राजस्थान में विधानसभा चुनाव में बमुश्किल तीन महीने का ही वक्त बचा है, लेकिन लगता है भाजपा अभी अपने ही पेच कसने में जुटी है। खासतौर पर वसुंधरा राजे को सीएम फेस बनाने को लेकर पार्टी पसोपेश की स्थिति में है। भले ही उसने इस पर कुछ साफतौर पर नहीं कहा है, लेकिन संकेतों में यह जरूर जाहिर किया है कि वसुंधरा राजस्थान की धरा पर पहले की तरह ताकतवर नहीं रहेंगी। यही वजह है कि राजस्थान के लिए घोषित दो कमेटियों में से किसी में भी उन्हें जगह नहीं दी गई है। चुनाव घोषणा पत्र समिति का मुखिया पार्टी ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को बनाया है। वहीं इलेक्शन मैनेजमेंट कमेटी के मुखिया पूर्व सांसद नारायण लाल पंचारिया बनाए गए हैं।
मीडिया से बात करते हुए भाजपा के प्रभारी अरुण सिंह और राज्य अध्यक्ष सीपी जोशी ने समितियों का ऐलान किया। इन दोनों कमेटियों की घोषणा का लंबे समय से भाजपा में इंतजार हो रहा था। कांग्रेस पहले ही चुनाव से जुड़ी समितियों के ऐलान कर चुकी है। लेकिन देर से घोषित समितियों में भी वसुंधरा राजे को मौका न मिलना चर्चाओं को जन्म दे रहा है। पिछले दिनों जेपी नड्डा ने अपनी नई टीम की घोषणा की थी। इसमें भी वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए रखा था। इसी से कयास लग रहे थे कि शायद उन्हें राजस्थान से हटाकर दिल्ली की सियासत में ही भाजपा बनाए रखना चाहती है। अब समितियों के ऐलान से यह चर्चा और जोर पकड़ रही है।
राजस्थान के चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी का कहना है कि वसुधंरा राजे सम्मानित नेता हैं। उन्हें चुनाव प्रचार समिति में जगह दी जाएगी। इस समिति का ऐलान जल्दी ही होगा। इस तरह उन्होंने कयासों को खत्म करने की कोशिश की है, लेकिन संगठन में बनाए रखने और दो समितियों से बाहर रखे जाने के बाद चर्चाएं थम नहीं रही हैं। भाजपा ने फिलहाल दो समितियों के जरिए सामाजिक समीकरण साधने का प्रयास किया है। भाजपा के दलित चेहरे अर्जुन राम मेघवाल को संकल्प पत्र समिति यानी मेनिफेस्टो कमेटी का मुखिया बनाया गया है, जिसके कुल 25 मेंबर हैं।
समितियों से भाजपा ने साध लिए सामाजिक समीकरण
मेघवाल के अलावा समिति में 7 संयोजक भी शामिल हैं। इनमें राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, सांसद किरोड़ी लाल मीणा, राष्ट्रीय सचिव अल्का सिंह गुर्जर, पूर्व विधायक राव राजेंद्र सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महारिया और भाजपा पार्षद राखी राठौर शामिल हैं। गौरतलब है कि वसुंधरा राजे को राजस्थान में नेतृत्व दिया जाए या नहीं, इसे लेकर भाजपा पसोपेश में रही है। हालांकि उनके मुकाबले कोई दूसरा कद्दावर नेता वह तैयार भी नहीं कर सकी है। गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम की अकसर चर्चाएं होती हैं, लेकिन विधायकों के बीच वसुंधरा का अब भी अच्छा खासा प्रभाव है। ऐसे में देखना होगा कि टिकट बंटवारे में किसके करीबियों को ज्यादा मौका मिलता है।
साहसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें,
आई वॉच इंडिया के संचालन में सहयोग करें। देश के बड़े मीडिया नेटवर्क को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर इन्हें ख़ूब फ़ंडिग मिलती है। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें।