के विक्रम राव
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव द्वारा गाय के सम्बंध में एक अतिमहत्वपूर्ण निर्णय के सिलसिले में यह मेरा एक दस्तावेजी लेख पुर्नप्रस्तुत है। किन्तु आज भी यह सामयिक कहलायेगा। अपने पिछले अवतार (भारतीय जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : आरएसएस) में इसके पुरोधाओं ने गोवध बन्दी पर अपनी राजनीति शुरू की थी। तब जनसंघ के उदीयमान नेता अटल बिहारी बाजपेयी ने लखनऊ के लालबाग में सत्यग्राही के रोल में जननायक बनने की मुहिम छेड़ी थी। तब स्कूल के छात्र के नाते मैंने अटल जी की लालबाग चौराहे पर पुलिस की गाड़ी पर सवार होते देखा था। उनका नारा था। “कटती गौंवे करें पुकार, बन्द करो यह अत्याचार।” फिर वे जेल में रहे। सजा भुगती। तब मुख्यमंत्री थे पर्वतीय विप्र पण्डित गोविन्द बल्लभ पंत जिन्होंने इस गोवध बन्दी के प्रदर्शनकारियों को गांधी वध के लिए दोषी समूह द्वारा प्रेरित आन्दोलन कहकर दमन कर दिया। और उसी दिन से जनसंघ का उरूज पर चढ़ता गया। प्रसंगवश उन्हीं दिनों एक हास्यास्पद घटना भी हुई। चारबाग रेलवे स्टेशन पर मैं संबंधियों को पहुँचाने गया था। वहां रेलवे पुलिस कई लोगों को रस्सी से बांधकर ले जा रही थी। कालेज के दो सहपाठी भी उन कैदियों में दिखे। मुझे देखते वे चिल्ला पड़े ”गौवध बन्द हो।” मुझे अचरज हुआ वे दोनों कट्टर कम्युनिस्ट थे, ये कब से जनसंघी हो गये ? मैंने थाने में पूछताछ की तो पता चला कि कानपुर लखनऊ ट्रेन में दैनिक यात्रियों के टिकट की जाँच हो रही थी। वे दोनों छात्र बेटिकट थे। गौभक्त बन गये। लेकिन अटल जी के बारे में एक संशय मेरा बना रहा कि छह वर्षों तक राज किया पर गोवधबन्दी की रूची नहीं ? एक बहाना जो मिल गया था। पशु पर कानून केवल राज्य बना सकते है। संविधान में यह राज्य सूची में है।
संभवतः अटलजी गाय के मुद्दे पर अपने हीरो जवाहरलाल नेहरु से काफी प्रभावित रहे। नेहरू 6 अप्रैल 1948 को एक पार्टी अधिवेशन में घोषणा कर चुके थे कि कांग्रेस कभी भी गोवध पर पाबन्दी नहीं लगायेगी। हालांकि तभी दो बयान और आये थे। गांधी जी ने कहा था कि ”जो गाय बचाने के लिये तैयार नहीं है, उसके लिये अपने प्राणो की आहुति नहीं दे सकता वह हिन्दू नहीं है।” उधर मुस्लिम लीगी नेता मोहम्मद अली जिन्ना से पूछा गया कि वे पाकिस्तान क्यों चाहते है ? उनका उत्तर था ”ये हिन्दू लोग हमसे हाथ मिलाकर अपना हाथ साबुन से धोते है। और हमें गोमांस नहीं खाने देता पाकिस्तान में यह नहीं होगा।”
जब आजाद भारत की संसद में गोवध बन्दी हेतु कानून का प्रस्ताव आया तो नेहरू ने सदन में धमकी दी थी कि वे ”प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे। सरकार गिर जाये तो उसकी भी परवाह नहीं करेंगे।” तब जबलपुर के सांसद सेठ गोविन्द दाप का विधेयक पेश (2 अप्रैल 1955) हुआ था।
गाय की उपोदयता पर सदियों से चर्चा, शोध कार्य तथा प्रमाण पेश किये जा चुके हैं। पैगम्बरों इस्लाम की मशहूर राय भी है कि ”अकरमल बकर काइलहा सैय्यदुल बहाइम” अर्थात गाय का आदर करों क्योंकि वह चौपाये की सरदार है।” भारत के इस्लामिक सेन्टर के वरिष्ठ सदस्य मौलाना मुस्ताक ने लखनऊ प्रेस क्लब में (14 फरवरी 2012) कहा था कि, ”नवी ने गोमूत्र पीने की सलाह दी थी। इससे बीम्ण ठीक हो गया था।” आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीय रिसर्च (सीएसआईआर) ने अपनी सहयोगी संस्थाओं के साथ मिलकर गौमूत्र के पेटेंट हेतु आवेदन किया है। लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में श्री आजाद ने बताया कि शोध में पाया गया है कि पंचगव्य घृत पूरी तरह सुरक्षित तथा कैंसर के इलाज में बहुत प्रभावी है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि कार्बोलिक एसिद होने के कारण गोइत्र कीटनाशक होता है। अमरीकी वैज्ञानिक मैकफर्सत ने 2002 में गोमूत्र का पेटेन्ट औषधी के वर्ग में करा लिया था। क्रमांक संख्या 6410059 है। चर्म रोग के उपचार में लाभप्रद पाया गया है। गाय को सचल दवाखाना कहा गया है। मेलबोर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक मैरिट क्राम्स्की द्वारा हुये शोध से निष्कर्ष निकला कि गाय के दूध को फेंटकर बने क्रीम से एचआईवी से सुरक्षा होती है।
पंचगव्य पदार्थों के गुण सर्वविदित है। मसलन गोबर से लीपी गई जमीन मच्छर मक्खी से मुक्त रहती है। महान नृषास्त्री बैरियर एल्विन ने निजी योग द्वारा कहा था कि दही से बेहतर पेट दर्द शान्त करने का उपचार नहीं है। एल्विन ने सारा जीवन पूर्वोत्तर के आदिवासियों के बीच जीवन बिताया। उनकी पत्नी भी भारतीय आदिवासी थी। अफ्रीकी इस्लामी राष्ट्र नाईजीरिया ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की सरकारी यात्रा पर अनुरोध किया था पूर्वी उत्तर प्रदेश की तीन हजार गंगातीरी गाय को भेज दें। उस नस्ल की गाय का दूध, दही और मक्खन स्वास्थ्यवधीन होता है।
यह तथ्य उन प्रगतिवादी भारतीयों के लिए है जिनकी मानसिकता अभी भी मध्ययुगीन है। नई सदी की दहलीज तक भी नहीं पहुंची है। वे लोग गोरक्षा के मुद्दे को हिन्दू संप्रदायवाद तथा कदीनी सोच की धुरी समझते हैं। हालांकि आज के मुसलमानों का गाय के प्रति नजरियों का पूर्वाभास मुंशी प्रेमचंद को सौ साल पहले हो गया था जब उनके उपन्यास के मुस्लिम पात्र ने अपनी गाय को एक कसाई के हाथ बेचने से साफ मना कर दिया था क्योंकि वह उसका गोश्त बेच देता। उसने हिन्दू के हाथ गाय बेची। सुरक्षा हेतु। आज तमाम मुसलमान गोसंबर्धक मिल जायेंगे।
विश्व के लब्धप्रतिष्ठित इस्लामी अध्ययन केन्द्र देवबन्द का दारूलउलूम के मुफ्ती हबीबुरहमान का तो फतवा है कि हर मुसलमान का फर्ज है कि वह दूसरे की आस्थाओं का आदर करे। आघात न करे। फतवे की आवश्कता पड़ी थी क्योंकि आल इंडिया मुस्लिम मजलिस के उत्तर प्रदेश सचिव मौलाना बद्र काज्मी ने आरोप लगाया था कि जिला पुलिस और मांस व्यापारियों की मिली भगत से सहारूपर जनपद में बड़े पैमाने पर गौवंश की कटान हो रही है। (जनसत्त: 29 सितम्बर 2012)। प्रबुद्ध शहरी गुफरान हाशमी ने कहा कि समाजवादी सरकार में