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राइट टू प्रोटेस्ट का मतलब यह नहीं कि कभी भी, कहीं भी बैठ जाएँ: SC ने शाहीन बाग प्रदर्शन पर पुनर्विचार याचिका खारिज की

नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार (फरवरी 13, 2021) को शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ धरने को लेकर अपने पुराने फैसले पर विचार करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विरोध का अधिकार ‘कभी भी’ और ‘हर जगह’ नहीं हो सकता। 12 ऐक्टिविस्ट्स ने सुप्रीम कोर्ट से अक्टूबर 2020 के उस फैसले पर पुनर्विचार की अपील की थी, जिसमें शीर्ष अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाग के प्रदर्शनों को अवैध ठहराया था।

अदालत ने कहा कि धरना-प्रदर्शन लोग अपनी मर्जी से और किसी भी जगह नहीं कर सकते। अदालत ने कहा कि विरोध जताने के लिए धरना प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन उसकी भी एक सीमा तय है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने पिछले साल अक्टूबर में दिए गए फैसले को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में फैसला सुनाया था कि धरना-प्रदर्शन के लिए जगह चिन्हित होनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति या समूह इससे बाहर धरना-प्रदर्शन करता है, तो नियम के मुताबिक प्रदर्शनकारियों को हटाने का अधिकार पुलिस के पास है। धरना प्रदर्शन से आम लोगों की जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। धरने के लिए सार्वजनिक स्थान पर कब्जा नहीं किया जा सकता।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में शाहीन बाग के प्रदर्शन को गैर कानूनी बताया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने कनिज़ फातिमा सहित 12 ऐक्टिविस्ट्स की ओर से दायर याचिका में मामले की सुनवाई खुली अदालत में करने के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया।

जस्टिस एसके कॉल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की तीन जजों वाली पीठ ने पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा, “विरोध करने का अधिकार हर जगह और किसी भी वक्त नहीं हो सकता। कुछ विरोध-प्रदर्शन कभी भी शुरू हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक चलने वाले धरना प्रदर्शनों के लिए किसी ऐसे सार्वजनिक स्थान पर कब्जा नहीं किया जा सकता, जिससे दूसरों के अधिकार प्रभावित हों।”

कोर्ट ने टिप्पणी की कि संविधान विरोध-प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने के अधिकार देती है, लेकिन कुछ कर्तव्यों की बाध्यता के साथ। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हमने सिविल अपील में पुनर्विचार याचिका और रिकॉर्ड पर विचार किया है। हमने उसमें कोई गलती नहीं पाई है।

गौरतलब है कि साल 2019 में दिल्ली का शाहीन बाग सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन स्थल के रूप में सामने आया था। कोरोना वायरस महामारी के चलते बीते साल मार्च में लगाए गए लॉकडाउन के बाद शाहीन बाग में प्रदर्शन खत्म हो गया था। प्रदर्शन में शामिल लोग और आलोचक इस कानून को ‘मुस्लिम विरोधी’ बता रहे थे।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों तक लोग सड़क रोक कर बैठे थे। दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से रोज़ाना लाखों लोगों को परेशानी हो रही थी। इतना ही नहीं दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों की साजिश भी शाहीन बाग में ही रची गई थी।

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