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1980 में गोल्ड जीतने वाली टीम के 3 खिलाड़ी दुनिया में नहीं रहे, बाकी बोले- जीते जी देश की कामयाबी देख सुकून मिला

भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। टीम ने गुरुवार को ब्रॉन्ज मेडल के लिए खेले गए मैच में जर्मनी को 5-4 से हराया। एक समय मैच में भारत की पकड़ ढीली हो चुकी थी, भारतीय टीम 1-3 से पीछे थी, लेकिन इसके बाद शानदार वापसी करते हुए जीत हासिल की। भारत ने आखिरी बार 1980 में ओलिंपिक में मेडल जीता था।

उस समय भारतीय टीम में शामिल रहे खिलाड़ियों का कहना है कि जीते-जी भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग की वापसी को देखकर अच्छा लग रहा है। हर ओलिंपिक को इस आस में देखते थे कि शायद इस बार टीम बेहतर करेगी, मेडल लाएगी और ओलिंपिक में मेडल का सूखा खत्म होगा। पर अब 41 साल बाद जाकर पोडियम फिनिश करने का सपना पूरा हो पाया।

उस टीम के तीन सदस्य अब नहीं रहे। एमके कौशिक और रविंद्र पाल सिंह का देहांत इसी साल मई में कोरोना की वजह से हुआ। जबकि मोहम्मद शाहिद का 56 साल की उम्र में 2016 में देहांत हो चुका है। इनके अलावा 1980 ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम में वासुदेव भास्करन, बीर बहादुर छेत्री, सिल्वेनस डुंग डुंग, मर्विन फर्नांडीस, जफर इकबाल, चरनजीत सिंह, एम एम सोमया, एलन शॉफिल्ड, देवेंद्र सिंह, गुरमेल सिंह, अमरजीत सिंह राणा, राजेंद्र सिंह और सुरेंद्र सिंह सोढ़ी शामिल थे।

1980 ओलिंपिक में गोल्ड जीतने वाली टीम के सदस्य जफर इकबाल
1980 ओलिंपिक में गोल्ड जीतने वाली टीम के सदस्य जफर इकबाल

जफर इकबाल- 65 साल के जफर इकबाल कहते हैं कि इस बार टोक्यो में भारतीय लड़कों ने वो कर दिखाया, जिसको देखने के लिए हमारी आंखें तरस गई थीं। आखिरी बार हमने 1980 में ओलिंपिक में मेडल जीता था। अगले ओलिंपिक में मैं टीम का कप्तान था, पर हम लीग से आगे नहीं बढ़ सके। टोक्यो में भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों को पोडियम पर देखकर अच्छा लग रहा है। जर्मनी के खिलाफ ब्रॉन्ज मेडल के लिए लड़कों ने काफी बेहतर खेल दिखाया। जर्मनी का डिफेंस काफी मजबूत है। जब एक बार टीम लीड ले लेती है, उसके बाद किसी भी टीम के लिए जर्मनी के खिलाफ वापसी करना आसान नहीं होता। ऐसे में लड़कों ने शानदार वापसी की और देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता। भारत की इस जीत से स्वर्णिम युग वापस लौटेगा। मेरा मानना है कि भारतीय हॉकी प्रशासन को एक बार फिर से प्रो हॉकी लीग को संशोधित रूप में शुरू करना चाहिए। इससे प्रतिभावान खिलाड़ियों को मौका मिलेगा और खेल की लोकप्रियता बढ़ेगी।

गुरमेल सिंह मास्को ओलिंपिक में आखिरी बार गोल्ड मेडल जीतने वाले टीम के सदस्य रहे हैं।
गुरमेल सिंह मास्को ओलिंपिक में आखिरी बार गोल्ड मेडल जीतने वाले टीम के सदस्य रहे हैं।

