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राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा: यूपी में एंट्री लेते ही INDIA गुट को एक बड़े झटके की आशंका

भारत जोड़ो न्याय यात्रा यूपी में पहुंचते ही इंडिया ब्लॉक के एक और नेता के एनडीए में जाने की चर्चाराहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा जिस प्रदेश में जाती है वहीं से इंडिया ब्लॉक को एक झटका मिल रहा है. पश्चिम बंगाल में पहुंचते ही टीएमसी ने झटका दिया, बिहार में पहुंचते ही बिहार के मुख्यमंत्री और इंडिया गठबंधन के ऑर्किटेक्ट नीतीश कुमार खुद बाय-बाय बोल दिए. झारखंड में एंट्री भी खराब रही, हेमंत सोरेन को रिजाइन करना पड़ा, फिलहाल अब वो जेल में हैं.राजनीतिक विश्वेलषकों का अनुमान है कि यूपी में भी इंडिया गठबंधन की हालत कुछ ठीक नहीं हैं.आशंका है कि राहुल गांधी के यूपी पहुंचते-पहुंचते यहां भी खेला हो जाएगा. आरएलडी नेताओं में गठबंधन को लेकर जो असंतोष दिख रहा है उससे तो यही लगता है. आरएलडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  शाहिद सिद्दकी तो बीजेपी नेताओं को कांग्रेस नेताओं के मुकाबले ज्यादा प्रोफेशनल बताते हुए नहीं थक रहे हैं. तो इसका मतलब क्या कांग्रेस नेता ही इंडिया गठबंधन के लिए असली खलनायक बन रहे हैं. शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार के बाद एनडीए में जाने वालों की कतार लंबी होती जा रही है. तो क्या मान लिया जाए कि जयंत और उद्धव ठाकरे भी जल्द ही एनडीए के लिए खुशखबरी लेकर आएंगे?

सीटों के बंटवारे पर आरएलडी में असंतोष

इंडिया गठबंधन के सबसे खास किरदार कांग्रेस की ओर से होती देर को देखते हुए यूपी के पूर्व चीफ मिनिस्टर और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने कुछ दिनों पहले ही अपनी ओर से सीट शेयरिंग का ऐलान कर दिया.  19 जनवरी को हुए सीटों के बंटवारे में आरएलडी को सात सीटें मिलीं थीं. इस बीच आरएलडी नेताओं ने कहा कि अगर कांग्रेस और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के बीच बातचीत विपल हो जाती है तो भी आरएलडी सपा के साथ रहेगी. पर अब चीजें बदलती हुईं दिख रही हैं. सोशल मीडिया पर एक बार फिर जयंत के एनडीए में जाने की अटकलें लगाईं जा रही हैं. इसका मुख्य कारण सीटों के नाम को लेकर होने वाला मतभेद बताया जा रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस ने रालोद के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से लिखा है कि जयंत जी और अखिलेश जी ने अभी सीटों के नाम की घोषणा नहीं की है इसलिए रालोद को कौन सी सीटें मिलेंगी इस पर संशय बना हुआ है. इस कारण पार्टी के कुछ नेताओं में चिंता हो गई है. जो लोग रालोद के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं उनमें चिंता होना स्वभाविक है. पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं कि कुछ सीटों पर सहमति बन गई है जैसे कि हमें बागपत और मथुरा मिलेगा. लेकिन मेरठ, मुजफ्फरनगर ,नगीना, आगरा हाथरस जैसी सीटों के लिए कोई निश्चितता नहीं है. इस बीच आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिवन अनुपम मिश्र बचाव करते हुए दिखते हैं. मिश्र कहते हैं कि पार्टी कैडर सभी सीटों पर काम कर रहा है और इस तरह के मुद्दे असर नहीं डालते हैं. बचाव में वो ये भी कहते हैं कि चाहे हमें कोई भी सीट मिले, हम जमीन पर तैयारी कर रहे हैं यही मायने रखता है. पर सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार गर्म है. जिस तरह की अफवाहें नीतीश कुमार के एनडीए में आने के पहले चलती रहती थीं.

