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हेमंत सोरेन की खनन पट्टे की फाइल मंत्री हेमंत सोरेन ने क्लियर की, CM हेमंत सोरेन ने मुहर लगाई: झारखंड में करप्शन की नई खुदाई

संवैधानिक पद पर रहकर उसका दुरुपयोग करने के मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Jharkhand CM Hemant Soren) ने भ्रष्टाचार की नई कहानी नई तरीके से लिखी है। यह मामला आप में अनोखा मामला है, क्योंकि यहाँ आवेदक से लेकर स्वीकृति देने वाला और घोटाला करने वाला व्यक्ति एक ही है और वह है राज्य का मुख्यमंत्री है। यानी सीएम का सीएम के लिए सीएम द्वारा किया गया अनोखा काम।

खनन पट्टा मामले में भ्रष्टाचार को अगर हम सरल शब्दों में परिभाषित कर पद के दुरुपयोग को समझने की कोशिश करें तो कुछ इस तरह से कर सकते हैं। हेमंत सोरेन नाम का एक कारोबारी खनन पट्टे के लिए गाँव के लोगों के साथ एक समझौता करता है। फिर उसे पर्यावरण की अनुमति के लिए आवेदन करता है। यह आवेदन राज्य सरकार के पर्यावरण संरक्षण विभाग के पास जाता है, जिसका प्रमुख हेमंत सोरेन नाम का व्यक्ति होता है। यह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार के अंतर्गत आता है। इस तरह हेमंत सोरेन की सरकार में हेमंत सोरेन नाम के कारोबारी को हेमंत सोरेन वाले विभाग द्वारा खनन की स्वीकृति दे दी जाती है।

हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँची झारखंड सरकार

हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) के मामले में झारखंड हाईकोर्ट में शुक्रवार (17 जून 2022) को सुनवाई होने वाली है। खनन पट्टा का मामला सीएम सोरेन के लिए गले की हड्डी बन चुका है और उनकी कुर्सी को भी खतरे में डाल दिया है। खनन मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने 8 अप्रैल 2022 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस जारी कर विस्तृत एवं बिंदुवार जानकारी माँगा था।

इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने सीएम सोरेन के खिलाफ नाराजगी भी दिखा चुका है। चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि दस्तावेजों के ‘प्रमाणीकरण’ कर वे बताएँ कि सोरेन ने राँची के अंगारा ब्लॉक में खनन पट्टा लेने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया है या नहीं।

सीएम हेमंत के भ्रष्टाचार का मामला कैसे आया सामने?

शिवशंकर वर्मा नाम के एक व्यक्ति ने हेमंत सोरेन द्वारा खनन पट्टा अपने नाम करने को लेकर 11 फरवरी 2022 को हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी। अधिवक्ता राजीव कुमार की ओर से दाखिल उस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई की थी। अदालत ने सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा था कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री और वन एवं पर्यावरण विभाग के विभागीय मंत्री हैं। ऐसे में उन्होंने खुद ही पर्यावरण क्लीयरेंस के लिए आवेदन दिया और खुद ही क्लीयरेंस लेकर खुद ही खनन पट्टा हासिल कर लिया। ऐसा करना पद का दुरुपयोग और जनप्रतिनिधि कानून का उल्लंघन है।

हेमंत सोरेन पर खनन पट्टा लेने का आरोप

मुख्यमंत्री सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने नाम पर पत्थर खदान का पट्टा लिया। यह खदान राँची जिले के अनगड़ा मौजा, थाना नं-26, खाता नं- 187, प्लॉट नं- 482 में स्थित है। आरोप है कि इस पट्टे की स्वीकृति के लिए हेमंत सोरेन साल 2008 से ही प्रयास कर रहे थे।

