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मोदी 2.0 में खिले 43 नए ‘कमल’, 2024 पर सीधी नजर: विस्तार के नए दरवाजों पर दस्तक

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट का विस्तार बहुप्रतीक्षित था। लेकिन वैश्विक कोरोना संक्रमण की वजह से उपजे हालात की वजह से यह टलती रही। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद मीडिया में इस विस्तार को लेकर कयासों का दौर जोर-शोर से शुरू हुआ। अटकलों के बाजार में कई नाम आए। कई गए। कुछ के नाम तो सूत्रों के हवाले से फाइनल तक बताए गए और आखिर में वे चर्चा में भी नहीं रहे। 12 मंत्रियों के इस्तीफे की तो किसी ने सोची नहीं थी। खासकर, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महकमों में इतने बड़े बदलाव को लेकर।

ऐसे में 2021 की 7 जुलाई को राष्ट्रपति भवन में 43 नए मंत्रियों की शपथ के साथ तस्वीर अब स्पष्ट हो चुकी है। इस तस्वीर से यह बात फिर पुख्ता हुई है कि किसी जमाने में ‘कौन मंत्री बनेगा’ यह तय करने वाली मीडिया को इसकी भनक तक नहीं थी कि आखिर में क्या होना है। वैसे ​ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कुछेक नाम गिना मुख्यधारा की मीडिया अब भी चाहे तो अपनी पीठ थपथपा सकती है।

अब जरा इस शपथ के बाद मोदी कैबिनेट में आए महत्वपूर्ण बदलावों पर गौर करते हैं;

  • यह अब तक की सबसे युवा कैबिनेट है। मंत्रियों की औसत आयु 61 से घटकर 58 हो गई है। वाजपेयी काल की छाप से भी करीब-करीब कैबिनेट मुक्त हो गई है। उस दौर के राजनाथ सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी ही अब इस कैबिनेट में बचे हैं।
    आज जिन 43 लोगों ने शपथ ली है उनमें से 15 कैबिनेट रैंक के हैं। 7 को प्रमोशन मिला है। इसके साथ ही केंद्रीय कैबिनेट के सदस्यों की संख्या 77 हो गई है। देश के 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश का इस मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व है।
    अनुसूचित जाति (SC) से 12 मंत्री हैं। ये अलग-अलग 8 राज्यों से आते हैं। इसी तरह अनुसूचित जनजाति (ST) से आने वाले मंत्रियों की संख्या 8 हो गई है। ये भी अलग-अलग आठ राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    अति पिछड़ी जातियों (OBC) से कुल 27 मंत्री हैं और ये 15 राज्यों से आते हैं। 5 अलग-अलग राज्यों से अल्पसंख्यक समुदाय के 5 लोग मंत्री हैं। लेकिन, पूववर्ती सरकारों की तरह इस सरकार में अल्पसंख्यक का मतलब मुस्लिम तुष्टिकरण नहीं है। लिहाजा एक मुस्लिम, एक सिख, एक ईसाई और दो बौद्धों को प्रतिनिधित्व मिला है।
    29 मंत्री अलग-अलग जातियों मसलन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार, कायस्थ, बनिया, खत्री, लिंगायत, रेड्डी, मराठा, पटेल वगैरह हैं। 11 महिला इस कैबिनेट की अब सदस्य हैं और ये अलग-अलग 9 राज्यों से आती हैं।
    शपथ लेने वाले नए मंत्रियों में से आठ उत्तर प्रदेश से और पाँच गुजरात से हैं। ये वे राज्य हैं जो मोदी के भारतीय राजनीति के पटल पर छा जाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण किरदार अदा कर चुके हैं। बंगाल से चार लोगों को मौका देकर संदेश दिया गया है कि मिशन बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद भी बीजेपी की प्राथमिकता है। महाराष्ट्र और कर्नाटक से भी 4-4 लोगों को मौका मिला है।

यानी मोदी सरकार का प्रतिनिधित्व देशव्यापी और समाजव्यापी है। करीब एक दशक पहले तक इतनी व्यापकता लिए हुए बीजेपी के नेतृत्व वाली किसी केंद्र सरकार की कल्पना भी मुमकिन नहीं लगती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे ‘सबका साथ, सबका विकास’, की तरह यह कैबिनेट सबकी सरकार होने का संदेश देती है। मोदी की उभार और यूपी में पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी की जबर्दस्त जीत के पीछे महिला मतदाताओं का अहम रोल रहा है। 11 महिलाओं की भागीदारी बताती है कि बीजेपी के चुनावी रणनीति के केंद्र में अब भी आधी आबादी बनी हुई है।

शिवसेना और अकाली दल जैसी पार्टियों के एनडीए छोड़ने के बावजूद मोदी ने बताया है कि वे सहयोगियों के साथ चलने को तैयार हैं, लेकिन उनके दबाव में आने को नहीं। यही कारण है कि दो साल बाद भी नीतीश कुमार की जदयू को मनचाहा भाव नहीं मिला है, जबकि इसी जदयू को बिहार विधानसभा चुनावों में कम सीट आने के बावजूद पार्टी ने सरकार का नेतृत्व करने का मौका दिया था। 2019 में केवल एक कैबिनेट बर्थ की वजह​ से जदयू ने मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था। उस समय पार्टी ने कहा था कि वह मजबूती के साथ हिस्सा बनेगी। दो साल बाद अब एक ही बर्थ कबूल कर जदयू कैबिनेट का हिस्सा बन गई है।

पशुपति पारस को मौका देकर यह संदेश दिया गया है कि बीजेपी न जदयू को ज्यादा भाव देने के मूड में है और न चिराग पासवान को। वहीं अनुप्रिया पटेल को दोबारा मौका दे सहयोगियों को भी संदेश दिया गया है कि यदि वे साथ चलने को तैयार हैं तो देर-सबेर उन्हें सरकार में उचित हिस्सेदारी भी मिलेगी। पिछले दिनों हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने दूसरे दलों के संभावनाशील चेहरों को जो संदेश दिया था, ज्योतिरादित्य सिंधिया के शपथ से वे संकेत और मजबूत हुए हैं। यह विपक्ष में एक नए भगदड़ को न्योता दे सकता है।

इन सबसे इतर इस बदलाव कोरोना संक्रमण की वजह से लोगों के मन में पैदा हुई निराशा को दूर करने का दमखम है। गवर्नेंस और विकास को लेकर मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को नए आयाम देने का अवसर भी।

कुल मिलाकर मोदी के नेतृत्व में बीजेपी नीत एनडीए ने 2024 की दिशा में कदम तेज कर दिए हैं। इस बदलाव से उपजी सफलता ही उस समय मोदी कैंपेन का आधार हो सकती है। सहकारिता मंत्रालय के गठन के पीछे भी यही दृष्टि नजर आती है। युवा जोश, क्षेत्रीय संतुलन और चुनावी समीकरणों के लिहाज से भी ये बदलाव जमीन से जुड़े दिखते हैं और सर्वार्थ सिद्धि योग में नए मंत्रियों का शपथ, जैसे सोने पे सुहागा।

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