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क्रायोजेनिक टैंक्स और ऑक्सीजन सप्लाई पर AAP के राघव चड्ढा का ‘लॉजिक’: खुद का ही माथा धुन लेंगे

नई दिल्ली। अब लोगों ने लगभग ये मान लिया है कि तथ्यों और तर्कों का आम आदमी पार्टी (AAP) के पास खासा अभाव है। दिल्ली में हाहाकार की स्थिति बनी रहती है और पार्टी खुद की सरकार के अलावा बाकी सब को जिम्मेदार ठहराने में व्यस्त रहती है। इस बार दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर से लोग मर रहे हैं। केजरीवाल सरकार अपनी नाकामियों और समन्वय की अक्षमता को छिपाने के लिए पूरा प्रयास कर रही है।

दिल्ली में इस महामारी के बीच मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन का इतना अभाव हो गया कि दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक को सुनवाई कर इसके समाधान के लिए ज़रूरी निर्देश देने पड़े। भारत के कई राज्यों में ये समस्या है, लेकिन शायद दिल्ली जैसी कहीं नहीं। इन सबके बीच AAP के राघव चड्ढा ने क्रायोजेनिक टैंक्स को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी गणनाएँ की, जो तथ्यों से परे है। वो भी तब, जब उन्होंने खुद एकाउंटेंट की पढ़ाई की है।

उन्होंने वीडियो के जरिए अपनी बात रखी। पीछे बज रहे म्यूजिक से ऐसा लगता है जैसे वो कुछ बहुत ही सनसनीखेज खुलासा करने जा रहे हों। AAP द्वारा अपलोड किए गए इस वीडियो में दावा किया गया है कि भारत में 1631 क्रायोजेनिक टैंक्स हैं और लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन कैरी करते हैं 8500 मीट्रिक टन। उन्होंने दावा किया कि इन टैंकर्स के पास 23,000 MT ऑक्सीजन कैरी करने की क्षमता है, जबकि वो सिर्फ 8500 MT ऑक्सीजन ही ढो पा रहे हैं।

वीडियो में राघव चड्ढा कहते हैं, “हमारे देश में क्रायोजेनिक टैंकरों की कमी नहीं है। राज्य सरकारों का इन टैंकरों पर पूरा नियंत्रण है। इन क्रायोजेनिक टैंकर्स को राष्ट्र की संपत्ति घोषित किया जाना चाहिए। जिस तरह से केंद्र सरकार राज्यों को ऑक्सीजन दे रही है, उसे ये टैंक्स बाँटने चाहिए।” उन्होंने वीडियो के अंत में और क्रायोजेनिक टैंक्स की माँग की। AAP जब ऑक्सीजन की जगह क्रायोजेनिक टैंक्स माँग रही है तो कुछ लोगों ने तथ्यों से उनको परिचित कराया है।

एक ट्विटर यूजर ने अटकल लगाई कि इस ट्वीट के लिए गणितीय गणनाओं हेतु प्रियंका गाँधी की सलाह ली गई थी। उसने समझाया कि कुल टैंकरों में से आधे फिर से वापस रिफिल होने के लिए जाते हैं। इनमें से कई टैंकरों को अधिक दूरियों की वजह से 24 घंटे तक का सफर तय करना होता है। समझाया कि 10 टैंकर हैं तो कैसे 5 खाली होकर वापस जाएँगे रिफिल के लिए और 5 फिर डिलीवरी के लिए आएँगे।

ये सही बात है। इन टैंकरों को रिफिल होने के लिए काफी दूरी तय करनी होती है और उस दौरान वे खली ही होती हैं। ऐसा नहीं है कि टैंकर ने तुरंत ऑक्सीजन भरी और अंतर्धान होकर वापस डिलीवरी के लिए आई और फिर वहाँ से मन की गति से वापस रिफिल के लिए। अगर सारे को एक साथ प्रयोग में लाया जाए डिलीवरी के लिए तो भी मुश्किल है। ऐसे में और ज्यादा समय लगेगा। एक यूजर ने कहा कि जो चीजें समझ न आए उन पर ज्ञान देने की बजाए AAP के लोगों को विज्ञापन तक ही सीमित रहना चाहिए।

