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UP Exit Poll: मोदी या योगी? यूपी में बीजेपी की ऐतिहासिक वापसी का सबसे बड़ा किरदार कौन?

लखनऊ (आई वाच न्यूज़ नेटवर्क)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही 10 मार्च को आएं, लेकिन एग्जिट पोल के मुताबिक बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करती नजर आ रही है. एग्जिट पोल के आंकड़े ये संकेत दे रहे हैं कि ब्रांड मोदी के साथ इस बार योगी फैक्टर ने यूपी में बीजेपी का परचम लहराने में जमकर मदद की. लखनऊ से सीएम योगी ने हिंदुत्व के एजेंडे को धार दिया तो दिल्ली से पीएम मोदी ने विकास को रफ्तार दिया. मोदी-योगी की जोड़ी वाली डबल इंजन की सरकार का लगातार विकास की बातें करना जनता में भरोसा जगा गया. इस तरह मोदी-योगी के सियासी जादू के आगे विपक्षी दलों के नेताओं की एक नहीं चली और चुनावी पिच पर धराशायी होने के हालात बन गए. हालांकि मतगणना में अंतिम नतीजे कैसे आते हैं सबकुछ उसपर निर्भर करेगा.

इंडिया टुडे-एक्सेस माय इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक बीजेपी को 46 फीसदी वोटों के साथ 288 से 326 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं, सपा 36 फीसदी वोटों के साथ 71 से 101 सीटों पर जीत दर्ज करती दिख रही है. जबकि बसपा और कांग्रेस का सफाया होता नजर आ रहा है. एग्जिट पोल के यही आंकड़े अगर 10 मार्च को चुनावी नतीजों में तब्दील होते हैं तो बीजेपी सूबे में कई सियासी इतिहास रच देगी.

दरअसल, यूपी में कोई भी सीएम आजादी के बाद से पांच साल का कार्यकाल समाप्त कर लगातार दूसरी बार सत्ता के सिंहासन पर काबिज नहीं हो सका है. एग्जिट पोल के आंकड़े अगर नतीजे में बदलते हैं तो सीएम योगी ऐसा करने वाले सूबे के पहले मुख्यमंत्री हो सकते हैं. इतना ही नहीं 1985 के बाद 37 वर्षों में यह पहली बार होगा कि कोई पार्टी लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए वापसी करेगी. यूपी की सियासत में बीजेपी ये सियासी करिश्मा पीएम मोदी और अमित शाह के साथ-साथ सीएम योगी की मजबूत जुगलबंदी को उतारकर करती दिख रही है.

योगी का सुशासन मॉडल

उत्तर प्रदेश चुनावों में कभी कानून-व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा रहा है, जिससे जनता, व्यापारी और अधिकारी सभी त्रस्त थे. ऐसे में योगी राज के पांच साल में सबसे ज्यादा जोर कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दी गई. योगी सरकार में माफियाओं और गुंडों को निशाना बनाया गया, जिसके चलते गुंडागर्दी पर नकेल कसी गई. बुलडोजर तो सिंबल की तरह इस्तेमाल होने लगा, जो योगी राज में माफिया और अपराधियों के घर पर चला. योगी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में सूबे के लोगों में एक धारणा बनी है कि कानून का राज है.

पीएम मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित तमाम बीजेपी नेताओं ने चुनाव प्रचार में इसे मुद्दा बनाते हुए अपनी हर रैली में योगी सरकार में गुंडागर्दी के खात्मे का जिक्र किया. साथ ही वोटरों को याद दिलाया कि वो ऐसी सरकार कतई न चुनें जो सिर्फ गुंडागर्दी के बल पर राज करती है. योगी सरकार की वापसी में सूबे की कानून-व्यवस्था में सुधार को एक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है.

