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कर्नाटक में नए CM की ताजपोशी:कौन होगा अगला मुख्यमंत्री, कुछ देर में खत्म होगा सस्पेंस; राज्य के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई के नाम पर सबकी सहमति

कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री को लेकर कयास जारी हैं। शाम 7 बजे मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाने के लिए बैठक शुरू हो गई है। हालांकि अनौपचारिक रूप से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के घर में शाम 4 बजे से ही बैठक चल रही थी। बैठक में भाजपा महासचिव और कर्नाटक के प्रभारी जी किशन रेड्डी, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष नलिन कुमार कतिल, पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा समेत राज्य के कई बड़े नेता शामिल हैं।

केंद्र की तरफ से गए प्रतिनिधि और राज्य के नेताओं के बीच नए मुख्यमंत्री को लेकर मंथन शुरू हो चुका है। दरअसल, इस समय राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश की सियासत में हलचल है कि आखिर बीएस येदियुरप्पा के बाद कर्नाटक का CM कौन होगा? येदियुरप्पा को हटाकर भाजपा ने जानबूझकर आखिर राज्य के सबसे प्रभावी समुदाय लिंगायत से विरोध मोल क्यों लिया? येदियुरप्पा अगर रूठ गए तो भाजपा का कर्नाटक में क्या होगा? लेकिन सूत्रों की मानें तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इसका हल लगभग निकाल लिया है। लिंगायत समुदाय और येदियुरप्पा दोनों को साधने का रास्ता तय हो चुका है।

कर्नाटक में भाजपा तीन कोण साधने हैं
भाजपा को कर्नाटक में तीन कोण साधने हैं। पहला पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, दूसरा लिंगायत समुदाय और तीसरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। दरअसल, येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के हैं। संघ की पृष्ठभूमि के भी है, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा से निष्कासित होने के बाद उनके और संघ के शीर्ष नेतृत्व के संबंधों के बीच दरार आ गई थी। संघ कभी नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा भाजपा में वापस आएं, लेकिन 2013 के चुनाव में बिना येदियुरप्पा के भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। लिहाजा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा को वापस बुला लिया।

किस नाम से साधेंगे ये तीनों कोण?
फिलहाल पहला नाम कर्नाटक के गृहमंत्री बसवराज बोम्मई का चल रहा है। दूसरा नाम मुर्गेश निरानी और तीसरा अरविंद बल्लाड का है। तीनों ही लिंगायत समुदाय से आते हैं। लेकिन बसवराज बोम्मई येदियुरप्पा के करीबी ही नहीं, उनके शिष्य भी माने जाते हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आलाकमान के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं।

येदियुरप्पा ने सुझाया बोम्मई का नाम
लिंगायत समुदाय और संघ के सूत्रों की मानें, तो कर्नाटक में गृह मंत्री बसवराज बोम्मई तीनों कोणों में फिट हैं। वे येदियुरप्पा के चहेते और उनके शिष्य हैं। सूत्रों की मानें, तो येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने से पहले ही बोम्मई का नाम भाजपा आलाकमान को सुझा दिया था। दरअसल, लिंगायत समुदाय के मठाधीशों के साथ हुई बैठक में येदियुरप्पा ने अपनी तरफ से इस नाम को उन सबके बीच रखा था।

लिंगायत समुदाय नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा इस्तीफा दें, लेकिन येदियुरप्पा ने इस समुदाय को संबोधित करते हुए बैठक में कहा था, ‘सीएम पद की शपथ लेने से पहले ही यह तय हो चुका था कि मुझे 2 साल बाद आलाकमान के निर्देश के हिसाब से काम करना होगा। शीर्ष नेतृत्व का पैगाम आ गया है। मुझे पद छोड़ना होगा।’

लिंगायत समुदाय को बसवराज का नाम मंजूर
कर्नाटक के गृहमंत्री बसवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं। लिहाजा लिंगायत समुदाय को साधने में भी वे मददगार होंगे। येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा न देने के लिए अड़े लिंगायत समुदाय के सामने येदियुरप्पा ने जब इस नाम का सुझाव रखा तब जाकर भाजपा का विरोध रुका।

कर्नाटक के मशहूर लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरन बसवलिंग ने बताया अगर येदियुरप्पा एक इशारा करते, तो पूरा समुदाय उनके लिए भाजपा के विरोध में उतर आता। चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ती, लेकिन खुद येदियुरप्पा ने बसवराज बोम्मई की हिमायत की। लिंगायत समुदाय के होने की वजह से उनके नाम पर सभी मठाधीश जल्दी राजी हो गए।

बोम्मई की संघ से करीबी भी उनके पक्ष में
बसवराज बोम्मई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। संघ के शीर्ष नेतृत्व के बेहद करीबी हैं। माना जाता है कि संघ और येदियुरप्पा के बीच की कड़ी के रूप में इन्होंने ही काम किया। येदियुरप्पा से संघ के बिगड़े रिश्तों का असर येदियुरप्पा के कामकाज पर न पड़े इसमें भी बड़ी भूमिका बोम्मई ने निभाई।

लिंगायत समुदाय का असर 100 विधानसभा सीटों पर
कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को हटाना आसान नहीं होगा। उनको हटाने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा।

येदियुरप्पा को नाराज नहीं कर सकती थी भाजपा
भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीएस येदियुरप्पा को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। अलग होने के बाद येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पार्टी (केजपा) बनाई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि लिंगायत वोट कई विधानसभा सीटों में येदियुरप्पा और भाजपा के बीच बंट गया था।

विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों से घटकर 40 सीटों पर सिमट गई थी। उसका वोट प्रतिशत भी 33.86 से घटकर 19.95% रह गया था। येदि की पार्टी को करीब 10% वोट मिले थे। 2014 में येदियुरप्पा की वापसी फिर भाजपा में हुई। यह येदियुरप्पा का ही कमाल था कि कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 17 लोकसभा सीटें जीतीं।

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