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वैक्सीन लगवा चुके राकेश टिकैत ने कहा- अगर किसानों को कोरोना होता है, तो इसकी जिम्मेदार केंद्र सरकार होगी

नई दिल्ली। दिल्ली में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि अगर दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसान कोरोना वायरस से संक्रमित होते हैं, तो इसकी जिम्मेदार केंद्र सरकार की होगी। उन्होंने कहा कि किसान अपनी माँग पूरी हुए बिना किसी कीमत पर दिल्ली की सीमाओं से नहीं हटेंगे। राजधानी में 6 दिन का लॉकडाउन है, यह किसानों के विरोध प्रदर्शन को रोक नहीं सकता है। कोरोना वैक्सीन लगवा चुके टिकैत ने कहा कि यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि प्रदर्शन कर रहे किसानों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने से कैसे बचाया जाए।

टिकैत ने कहा, “आंदोलन अगर खत्म हो जाए तो क्या देश से कोरोना खत्म हो जाएगा। वे हमारे गाँव हैं जहाँ हम 5 महीने से रह रहे हैं। अगर किसान कोरोना वायरस से संक्रमित होते हैं, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी। जब देश भर में COVID-19 के मामले बढ़ रहे हैं, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इसके लिए भी किसान ही जिम्मेदार हैं?”

उन्होंने आगे कहा कि अगर कोई बीमारी है, तो सरकार को इसका इलाज सुनिश्चित करना चाहिए और इसके लिए अस्पतालों का निर्माण करना चाहिए। राजनेता अन्य उद्देश्यों के लिए धन एकत्र कर रहे हैं। वे रैलियाँ कर रहे हैं और चुनाव लड़ रहे हैं।

बीते दिनों किसान नेता राकेश टिकैत ने जम्मू जाने के दौरान कहा था कि कोरोना नियमों का पालन करते हुए आंदोलन को जारी रखा जाएगा। ये कोई शाहीन बाग नहीं है, जिसे कोरोना वायरस के नाम पर खत्म किया जा सकता है।

किसानों के विरोध प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे हैं राकेश टिकैत ने आगे जोर देकर कहा कि कोरोनो वायरस के प्रकोप के कारण आंदोलन नहीं रुकना चाहिए। उन्होंने मंगलवार को दिल्ली-यूपी की सीमा के पास एक अस्पताल में वैक्सीन लगवाई है। इससे पहले टिकैत ने 13 अप्रैल को गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल के पास स्थित एक अस्पताल में कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक ली थी।

बता दें कि दिल्ली में लॉकडाउन लगने से पहले ही भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ऐलान कर दिया था कि लॉकडाउन लगने के बावजूद बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन नहीं थमेगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक राकेश टिकैत का किसानों पर खासा प्रभाव है। यही वजह है कि किसान न तो तीनों कृषि कानूनों की अच्छाई समझ पा रहे हैं और न ही इस पर हो रही राजनीति की गहराई तक पहुँच सके हैं।

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