गुरमेल सिंह – 61 साल के गुरमेल सिंह कहते हैं कि 1980 में गोल्ड मेडल जीतने के बाद मैंने ओलिंपिक नहीं खेला, लेकिन हर ओलिंपिक में भारतीय टीम को पोडियम पर देखना ख्वाब रहा। यह हकीकत में 41 साल बाद पूरा हुआ। टीम को मेडल टैली में देखकर अच्छा लग रहा है। आपसी मनमुटाव और चयन में पक्षपात की वजह से अब तक टीम ओलिंपिक में मेडल नहीं जीत पाई थी। इस टीम में भी कुछ ऐसे खिलाड़ियों को नजरअंदाज किया गया, जो वास्तव में टीम में शामिल होने के हकदार थे। अगर वे टीम में होते, तो शायद मेडल का रंग अलग होता। पर टोक्यो में भारत को पोडियम पर देखकर खुश हूं। गोल्ड न सही पर ब्रॉन्ज मेडल जीतकर हम मेडल टैली में शामिल हैं। हमें आगे चयन में पारदर्शिता लाना होगी। अब फिर से युवाओं का रुख हॉकी की ओर होगा। उम्मीद है कि अगले ओलिंपिक में हम इससे भी बेहतर करें और गोल्ड मेडल जीतें।

एम एम सोमया 1980 ओलिंपिक के बाद आगे के दो ओलिंपिक में भी भारतीय टीम के लिए खेले।
एम एम सोमया 1980 ओलिंपिक के बाद आगे के दो ओलिंपिक में भी भारतीय टीम के लिए खेले।

एम एम सोमया– मैं 1980 में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम का सदस्य रहा और उसके बाद मैंने दो ओलिंपिक और खेले। 1984 में हम लीग में तीन मैच जीते, पर सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाए। वहीं 1988 में भी टीम का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। मैं टीम का कप्तान था, लेकिन हम सेमीफाइनल तक नहीं पहुंच पाए। 1980 के बाद पहली बार हम न केवल सेमीफाइनल में पहुंचे, बल्कि हमने पोडियम फिनिश किया। 1980 के बाद मैच एस्ट्रो टर्फ पर खेला जाने लगा। हममें से ज्यादातर लोग घरेलू क्रिकेट में घास पर ही हॉकी खेलते थे। ऐसे में हम पिछड़ गए। फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में बदलाव के साथ हमें ताल-मेल बैठाने में दिक्कत होने लगी। एस्ट्रो टर्फ भी कम थे। परंतु पिछले कुछ सालों में बुनियादी सुविधाएं बढ़ी हैं, कई राज्यों में एकेडमी खुली है। खास तौर से हरियाणा, पंजाब और ओडिशा में एकेडमी खुली। इसका फायदा हुआ। मैं लकी हूं कि फिर से इंडिया हॉकी के स्वर्णिम युग को लौटते देख रहा हूं। विदेशी कोच और खिलाड़ियों की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने कड़ी मेहनत की और मेडल जीतने में सफल हुए।

राजेंद्र सिंह जूनियर इंडिया टीम के कोच भी रहे हैं और वह 1980 में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम के सदस्य भी थे।
राजेंद्र सिंह जूनियर इंडिया टीम के कोच भी रहे हैं और वह 1980 में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम के सदस्य भी थे।

राजेंद्र सिंह जूनियर– 61 साल के राजेंद्र सिंह इंडिया टीम के कोच भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि मैं टीम की जीत से खुश हूं। पर खिलाड़ियों के कंधों पर जिम्मेदारी बढ़ गई है। खिलाड़ियों को अपने प्रदर्शन को बनाए रखना होगा। अभी एशियन गेम्स आने वाले हैं। अगर एशियन गेम्स में हमारा प्रदर्शन अच्छा रहता है तो एक बार फिर हॉकी का बोल-बाला भारत में हो जाएगा। चूंकि 1980 के बाद अंतरराष्ट्रीय हॉकी में काफी बदलाव हुए, ऐसे में भारतीय हॉकी डिस्टर्ब रहा, लेकिन अब स्वर्णिम युग लौट रहा है। युवा खिलाड़ी पिछले कुछ सालों से लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहे थे। ऐसे में टोक्यो में मेडल की उम्मीद बढ़ गई थी। मुझे भरोसा था कि हम पोडियम फिनिश करेंगे।

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