने के लिए थी। लेकिन 1100 ईसापूर्व यह इलाका पूरी तरह से तबाह हो गया। कैसे? बाढ़ से, युद्ध से, उल्का से या फिर ‘एलियंस’ ने ही इसे तबाह कर दिया।
सबसे खसा बात जो शोध से पता चली की इन्हें यहां से सात मिल दूर बनाकर यहां असेम्बल किया गया। कई शोधकर्ता इसे मानते हैं कि इसे सुपर टेक्नोलॉजी के जरिये यहां लाया गया और ऐसा तो कोई एलियंस ही कर सकता है। इंका सभ्यता के लोग या वहां के आदिवासी नहीं।
आखिर उन्हें रातोंरात बनाने की जरूरत क्यों हुई? दरअसल उनकी उड़न तश्तीर को उन्हें कहीं सुरक्षित लैंड करना था और लैंड करने के बाद फिर से उन्हें वहां से तुरंत ही निकलना था। इसलिए उन्होंने एक लांच पैड के साथ ही अपने लोगों के रहने के लिए एक स्थान (तिहूनाको) भी बनाया। अंत में वे उन्हें ऐसा का ऐसा ही छोड़कर चले गए।
जब उन्होंने एक छोटा गांव (तिहूनाको) बनाया तो उन्होंने उसकी दीवारों पर अपने लोगों के चित्र भी बनाए और उनके बारे में भी लिखा। तिहूनाको में काफी तादात में जो पत्थरों की दीवारें हैं उनमें अलग अलग तरह के मात्र गर्दन तक के सिर-मुंह बने हैं। यह सिर या स्टेचू स्थानीय निवासियों ने नहीं है। तिहूनाको के आदिवासी पुमा कुंपा में घटी असाधरण घटना कि याद में आज भी गीत गाते हैं। पुमा पुंका में आकाश से देवता उतरे थे।
1549 में इंका सभ्यता के खंडहर पाए गए। पुमा पुक्का से आधाकीलोमिटर दूर एक नई सभ्यता मिली जिसे तिहूनाको कहा गया। तिहूनाको को जिन्होंने बसाया उन्होंने ही पुमा पुंकु को बनाया।
सुमेरियन सभ्यता के टैक्स में भी इस जगह का जिक्र है, जबकि सुमेरियन सभ्यता यहां से 13 हजार किलोमीटर दूर है। सुमेरियन भी मानते है कि ‘अनुनाकी’ नाम का एक देवता धरती पर उतरा था। यह अनुनाकी एलियंस ग्रे एलियंस की श्रेणी का एलियंस था।