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हिन्द महासागर पर ड्रैगन की नजर! चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ की चाल जिसका ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ से भारत दे रहा जवाब

फाइल फोटो- रॉयटर्सहिंद महासागर में स्थित डिएगो गार्सिया द्वीप को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन के बीच कूटनीतिक विवाद बढ़ता ही जा रहा है. ब्रिटेन डिएगो गार्सिया द्वीप को वापस मॉरीशस को लौटाना चाहता है. ब्रिटेन के इस कदम पर अमेरिका ने चिंता व्यक्त की है.

दरअसल, वर्तमान में डिएगो गार्सिया द्वीप ब्रिटेन के अधीन है. ब्रिटेन ने 1814 में इस पर पहली बार दावा किया था लेकिन ब्रिटेन अब इसे वापस मॉरीशस को देना चाहता है. यह द्वीप अमेरिका के लिए एक बहुत ही संवेदनशील एंग्लो-अमेरिकी सैन्य अड्डे की तरह काम करता है.

अमेरिका का मानना है कि कर्ज में डूबे मॉरीशस से यह द्वीप चीन लीज पर ले सकता है और वहां नौसैनिक अड्डा बना सकता है. इससे हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का दबदबा और बढ़ जाएगा.

अगर चीन डिएगो गार्सियो द्वीप को मॉरीशस से हासिल करने में सफल हो जाता है, तो चीन अमेरिका के साथ-साथ भारत के लिए भी चुनौती बन सकता है. अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन पहले से ही ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी’ की मदद से हिंद महासागर में पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है.

डिएगो गार्सियो द्वीप पर कब्जे के बाद चीन अपनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी’ को और मजबूती से पेश करेगा. जो कूटनीतिक तौर पर भारत के लिए झटका साबित हो सकता है.  पहले जानते हैं क्या है डिएगो गार्सिया का मामला?

चागोस द्वीपों में से एक डिएगो गार्सियो पर सबसे पहले ब्रिटेन ने 1814 में दावा किया था. इस चागोस द्वीपसमूह में लगभग 60 द्वीप हैं. ब्रिटेन इसे ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र के रूप में प्रशासित करता है. 1960 और 1970 के दशक में ब्रिटेन ने इस द्वीप समूह से लगभग 2000 लोगों को बेदखल कर दिया था, ताकि अमेरिकी सेना डिएगो गार्सियो पर अपना सैन्य बेस बना सके.

ब्रिटेन ने 1966 में अमेरिका को सैन्य बेस बनाने के लिए अगले 50 वर्षों के लिए इसे लीज (पट्टे) पर दे दिया. बेदखल किए गए लोगों को मॉरीशस और सेशेल्स में बसना पड़ा. लेकिन ब्रिटेन अब इस द्वीप को ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र के संप्रभुता हस्तांतरण के तहत मॉरीशस को सौंप सकता है.

दरअसल, अंतरराष्ट्रीय अदालतों में प्रतिरोध और लगातार कानूनी हार के बाद ब्रिटेन चागोस द्वीप समूह के हस्तांतरण और मॉरीशस के साथ बातचीत शुरू करने के लिए राजी हो गया है. ब्रिटेन के इस कदम पर पिछले महीने मई में व्हाइट हाउस ने गंभीर चिंता व्यक्त की थी.

डिएगो गार्सियो द्वीप अमेरिका के लिए हिंद महासागर में कभी ना डूबने वाले एयरक्राफ्ट कैरियर (unsinkable aircraft carrier) की तरह काम करता है. डिएगो गार्सियो पर मौजूद अमेरिकी सैन्य बेस पर लगभग 1700 मिलिट्री और 1500 सिविलियन कॉन्ट्रैक्टर रहते हैं.

इसके अलावा, यूएस स्पेस ऑपरेशंस कमांड के साथ-साथ बड़े एयरक्राफ्ट को हैंडल करने में सक्षम एयरस्ट्रिप, पनडुब्बी बेड़े के लिए सपोर्ट स्ट्रक्चर और रडार सिस्टम भी मौजूद है.

अमेरिका को आशंका है कि चीन इस द्वीप को हासिल करने के लिए मॉरीशस के साथ संपर्क में है और वह भी यहां सैन्य बेस बना सकता है. अमेरिका इसलिए भी और ज्यादा चिंतित है क्योंकि मॉरीशस और चीन पिछले कुछ सालों से लगातार और करीब हो रहे हैं. आर्थिक प्रभुत्व बढ़ाने की दृष्टि से चीन की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत दोनों देश पहले ही एक मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर कर चुके हैं.

स्रोतः डेली मेल
        स्रोतः डेली मेल

क्या है हिन्द महासागर में चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी’?

‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी’ चीन की विस्तारवादी इरादों को लेकर एक भू-राजनीतिक सिद्धांत है. जिसके बारे में कहा जाता है कि चीन ने इसे भारत की घेराबंदी करने के लिए तैयार किया है. इस प्रोजेक्ट के तहत चीन भारत के चारों ओर अपनी पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है. यह प्रोजेक्ट चीन से लेकर सूडान पोर्ट तक हिंद महासागर में पड़ने वाले देशों में चीनी सैन्य और वाणिज्यिक सुविधाओं के नेटवर्क की ओर इंगित करता है.

यह नीति चीन की उसी सिल्क रूट का हिस्सा है जिसे ‘बेल्ट एंड रोड एनिसिएटिव’ के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि, चीन का कहना है कि उसने इसे व्यावसायिक उपयोग के लिए तैयार किया है. लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी का मानना है कि चीन भले ही अभी इसे व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन समय आने पर चीन इसे सैन्य बेस के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकता है.

हिन्द महासागर में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी
     हिन्द महासागर में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी (Map for representational purpose)

क्या है भारत को चारों तरफ से घेरने की चीनी रणनीति 

1. मलक्का जलडमरूमध्य (Strait of Malacca)- हिंद महासागर में होने वाले कुल व्यापार का लगभग 60 प्रतिशत व्यापार मध्य पूर्व के देशों के साथ कच्चे तेल का व्यापार शामिल है. चीन भी 80 फीसदी तेल का आयात मलक्का जलडमरूमध्य से ही करता है. मलक्का जलडमरूमध्य पर रणनीतिक रूप से भारत की पकड़ है.

1971 में जब चीन, पाकिस्तान की मदद करने पर विचार कर रहा था तब भारत ने चीन को चेतावनी दी थी कि अगर वह पाकिस्तान की मदद करता है तो वह चीन के लिए मलक्का जलडमरूमध्य मार्ग को बंद कर देगा. इसलिए चीन, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने पर जोर दे रहा है ताकि मलक्का जलडमरूमध्य में भारत का प्रभुत्व कम किया जाए. ऐसा कहा जाता है कि चीन ने इसी मकसद से मलक्का जलडमरूमध्य के पास कोकोस कीलिंग द्वीप पर एक नौसेनिक अड्डा बनाया है.

2. म्यांमार- पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों के साथ थल सीमा साझा करने वाला देश म्यांमार के Kyaukpyu बंदरगाह में भी चीन की मौजूदगी है. बंगाल की खाड़ी में मौजूद Kyaukpyu बंदरगाह का उपयोग चीन फिलहाल कॉमर्शियल समुद्री सुविधा के लिए करता है. लेकिन संघर्ष के समय चीन इसे सैन्य बेस के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है. चीन ने म्यांमार में काफी निवेश किया है. Kyaukyu और कुनमिंग को जोड़ने वाली 2400 किमी गैस पाइपलाइन इसका एक उदाहरण है.

इसके अलावा भारतीय सीमा के निकट कोको द्वीप समूह में भी चीन पहुंच चुका है. कोको द्वीप अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के उत्तर में स्थित है, जो रणनीतिक रूप से भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. कहा जाता है कि यहां भी चीन का सैन्य बेस मौजूद है.

3. बांग्लादेश– बांग्लादेश के चटगांव में चीन ने बंदरगाह डेवलप किया है. बंगाल की खाड़ी में स्थित इस बंदरगाह का उपयोग चीन एक स्टेशन के तौर पर करता है. चीन ने बांग्लादेश में भी भारी-भरकम निवेश किया है. म्यांमार और बांग्लादेश दोनों वन बेल्ट वन रोड की उप परियोजना बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (BCIM) के लिए महत्वपूर्ण बिंदु है.

4. श्रीलंका–  भारत और श्रीलंका के बीच सदियों से मजबूत संबंध रहे हैं. लेकिन चीन ने श्रीलंका में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है. चीन की एक कंपनी ने श्रीलंका के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में हंबनटोटा बंदरगाह विकसित किया है. साथ ही इस बंदरगाह का नियंत्रण भी चीनी कंपनी के हाथों में ही है. श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने चीन को इस बंदरगाह को बनाने की अनुमति दी थी. यही नहीं, राजपक्षे सरकार ने चीन को यहां सैन्य बेस बनाने की भी अनुमति दे दी थी. लेकिन 2015 में मैत्रीपाल सिरिसेना की सरकार ने इस अनुमति को रद्द कर दिया.

5. पाकिस्तान– भारत को घेरने के लिए चीन हमेशा से ही पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है. सीपीईसी के उद्देश्य से चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट का निर्माण किया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संघर्ष के समय चीन पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है.