दबाव बनाकर ली गई पर्यावरण मंजूरी

रिपोर्ट के मुताबिक, 14 मार्च 2021 को अनगड़ा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और गाँव के कुछ लोगों के बीच भूमि के पट्टा का एक समझौता हुआ। इसके बाद खनन के लिए मुख्यमंत्री ने 28 मई 2021 को तत्कालीन जिला खनन पदाधिकारी (DMO) को आवेदन दिया। 16 जून 2021 को DMO ने कुछ शर्तों के साथ खनन लीज की सैद्धांतिक मंजूरी दी। नौ सितंबर 2021 को मुख्यमंत्री ने पर्यावरण मंजूरी के लिए SEIAA को आवेदन दिया। इस पर 22 सितंबर को मंजूरी दे दी गई।

मनी लॉन्ड्रिंग की जाँच के दौरान ED को जानकारी मिली कि अनगड़ा में सीएम सोरेन द्वारा पत्थर खदान का पट्टा लेने के मामले में दबाव बनाकर पर्यावरण मंजूरी ली गई थी। मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से जुड़े एक प्रभावशाली व्यक्ति ने राज्यस्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) के अधिकारी को फोन कर स्वीकृति देने के लिए कहा था। जब जानकारी मिली कि आवेदक खुद मुख्यमंत्री ही हैं तो पर्यावरण मंजूरी दे दी गई।

सोरेन पर मनी लॉन्ड्रिंग का भी आरोप

सीएम सोरेने द्वारा खुद खनन पट्टा लेने का आरोप लगाने वाले याचिकाकर्ता शिवशंकर वर्मा ने मुख्यमंत्री पर मनी लॉन्ड्रिंग का भी आरोप लगाया था और इसकी जाँच कराने की माँग की थी। वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने ED को जाँच का आदेश दिया था। जाँच में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज भी शामिल रही, जो 300 से अधिक कंपनियों की क्रेडिंशयल जाँच की।

रिपोर्ट के मुताबिक, जाँच के दायरे में आने वाली 28 कंपनियों में हेमंत सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन का पैसा लगा हुआ है। याचिकाकर्ता के मुताबिक इस शेल कंपनियों ने इस मामले में बड़ी भूमिका निभाई है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद ED यह जाँच करेगी कि इन कंपनियों ने पैसों का किस रूप में निवेश कर के कैसे फायदा कमाया है। इसी केस में बसंत सोरेन के महाराष्ट्र निवासी संबंधी सुरेश नागर की भूमिका की भी जाँच शामिल है।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया था कि हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने झारखंड राज्य के कई जिलों में खुद को उसी संबंधित थाने का निवासी बताते हुए सैकड़ों एकड़ जमीनों को खरीदा। हेमंत सोरेन के मुताबिक, हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मु सोरेन ओडिशा राज्य की आदिवासी वर्ग से आती हैं। उन्होंने साल 2009 में राँची के महत्वपूर्ण माने जाने वाले इलाके अरगोड़ा में कल्पना सोरेन ने 13 कट्टा, 14 छटाक और 17 कट्ठा व 8 छटाक आदिवासियों की जमीन को खरीदा था।

पूर्व सीएम रघुवर दास ने कल्पना सोरेन पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उनके द्वारा 13 कट्ठा 14 छटाक जमीन को लेकर मामले हैं। रघुवर दास कहते हैं कि जिस वक्त इस जमीन को खरीदा गया था तो उस वक्त इसका सरकारी मूल्य 34 लाख 93 हजार रुपए दिखाया गया है, लेकिन इसको बेचने की कीमत केवल 4,16,000 रुपए बताई गई थी। जबकि, दूसरी डीड 17 कट्ठा 8 छटाक को लेकर है। क्रय के क्रम में 5,25,000 रुपए बताया गया है।

