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रूस की वजह से ये भारतीय कंपनियां हो रहीं मालामाल

नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जहां दुनिया तेल की बढ़ती कीमतों से परेशान है, वहीं भारत की बड़ी तेल कंपनियों का जैकपॉट लग गया है. भारत की तेल कंपनियां विश्व बाजार में सर्वोत्तम क्वालिटी का माने जाने वाले रूसी यूराल ईंधन तेल को भारी मात्रा में खरीद रही हैं और इसे एशिया और अफ्रीका के बाजारों में उच्च अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर बेच रही हैं. इस व्यापार में भारतीय तेल कंपनियों को भारी मुनाफा हो रहा है.

रूस से भारत ने तेल खरीद में की है रिकॉर्ड बढ़ोतरी

भारत कभी रूसी तेल का बड़ा खरीददार नहीं रहा था. रूस से भारत में तेल आने में 45 दिनों से अधिक का समय लग जाता है. तेल का ये परिवहन भारत के लिए काफी महंगा पड़ता है. इसके उलट मध्य-पूर्व के देशों से तेल खरीद कर उसके परिवहन में भारत को काफी कम समय लगता है. इराक से भारत के पश्चिमी बंदरगाह तक तेल पहुंचने में मुश्किल से छह दिन लगते हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत रूस से अपनी जरूरत का केवल 2 % ईंधन तेल खरीदता था. फरवरी में युद्ध शुरू होने के बाद रूस से भारत का तेल खरीद शून्य हो गया. लेकिन अब स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है.

एनालिटिक्स फर्म केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने मई में 840,645 बैरल प्रतिदिन रूसी कच्चे तेल का आयात किया, जो अप्रैल में 388,666 बैरल प्रतिदिन था. पिछले साल मई में ये 136,774 बैरल प्रतिदिन था. जून में रूसी तेल का आयात 10 लाख 50 हजार बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है.

केप्लर में क्रूड एनालिसिस के सह-प्रमुख विक्टर कैटोना ने द हिंदू से बातचीत में बताया, ‘शून्य से, यह 10 लाख बैरल तक पहुंच गया है. इसका मतलब ये है कि 2 प्रतिशत से, रूसी यूराल क्रूड भारत की कुल खरीद का लगभग 20 प्रतिशत हो गया.’

भारतीय कंपनियों की चांदी

युद्ध को देखते हुए पश्चिमी देशों और अमेरिका ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाए हैं जिससे रूस का ईंधन तेल वैश्विक बाजार में औंधे मुंह गिरा है. इस कारण रूस भारत आदि देशों को रियायती दरों पर तेल बेच रहा है. रूस के तेल खरीद पर भारतीय कंपनियों को 30-40 डॉलर के बीच छूट मिल रही है. इसका मतलब है कि जब ब्रेंट तेल की कीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल थीं, भारत की रिफाइनरी कंपनियां 90-95 डॉलर पर उसे खरीद रही थीं.

कुछ समय के लिए, भारत दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ता, चीन से भी आगे निकलकर रूसी तेल का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार बन गया था.

कैटोना कहते हैं, ‘भारत की रिफाइनरी कंपनियां रूस से जिस कीमत पर तेल खरीद रही हैं, वो अब तक सबसे सस्ता है. भारतीय कंपनियों को बहुत भारी मुनाफा हुआ है. ऐसे में तेल की शिपिंग पर 1-2 डॉलर अतिरिक्त लगना उनके लिए कोई मायने नहीं रखता.’

रूसी तेल की खरीद में रिलायंस और नायरा एनर्जी जैसी कंपनियां आगे

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस और नायरा एनर्जी जैसी निजी क्षेत्र की रिफाइनरी कंपनियां पिछले महीने अनुमानित 250,000 बैरल प्रतिदिन की खरीद कर रही हैं. वहीं, बड़ी सरकारी तेल कंपनियां भी रूसी तेल खरीद में पीछे नहीं हैं और उनकी तेल खरीद 450,000 बैरल बताई जा रही है. नायरा एनर्जी का 49 प्रतिशत स्वामित्व रूस की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के पास है.

क्या भारतीय कंपनियों का मुनाफा यूरोप की आंखों में चुभ रहा?

ऐसे वक्त में जब यूरोप और अमेरिका मिलकर रूसी तेल पर कड़े प्रतिबंध लगा रहे हैं, भारतीय कंपनियां भारी मात्रा में तेल खरीद रही हैं. तो क्या यूरोप और अमेरिका इसे लेकर भारतीय कंपनियों से नाराज हो सकते हैं? इस सवाल के जवाब में तेल व्यापारियों का कहना है कि उन्हें ऐसा नहीं लगता.

उनका कहना है कि यूरोपीय देश या अमेरिका ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे भारतीय कंपनियों को रूस से तेल न खरीदने के लिए बाध्य होना पड़े क्योंकि अगर भारत के माध्यम से वैश्विक बाजार में ये तेल नहीं आया तो तेल की कीमतें और बढ़ेंगी.

विश्लेषकों का कहना है कि भारत की तेल रिफाइनरी कंपनियां रूस से तेल खरीद को और अधिक बढ़ाने वाली हैं. फिलहाल के लिए युद्ध के बीच भी भारत की तेल रिफाइनरी कंपनियां बेहद अच्छी स्थिति में हैं. उनके मुनाफे के लिए एकमात्र खतरा रूस-यूक्रेन युद्ध का समाप्त होना है.

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