लखनऊ। दारा सिंह चौहान द्वारा विधानसभा सीट छोड़ने से अब वहां उपचुनाव होना भी तय है। यह चुनाव तो छोटा सा होगा, लेकिन आम चुनाव से पहले इसका नतीजा खासा अहम होगा। यह चुनावी जंग घोसी विधानसभा उपचुनाव के लिए होनी है। इसमें एक ओर अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ की धार पहली परीक्षा होगी तो साथ ही सपा की सीट पर भाजपा की ताकत या दारा सिंह चौहान के असर का पता चलेगा। यह चुनाव एक तरह से भाजपा व सपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा की जंग बनेगा। सपा के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती होगी। हालांकि एक सीट पर हार जीत पर सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ना। लेकिन इस उपचुनाव के नतीजे से संदेश गहरा होगा।
अखिलेश यादव ने कुछ समय पहले नया नारा या मुद्दा पीडीए के रूप में उछाला है यानी पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक। जातीय जनगणना के मुद्दे से पीडीए को जोड़ते हुए पिछड़ो को लामबंद करने की अपनी मुहिम तेज कर रहे हैं। अब इसका पहला लिटमस टेस्ट तो इसी उपचुनाव में होगा। इससे कम से कम संकेत तो मिलेगा कि सपा की इस मुहिम का कितना असर है। इसमें कोई शक नहीं, दारा सिंह चौहान ने इस सीट से भाजपा में रहते हुए 2017 में व सपा में रहते हुए 2022 में विधानसभा चुनाव जीता। अब वह दुबारा भाजपा के हमसफर बनने की राह पर हैं, ऐसे में उनकी छोड़ी सीट पर होने वाले उपचुनाव के नतीजे में उनके जनाधार का भी पता चलेगा। वैसे गाजीपुर लोकसभा उपचुनाव होना है। पर यहां की जंग ज्यादा रोचक होगी जिसमें भाजपा व सपा दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी।
अब तेज होगी दलबदल की मुहिम
अब जैसे जैसे लोकसभा चुनाव करीब आएगा दलबदल की मुहिम तेज होगी। अभी भाजपा के सहयोगी दलों ने दावा किया था कि सपा के 100 विधायक पार्टी के संपर्क में हैं और सपा छोड़ना चाहते हैं। जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था जो ऐसा कह रहे हैं, जाने वालों को ले जाएं। आने वाले दिनों में नेताओं को पार्टी छोड़ दूसरे दल में जाने का सिलसिला और तेज होगा।
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