कोर्ट ने हेमंत सरकार को याद दिलाया राजधर्म

सीएम सोरेन उनके भाई बसंत सोरेन एवं करीबियों के शेल कंपनी में निवेश के मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार को राजधर्म याद दिलाया। हालाँकि, अदालत में खनन पट्टा और मनरेगा घोटाला से संबंधित मामले में सुनवाई नहीं की है। इस दौरान ईडी के अधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा कि राज्य खनिज संपदाओं से भरा है और उसके रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। ऐसे में जरूरी कार्रवाई हो। यह कई आपराधिक गतिविधियों का मुख्य कारण है।

ईडी ने कोर्ट में हलफनामा देकर साफ कहा है कि आईएएस पूजा सिंघल समेत कई लोगों के यहाँ हुई छापेमारी में ऐसे गोपनीय दस्‍तावेज हाथ लगे हैं, जिनसे भ्रष्‍टाचार के तार हेमंत सोरेन से जुड़े होने की पुष्टि हुई है। वहीं, झारखंड सरकार का बचाव कर रहे अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि ये आरोप राजनीति से प्रेरित हैं।

हेमंत सोरेन की संपत्ति 5 साल में दोगुनी और 10 साल में 11 गुनी हुई

झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान साल 2019 में साहेबगंज में बरहेट से पर्चा भरने के दौरान दिए गए शपथ पत्र में शपथ पत्र में अपनी कुल संपत्ति 8 करोड़ 11 लाख 14 हजार 388 रुपए बताई थी। वहीं, 2014 के विधानसभा चुनाव में अपनी कुल संपत्ति 3 करोड़ 50 लाख 76 हजार 527 रुपए बताई थी।

वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी और पत्नी की कुल संपत्ति 73 लाख 57 हजार रुपए बताई थी। 2009 के विवरण के हिसाब से दस साल में हेमंत सोरेन की संपत्ति 11 गुना से अधिक हो गई। वहीं 2014 के हिसाब से 5 साल में इनकी संपत्ति दो गुना से अधिक हो गई। अब 2019 में इनकी चल-अचल संपत्ति बढ़कर 2 करोड़ 29 लाख 29 हजार 153 हो गई, वहीं उनकी पत्नी की चल-अचल संपत्ति 5 करोड़ 81 लाख 85 हजार 235 हो गई।

झारखंड में खुद को दोहरा रहा है इतिहास

ऊपर की पूरी कहानी कहानी पढ़ने के बाद स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ना सिर्फ खनन पट्टा अवैध तरीके से अपने नाम लिया, बल्कि उन्होंने अपने परिजनों और करीबियों को भी अनुचित लाभ दिया। इस अनुचित लाभ के लिए कई तरह की शेल कंपनियों का गठन किया गया और मनी लॉन्ड्रिंग की गई। मनरेगा जैसे घोटोले किए गए।

यह पहली बार नहीं है कि हेमंत सोरेन की सरकार भ्रष्टाचार के घेरे में है। इसके पहले शिबू सोरेन और मधु कोड़ा की सरकार भी भ्रष्टाचार में आकंठ लिप्त रही है और उन्हें कोर्ट की कार्रवाई का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी बात यह है कि इन सब मुख्यमंत्रियों के काल में कॉन्ग्रेस पार्टी सरकार की महत्वपूर्ण साझेदार रही है। कॉन्ग्रेस या तो सरकार में शामिल रही है या फिर सरकार को समर्थन दे रही होती है।

शिबू सोरेन के मुख्यमंत्रित्व काल में कई राजनेताओं और नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के छींटे पड़े। बाद में शिबू सोरेन खुद कोयला घोटाले में फँसे। जब झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा बने तब उन्होंने 4,000 करोड़ रुपए के हवाला कांड में जेल की हवा खाई।

हेमंत सोरेन की सरकार में एक बार फिर इतिहास दुहराता दिख रहा है। इस दौरान भाजपा का ही एक ऐसा शासनकाल रहा, जिसमें घोटाले का आरोप नहीं लगे। अब देखना है कि हेमंत सोरेन मामले में कोर्ट का क्या फैसला होता है।

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