पीएम मोदी ने मोर्चा संभाला  
उत्तर प्रदेश में मुश्किलें भी सत्तारुढ़ बीजेपी की कम नहीं थीं. योगी सरकार के पांच साल में एक तरफ बाह्मणों के नाराज होने की खबर थी, तो दूसरी तरफ किसान आंदोलन के कारण जाट वोटरों की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही थी. ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी जैसे कद्दावर ओबीसी नेता व सहयोगी साथ छोड़ गए थे. आवारा पशुओं से लोग परेशान थे, जिससे चुनाव में बड़ा नुकसान होने की संभावना दिख रही थी. ऐसे में पीएम मोदी यूपी चुनाव के रण में उतरे और तबड़तोड़ सूबे में अपनी रैलियां करके सियासी माहौल को बीजेपी के पक्ष में मोड़ने में लग गए, जो एग्जिट पोल के नतीजे बीजेपी को राहत देने वाले लग रहे हैं.

हिंदुत्व के एजेंडे को मिली धार 
योगी आदित्यनाथ सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने के बाद से हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने में जुटे हैं. पांच साल के दौरान योगी अयोध्या से लेकर मथुरा, काशी और चित्रकूट पर मेहरबान रहे हैं. लव जिहाद पर सख्त कानून बनाया तो गौवंश पर कड़े कानून लाए गए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो दूसरी तरफ पीएम मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का कायाकल्प कर इतना साफ कर दिया था जिस विचारधारा पर पूरा संघ परिवार चल रहा है उसको पूरा करने का काम मोदी-योगी सरकार कर रही है.

यूपी चुनाव के बीच मथुरा का मुद्दा बीजेपी के अंदर उठा तो और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदुओं के पलायन का मुद्दा भी छाया रहा. योगी आदित्यनाथ और अमित शाह आक्रामक तरीके से हिंदुत्व के मुद्दों को उठाया तो मोदी ने राष्ट्रवाद और विकास के एजेंडे पर चुनाव प्रचार को रखा. मोदी-योगी की जोड़ी ने सूबे में हिंदुत्व के एजेंडे को ऐसे धार दिया कि विपक्षी दल के नेता भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल पड़े. अखिलेश यादव से लेकर प्रियंका गांधी तक मंदिर में माथा टेकने से लेकर पूजा-अर्चना करते नजर आए. इसके बावजूद बीजेपी परचम लहराने में कामयाब रही.

मोदी की योजना को योगी ने जमीन पर उतारा
पीएम मोदी ने गरीबों के लिए फ्री राशन से लेकर आवास निर्माण तक की योजना बनाई. मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना में गरीबों को गेंहू, चावल, दाल, चना और नमक देने की पहल की गई. मोदी सरकार के इस कदम ने गरीब और ग्रामीण इलाके के लोगों को जबरदस्त राहत दी. कोरोना के चलते रोजगार खत्म हो गए थे, उद्योग बंद थे, लोग अपने गांवों को लौट आए थे, ऐसे में अनाज देने की पहल की गई. यूपी में सीएम योगी ने फ्री राशन योजना को बेहतरीन तरीके से अमलीजामा पहनाया. ऐसे ही प्रधानमंत्री आवास निर्माण के लिए गरीबों को ढाई-ढाई लाख रुपये दिए गए, जिसका सबसे ज्यादा लाभ सूबे में लोगों को मिला. मोदी-योगी की योजनाओं के लाभार्थी इस चुनाव में बीजेपी के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुए.

मोदी का ओबीसी कार्ड दांव सफल
यूपी चुनाव में बीजेपी को घेरने के लिए सपा ने ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर ओबीसी नेताओं को साथ मिलाया. ये वही गैर यादव ओबीसी नेता थे, जिसने यूपी में बीजेपी से भर-भर कर वोट दिए. ऐसे में ओबीसी वोटों के बीजेपी से छिटकने की आशंका दिख रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने चुनावी रण और पूर्वांचल में ताबड़तोड़ रैलियां करके सारे जातीय समीकरण और सियासी समीकरण को ध्वस्त कर दिया.

एग्जिट पोल देखकर लगता है कि बीजेपी से एसपी में शामिल हुए ओबीसी के बड़े नेता सिर्फ हेडलाइन में ही चमके. जमीन पर उनका वैसा प्रभाव नहीं दिखा, जैसा कि कयास लगाया गया. एग्जिट पोल को देखकर लगता है कि गैर-यादव ओबीसी बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा हुआ है और विपक्ष की कोशिशें फेल होती दिख रही हैं.

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