गाय के गोश्त की बिक्री बढ़ी है। पिछले दिनों खबर साया हुई थी कि गायों से लदी एक ट्रक पकड़ी गयी जो बूचड़खाने ले जाया जा रहा था। इसके मालिक राज्य गोसेवा आयोग के शीर्ष हाकिम थे जो जाति से द्विज हैं। दूव्नेसेनी और हाकिम अबू नईम, लखनऊ के धर्मगुरू मौलाना इरफान फिरंगी मछली ने 29 अगस्त 2012 गोहत्या बन्दी की मांग की थी। कुरान के कुछ जानकार पैगम्बर की उक्ति की चर्चा करते हैं कि, ”लाजिम कर लो कि गाय का दूध पीना है क्योंकि वह दवा है। गाय की घी शीफा है और बचो गाय के गोश्त से चूंकि वह बीमारी पैदा करता है।” ये दानीशवर जन हजरत इमाम आजम अबु अनीफा ने (हदीस क्रमांक: 494.4) में लिखा है कि ”तुम गाय का दूध पीने के पाबन्द हो जाओं। चूंकि गाय अपने दूध के अन्दर सभी तरह के पौधों के सत्व को रखती है।” अपनी शोधपूर्ण पुस्तक ”मुस्लिम राज में गोसंवर्धन” डा. सैय्यद मसूद ने लिखा भी है कि अकबर के समय में ही गौवध प्रतिबंधित था। फारसी में लिखी अपनी वसीयत में बाबर ने 1526 में गोकशी पर पाबन्दी लगाई थी जिसका उनके बेटे हुमायूं ने पूरी तरह पालन किया था। जैन मुनि हरिविजयजी सूरि ने शत्रुंजय पर्वत में आदित्यनाथ मन्दिर के द्वार पर शिलालेख लगवाया था, जिसके अनुसार गोवध बन्दी पर अकबर का फरमान अंकित है। मासिक ”कत्याज” ने अपने गोरक्षा अंक (अक्टूबर 1945 संवत) के इस तथ्य को छापा भी था। विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम राष्ट्र हिन्देशिया के वाली द्वीप में लम्बू नामक सफेद गाय (स्थानीय भाषा में तरो) की पूजा अर्चना की जाती है। उसका दाहसंस्कार भी किया जाता है।
बीते वर्षों में वाणिज्यीय दृष्टि से गोधन की दशा का विश्लेषण करें तो सत्तासीन लोगों की नफा कमाने की लोलुपता जगजाहिर होती है। डा. मनमोहन सिंह सरकार के योजना आयोग ने बारहवीं पंच-वर्षीय योजना में बूचड़खानों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया था। सरदार मान्टेक सिंह अहलूवालिया पशु कत्लगाहों के आधुनिकरण हेतु अरबों रूपयों की राशी आवंटित कर दी थी। लिस्सेंस में भी बढ़ोत्तरी का आदेश दे दिया था। वे भूल गये कि उनके गुरू तेगबहादुर ने गोरक्षा हेतु अपना सर कटवा दिया था जो दिल्ली के चान्दनी चौक में गुरूद्वारा सीसगंज में आराध्य है। योजना आयोग के पास ताजा आंकडे़ मौजूद हैं जिसके अनुसार भारत में गायों की संख्या स्वतंत्रता के वर्ष (124) में एक अरब इक्कीस करोड़ से घटकर आज केवल दस करोड़ रह गई है। विश्व के पशुधन का एक चौथाई भारत में हुआ करता था हालांकि भारत की जनसंख्या दुनिया की 17 प्रतिशत है।
इस परिवेश में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की चेतावनी पर भारत को गौर करना होगा। इसने कहा यदि गोधन का संवर्धन नहीं हुआ तो आगामी पांच वर्षों बाद भारत में दूध का संकट विकराल हो जायेगा। पड़ोसी चीन में गाय का दूध नहीं मिलता है। बीजिंग में पत्रकार यूनियन के साथियों ने मुझे बताया कि हरी चाय की आदत डाल ले क्योंकि समूचे एशिया में सस्ते गोमांस का चलन बढ़ता जा रहा है।