एक अन्य ट्विटर यूजर ने तंज कसते हुए कुछ यूँ आइना दिखाया, “इसके घर में 1 ही LPG सिलिंडर है। जब वो खत्म हो जाता है तब ये सिलिंडर बदलने गोदाम जाता है। लेकिन खाना फिर भी पकता रहता है। आधे क्रायोजेनिक टैंकर जब डिलीवरी दे रहे होते हैं तब आधे टैंकर डिलीवरी देकर रिफिलिंग कर रहे होते हैं डिलीवरी के लिए। इस प्रकार चलती है सप्लाई।” दिल्ली में पिछले कई दिनों से ऑक्सीजन की भारी कमी है और AAP सरकार दोषारोपण में लगी है।

केंद्र सरकार ने दिल्ली को ऑक्सीजन दिया तो केजरीवाल सरकार उन्हें अस्पतालों तक पहुँचाने के लिए टैंकरों की व्यवस्था करने में नाकाम रही। दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि सब कुछ उन्हें थाली में रख कर नहीं मिलेगा, लोगों की जान बचाने के लिए उन्हें सभी सम्भव चीजें करनी चाहिए। इसके बाद केजरीवाल ने घोषणा की कि वो हर राज्य को क्रायोजेनिक टैंकर्स के लिए लिखेंगे। कई राज्यों के अख़बारों में कई भाषाओं में विज्ञापन दिए गए।

बता दें कि क्रायोजेनिक टैंकर्स सुपरस्पेशल टैंकर्स होते हैं और राघव चड्ढा ने खुद कहा कि पूरे देश में इनकी संख्या 1631 ही है। तो क्या किसी व्यक्ति के घर के पीछे ये थोड़े न पार्क किया हुआ मिलेगा, जो AAP का विज्ञापन पढ़ कर उसे दिल्ली भेज देगा प्रयोग में लाने के लिए? ऑक्सीजन डिमांड्स के मामले में दिल्ली सरकार की माँग मुंबई से 4 गुना अधिक है, जबकि दोनों जगह कोरोना के मामले समान ही हैं।

AAP नेताओं का कहना है कि अप्रैल की शुरुआत में दिल्ली को 700 MT ऑक्सीजन की आवश्यकता थी, जो माह ख़त्म होते-होते 976 MT पर पहुँच गई। अप्रैल 29 को केजरीवाल ने इतनी ही मात्रा में ऑक्सीजन के लिए पत्र लिखा। उस दिन दिल्ली में 97,977 सक्रिय कोरोना मामले थे। मुंबई में 61,433 एक्टिव केस थे और वहाँ 225 MT ऑक्सीजन की ज़रूरत बताई गई। सक्रिय मामलों के हिसाब से औसत निकालें तो दिल्ली को मात्र 360 MT ऑक्सीजन की ज़रूरत थी।


क्रायोजेनिक टैंकर्स के लिए देश के कई राज्यों में दिए गए विज्ञापन

उस दिन उन्हें 400 MT मिली। ये सब देख कर क्या आपको लगता है कि सच में केजरीवाल की सरकार दिल्ली में ऑक्सीजन की समस्या को ख़त्म करने में लगी हुई है? वो बस ये दिखाना चाहती है कि हम कोशिश कर रहे हैं। वो ‘कोशिश’, जो विज्ञापन देकर की जा रही है। अगर उन्होंने सच में काम किया होता तो शायद कई जानें बचाई जा सकती थीं। और अब वीडियो बना कर अजीबोगरीब कैलुलेशन्स किए जा रहे हैं।

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