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‘मजदूरों की 2020 जैसी न हो दुर्दशा’: हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को चेताया, CM केजरीवाल की पत्नी को कोरोना

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने माना है कि 2020 के लॉकडाउन के दौरान आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार प्रवासी और दिहाड़ी मजदूरों की मदद करने में नाकाम रही थी। इस बार लॉकडाउन में इनकी पिछले साल जैसी दुर्दशा न हो यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिल्ली सरकार को दिया है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पत्नी सुनीता के कोरोना संक्रमित होने के बाद खुद को क्वारंटाइन कर लिया है।

सुनीता केजरीवाल ने कोरोना के लक्षण दिखने के बाद जाँच कराई थी। रिपोर्ट में वह पॉजिटिव पाई गईं हैं। इसके बाद उन्होंने खुद को होम आइसोलेट कर लिया है। दिल्ली में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए केजरीवाल ने 19 अप्रैल की रात से 26 अप्रैल की सुबह 5 बजे तक लॉकडाउन की घोषणा की थी। इसके बाद प्रवासी मजदूरों के बीच अपने घर लौटने की पिछले साल की तरह ही होड़ देखने को मिली।

दिल्ली से प्रवासी श्रमिकों के बड़े पैमाने पर जारी पलायन को लेकर हाई कोर्ट ने भी केजरीवाल सरकार को कड़ी चेतावनी दी है। उच्च न्यायालय ने रकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि प्रवासी श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों को उन परेशानियों का सामना न करना पड़े, जिससे वह 2020 में लॉकडाउन के दौरान गुजरे थे।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट ने राकेश मल्होत्रा बनाम GNCTD और अन्य के मामले की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियाँ की। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को 2020 के लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों और दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा की याद दिलाते हुए कहा कि इस साल पिछले साल की तहत प्रवासियों और दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा न हो इसके लिए राज्य सरकार को पर्याप्त कदम उठाना चाहिए।

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की खंडपीठ ने कहा, “साल 2020 में लगाए गए लॉकडाउन से एक बात किसी को भी नहीं भूलनी चाहिए कि सबसे ज्यादा दुर्दशा जीएनसीटीडी में निवास करने वाले और काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों का हुआ था। हम समाचार देख रहे हैं। समाचार रिपोर्टों के मुताबिक दिल्ली क्षेत्र में बढ़ते COVID-19 के मामलों के कारण प्रवासी श्रमिक पहले ही अपने घर जाना शुरू कर चुके हैं। राज्य सरकार ने 26.04.2021 तक कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया है। इससे दिहाड़ी मजदूर जो रोज की कमाई से अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं उनकी जिंदगी फिर से तबाह होती नजर आ रही है। एक बार फिर भोजन, कपड़े और दवाई जैसी बुनियादी जरूरतों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।”

पीठ ने कहा कि पिछले साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान लोगों की मदद के लिए सिविल सोसायटी आगे आई थी और उनके द्वारा जरूरतमंद लोगों को भोजन और अन्य आवश्यकता की चीजें उपलब्ध कराया गया था। दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए एडवोकेट राहुल मेहरा ने कहा कि राज्य ने इस संबंध में पर्याप्त कदम उठाए हैं। इस पर पीठ ने कहा कि हम अपने अनुभव से यह कह सकते हैं कि राज्य पर्याप्त कदम उठाने में विफल रहा है।

कोर्ट ने कहा कि गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्‍ली (जीएनसीटीडी) हजारों करोड़ रुपए का उपयोग करने में विफल रहा है जो वे भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 के तहत गठित बोर्ड के पास उपलब्ध है। इसे निर्माण श्रमिकों के लिए भवन सेस के रूप में इकट्ठा किया गया है।

कोर्ट ने आदेश दिया, “हम गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (जीएनसीटीडी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि उक्त बोर्ड अपने संबंधित कार्य स्थलों पर जरूरतमंद निर्माण श्रमिकों को भोजन, दवाइयाँ और अन्य आवश्यकता की चीजें उपलब्ध कराएँ। कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से सरकारी और एमसीडी स्कूलों में स्कूली बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराना चाहिए। दिल्ली के मुख्य सचिव को बिना किसी देरी के इस आदेश को लागू करना होगा। इसके साथ ही जीएनसीटीडी को एक हलफनामा दायर करना होगा, जिसमें यह बताना होगा कि दिए गए आदेश को किस तरह से क्रियान्वित किया जा रहा है।”

कोर्ट ने यह आदेश राकेश मल्होत्रा बनाम गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्‍ली (जीएनसीटीडी) और अन्य मामले में पारित किया है। कोर्ट के समक्ष जनवरी में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में COVID-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने की माँग की गई थी। हालाँकि COVID-19 की दूसरी लहर पर ध्यान देते हुए पीठ ने मामले पर वापस ध्यान दिया।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लॉकडाउन का ऐलान के साथ ही पहले दिल्ली के ठेकों पर भीड़ उमड़ी और फिर उसके कुछ ही घंटों बाद दिल्ली से घर लौटने की मजदूरों के बीच होड़ शुरू हो गई। ठीक उसी तरह जैसे पिछले साल लॉकडाउन के दौरान देखने को मिला था।

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