नई दिल्ली/लखनऊ। देश में INDIA और एनडीए गठबंधन के शक्ति प्रदर्शन के बीच 6 राज्यों की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के जो नतीजे आए हैं, वह सभी के लिए कहीं खुशी तो कहीं गम वाले हैं। भाजपा ने कुल 7 सीटों में से 3 पर जीत हासिल कर ली है, लेकिन यूपी के घोसी से वह सपा के मुकाबले बड़े अंतर से पीछे चल रही है। अब तक के रुझानों में घोसी से सपा के सुधाकर सिंह 25 हजार वोटों से आगे चल रहे हैं। वहीं भाजपा में शामिल होकर फिर उतरे दारा सिंह चौहान दूसरे नंबर पर हैं। इसके अलावा टीएमसी, कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी एक-एक सीट मिल गई है।
डुमरी सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा की बेबी देवी 15 हजार वोटों से जीत गई हैं। ईडी के छापों और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सीएम हेमंत सोरेन के लिए यह बड़ी राहत है। बंगाल की धुपगुड़ी सीट पर जरूर मुकाबला कड़ा दिखा है। यहां टीएमसी के उम्मीदवार निर्मल चंद्र रॉय 4000 के करीब वोटों से ही जीत पाए। भाजपा की उम्मीदवार तपसी राय भी 92 हजार से ज्यादा वोट पाकर दूसरे नंबर पर रही हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी राहत त्रिपुरा के नतीजे रहे हैं, जहां धनपुर और बोक्सानगर सीटों पर वह जीत गई है। इस तरह राज्य में उसने अपनी सरकार का इकबाल कायम रखने में सफलता पाई है। बोक्सानगर से भाजपा ने तफज्जल हुसैन और धनपुर से बिंदु देबनाथ को मुकाबले में उतारा था।
देवभूमि उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर भी भाजपा को जीत मिल गई है। यहां भाजपा की पार्वती दास ने कांग्रेस उम्मीदवार को बसंत कुमार को करीब ढाई हजार मतों से हरा दिया। कांग्रेस को एकमात्र केरल की पुथुपल्ली सीट से अच्छी खबर मिली है। यहां उसके कैंडिडेट चांडी ओमान ने लेफ्ट के जैक थॉमस को 37 हजार वोटों के बड़े अंतर से मात दे दी। माना जा रहा है कि कांग्रेस उम्मीदवार को अपने पिता और सीनियर नेता ओमान चांडी के निधन के चलते सहानुभूति का फायदा भी मिला है।
घोसी सीट पर सपा का परचम बढ़ाएगा अखिलेश का हौसला
उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति का केंद्र बनी घोसी सीट पर अखिलेश यादव को सफलता मिलती दिख रही है। सपा कैंडिडेट सुधाकर सिंह ने भाजपा के दारा सिंह चौहान के मुकाबले 19वें राउंड तक बढ़त बना रखी है। फिलहाल जितना अंतर है, उसे देखते हुए सपा की जीत तय मानी जा रही है। दरअसल 2022 विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ों की उपेक्षा के नाम पर दारा सिंह चौहान सपा में चले गए थे। लेकिन पिछले दिनों फिर से भाजपा में ही लौट आए। ऐसे में घोसी पिछड़ा वर्ग की राजनीति का केंद्र बन गई थी। इस जीत से सपा के हौसले जरूर कुछ बढ़ सकते हैं, जो लगातार 4 चुनावों की हार के बाद से निराश थी।
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