चीन ने भारत को घेरने के लिए खुद को यहीं तक सीमित नहीं रखा है. स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के तहत चीन अफ्रीकी तट और मिडिल ईस्ट देशों में भी अपनी मौजूदगी सुनिश्चित कर रहा है. हिंद महासागर के अफ्रीकी तट पर मौजूद देश सूडान और केन्या में भी चीन बुनियादी ढांचों पर भारी खर्च कर रहा है. भारत चीन के भारी निवेश वाले पूर्वी अफ्रीकी तट को बेहद अहम मानता है.

चीन के जवाब में क्या है भारत की ‘नेकलेस ऑफ डायमंड’ स्ट्रेटजी?

चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का मुकाबला करने के लिए भारत बहु-आयामी रणनीति का उपयोग कर रहा है. इसी रणनीति के तहत भारत नेकलेस ऑफ डायमंड स्ट्रेटजी पर काम कर रहा है. इस रणनीति का उद्देश्य जवाबी तौर पर चीन को घेरना है.

इस रणनीति के तहत भारत अपने नौसैनिक ठिकानों का विस्तार कर रहा है. युद्धपोतों और पनडुब्बियों को ट्रैक करने के लिए व्यापक तटीय निगरानी रडार प्रणाली (CSR) भी इसी रणनीति का हिस्सा है. इस प्रणाली की मदद से चीनी पनडुब्बियों को ट्रैक करने के साथ-साथ पड़ोसी देशों में बनाए गए चीनी सैन्य बेस पर भी नजर रखा जा सकता है. अन्य देशों के साथ रक्षा संबंधों को भारत और गहरा कर रहा है. दक्षिण एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार कर रहा है. हिंद महासागर क्षेत्र में मौजूद द्वीपीय देश, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ नियमित सैन्य अभ्यास कर रहा है.

भारत की नेकलेस ऑफ डायमंड स्ट्रेटजी
                                    भारत की नेकलेस ऑफ डायमंड स्ट्रेटजी

चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का मुकाबला करने के लिए भारत की ओर से उठाए गए महत्वपूर्ण कदम निम्न हैंः–

1. एक्ट ईस्ट पॉलिसी – चीन से मुकाबला करने के लिए भारत ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी लॉन्च किया. इस पॉलिसी का इस्तेमाल वियतनाम, जापान, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड के साथ महत्वपूर्ण सैन्य और रणनीतिक समझौते करने के लिए किया गया है. इस पॉलिसी का मकसद दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की मदद से भारतीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत करना है.

2.बंदरगाहों का निर्माण – भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है. यह बंदरगाह भारत के लिए मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिए एक नया भूमि-समुद्री मार्ग खोलेगा. यह पाकिस्तान में चीनी ग्वादर बंदरगाह और होर्मुज जलडमरूमध्य के करीब स्थित है, जो रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. यह बंदरगाह भारत के लिए इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि इसकी मदद से भारत ओमान की खाड़ी तक पहुंच सकता है, जो ऑयल सप्लाई का बहुत ही महत्वपूर्ण रास्ता है.

3.सैन्य और नौसेना संबंध: – भारत अपनी नौसेना को अपग्रेड और प्रशिक्षित करने के लिए म्यांमार के साथ एक रणनीतिक नौसैन्य साझेदारी मजबूत की है. इसकी मदद से भारत म्यांमार में अपनी मौजूदगी को सुनिश्चित करता है. इसके अलावा भारत ने जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ भी सैन्य सहयोग के लिए कई महत्वपूर्ण समझौते किए है. चीन का मुकाबला करने के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान समय-समय पर हिंद महासागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं. इसे क्वाड के नाम से जाना जाता है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

डिफेंस एक्सपर्ट रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जेएस सोढ़ी ने aajtak.in से बात करते हुए कहा कि जहां तक स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की बात है, चीन ने भारत को समुद्री रास्ते से घेरने के लिए जो प्लानिंग दशकों पहले की थी, वो प्लानिंग लगभग कंप्लीट कर ली है. क्योंकि चीन पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका तक अपनी पहुंच सुनिश्चित कर चुका है.

चीन की दशकों से यह मंशा रही है कि पूरा हिंद प्रशांत महासागर को अपने नियंत्रण में रखें. क्योंकि यह इलाका चीन और दुनिया के लिए सुरक्षा और व्यापार की दृष्टि बहुत ही महत्वपूर्ण है. अगर मॉरीशस में भी चीन अपना नौसैनिक अड्डा बनाने में सफल हो जाता है तो चीन की ताकत बहुत बढ़ जाएगी. और इसको चुनौती देने के लिए बहुत जरूरी है कि भारतीय नौसेना का और तेजी से आधुनिकीकरण किया जाए. हमें अपनी एयरक्राफ्ट क्षमता को और बढ़ाना चाहिए. क्योंकि 2035 तक का समय भारत के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण है.

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