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हाथरस केस की क्या है सच्चाई? कोर्ट के फैसले के बाद भी अनसुलझे रह गए कुछ सवाल

हाथरस। उत्तर प्रदेश में 2020 में हुए बहुचर्चित हाथरस कांड (Hathras Case) में कोर्ट ने 4 में से 3 आरोपियों को बरी कर दिया. वहीं मुख्य आरोपी संदीप को कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या और एससी-एसटी एक्ट में दोषी करार दिया. अदालत ने केस का निपटारा करते हुए कहा ‘यह एक प्रेम प्रसंग का मामला था. यह हत्या नहीं थी, क्योंकि इरादा लड़की को मारने का नहीं था. लड़की ने मरने से पहले दिन बयानों में कुछ हद तक झूठ बोला.’ News18 से पीड़ित परिवार ने कहा कि अब वे कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करेंगे. वहीं CBI इस केस में आगे क्या करेगी, फिलहाल कुछ पता नहीं चला है.

ट्रायल कोर्ट ने अपने 167 पन्नों के फैसले में कहा, ‘एक चीज में झूठा, हर चीज में झूठा’ का इस्तेमाल भारत में नहीं किया जा रहा है. अनाज को फूस से अलग करना अदालत का कर्तव्य है.’ बता दें कि कोर्ट ने 4 में से 3 आरोपियों को बरी कर दिया और फैसला सुनाया कि बलात्कार नहीं हुआ था. एक आरोपी संदीप पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

हाथरस केस में जमकर हुई थी पॉलिटिक्स
बता दें कि 2020 में दलित लड़की की कथित हत्या का मामला सामने आया था. आधी रात को जल्दबाजी में हुए उसके दाह संस्कार ने भी कई सवाल उठाए थे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाथरस के बुलगढ़ी गांव में पीड़िता के घर तक मार्च की थी. इसके बाद ये केस एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया था. सीबीआई ने इसे बलात्कार और हत्या बताकर अपनी चार्जशीट में 4 लोगों को आरोपी बनाया था, लेकिन अदालत ने 4 में से 3 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि मृतिका के परिवार के सदस्यों की बातों में आकर बलात्कार का आरोप लगाने की संभावना है. अदालत ने कहा, ‘मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया था.’

मौत से पहले पीड़िता ने दिए थे 6 बयान
मौत से पहले पीड़िता ने 6 अलग-अलग बयान दिए थे. उनमें से दो 14 सितंबर 2020 को घटना के दिन पुलिस स्टेशन में पत्रकारों को दिया था. तीसरा बयान घटना के दिन अस्पताल में एक पत्रकार को, चौथे को 19 सितंबर को पुलिस को, 5वां को फिर से सितंबर को पुलिस और उसी दिन एक मजिस्ट्रेट के सामने उसने अपना आखिरी बयान दिया था. इसके एक हफ्ते बाद पीड़िता की मौत हो गई थी.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पीड़ित ने अपने बयान में केवल एक आरोपी (संदीप) का नाम लिया था. पहले 4  बयानों में बलात्कार का कोई आरोप नहीं लगाया था, जिसमें 19 सितंबर को पुलिस को दिया गया बयान भी शामिल है. लेकिन 22 सितंबर को अपने 5वें बयान में उसने 4 लोगों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया. फिर एक मजिस्ट्रेट को अपने आखिरी बयान में उसने फिर से 4 लोगों का नाम लिया, लेकिन इस बार बलात्कार के आरोपों का कोई जिक्र नहीं किया.

अदालत ने इन बयानों का हवाला देते हुए कहा कि न तो बलात्कार के आरोपों पर विश्वास किया जा सकता है और न ही 3 अन्य लोगों की संलिप्तता पर. अगर 4 आरोपी शामिल होते और बलात्कार होता, तो पीड़िता इसे तीन पत्रकारों को बता सकती थी. 5 दिनों के बाद भी पुलिस को उसने दोहराया कि केवल एक आरोपी शामिल था और कोई बलात्कार नहीं हुआ था. अदालत ने कहा कि लड़की की मेडिकल और अन्य सभी फोरेंसिक जांच में  बलात्कार के साबित नहीं मिले है. इसके चलते सिर्फ संदीप को मामले में सजा मिली. अब पीड़िता के परिजन कोर्ट के इस तर्क को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संदीप और मृतिका के बीच क्लोज रिलेशन थे. दोनों फोन पर काफी बातें करते थे. सीबीआई के जांच अधिकारी ने अदालत को बताया कि इस बात के सबूत सामने आए थे कि दोनों के बीच प्रेम संबंध था. संदीप ने युवती को महंगे गिफ्ट दिए थे. हालांकि दोनों परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. इतना ही नहीं संदीप ने अदालत के सामने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए तर्क दिया था कि वह उस लड़की को क्यों मारेगा जिससे वह बहुत प्यार करता था.

अदालत ने कहा कि मृतिका ने अपने सभी बयानों में हमलावर के रूप में संदीप का नाम लिया था. हालांकि अपराध का कोई गवाह नहीं था. अदालत ने यह भी कहा कि मृतिका के गर्दन के चारों ओर गला घोंटने के निशान नहीं थे, बल्कि केवल सामने की तरफ चोट लगी थी. घटना के बाद लड़की कुछ दिनों तक जीवित भी रही. इसी का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि संदीप का इरादा हत्या करना नहीं था. अब मृतिका का परिवार कोर्ट के इस फैसले को चुनौती दे रहा है और संदीप के खिलाफ मौत की सजा की मांग कर रहा है.

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