शाहिद सिद्धीकी का ट्वीट

आरएलडी के वरिष्ठ नेता और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी ने अभी 28 जनवरी को अपने ट्वीट में कांग्रेस नेताओं के जिस एरोगेंसी का वर्णन किया है उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.  सिद्दीकी लिखते हैं कि कांग्रेस का सबसे बड़ा दुश्मन उसके नेतृत्व का अहंकार है. गांधी परिवार के बारे में भूल जाइए, इसके दूसरे, तीसरे पायदान के नेता इतना अहंकारी व्यवहार करते हैं कि उनसे संपर्क करना मुश्किल हो जाता है. दूसरी ओर, भाजपा में कोई अहंकार नहीं है और वह चुनावी लाभ के लिए अपने सबसे बड़े दुश्मनों से समझौता करने में देर नहीं करती.

सिद्दीकी के इस ट्वीट को राजनीतिक हल्के में बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. कांग्रेस नेताओं के अहंकार पर आरोप इसके पहले भी लगता रहा है. इसके चलते कांग्रेस के कई खास नेताओं ने एनडीए की राह पकड़ ली. यहां तो मामला दूसरी पार्टियों का है. कांग्रेस नेताओं ने अखिलेश यादव को भी बहुत हल्के में लिया. शाहिद सिद्दीकी के ट्वीट का मतलब साफ है कि कांग्रेस के साथ जाने में पार्टी नेताओं को अपना भला नहीं दिख रहा है. पार्टी में इंडिया ब्लॉक को लेकर जरूर कुछ अच्छा नहीं चल रहा होगा तभी शाहिद सिद्दीकी जैसे नेता ने इतनी तल्ख टिप्पणी की होगी.

चावल खाना हो तो खीर खाओ

पिछले साल जयंत चौधरी का एक ट्वीट “चावल खाना हो तो खीर खाओ” को लेकर खूब चर्चा हुई थी.इस ट्वीट का सीधा अर्थ है कि जब गठबंधन ही करना है तो ऐसा करो जिसमें कुछ फायदा भी हो. दरअसल जयंत चौधरी अपने पिता की तरह ही प्रेक्टिल परसन हैं. वो जानते हैं कि बहुत समय तक विपक्ष में रहने से पार्टी के अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा. कोई भी पार्टी चलाने के लिए कार्यकर्ताओँ में उत्साह बनाए रखना होता है. इसके अलावा मनी और मसल्स की भी जरूरत होती है, जो सत्ता से ही आती है.सपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में अगर अच्छी सीटें मिल जाएं तो भी क्या मतलब जो सत्ता में नहीं आया.  2022 के चुनाव में आंकड़ों को देखें तो रालोद ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था पर सत्ता में नहीं आए तो उसका कोई मतलब नहीं रह गया.यह व्यवहारिक सोच उन्हें शायद राम मंदिर के उद्घाटन के बाद आई है. यूपी और देश के अन्य हिस्सों में जिस तरह का माहौल बना हुआ है उसी का कारण है कि इंडिया गठबंधन के ऑर्केटेक्ट नीतीश कुमार खुद एनडीए में शामिल हो चुके हैं.  जिस तरह उद्धव ठाकरे का मन मचल रहा है एनडीए में आने का उसका भी यही कारण है. उद्धव ठाकरे के पास अब न सत्ता बची और न ही पार्टी. भविष्य भी ऐसा नहीं दिख रहा है
एनडीए के लिए भी जरूरी हैं जयंत 

जाट बहुल सीटों पर बीजेपी को आरएलडी की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता. चुनावी आंकड़ों को देखेंगे तो जाट पूरे उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का करीब 1.5 से 2 फीसदी हैं पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में उनकी जनसंख्या 18 फीसदी तक है.यही कारण रहा है कि 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में रालोद ने आठ सीटों पर जीत दर्ज किया था.पश्चिमी यूपी की जाट बहुल सीटों पर भाजपा को भारी नुकसान हुआ था. निकाय चुनाव के आंकड़े भी जाट बहुल इलाके में भाजपा के फेवर में नहीं आए थे. किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के मुद्दे पर जाट नाराजगी को खत्म करने के लिए बीजेपी कुछ जरूर करेगी ऐसा समझा जा रहा है. हो सकता है कि प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी से गठबंधन कर भाजपा यूपी के साथ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के जाट वोटरों को रिझाने के लिए जयंत को एनडीए में ले आए. आज की तारीख में भाजपा के पास जाटों का कोई ऐसा नेता नहीं जिसकी स्वीकारिता पूरे देश में हो.

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