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राज्यसभा चुनाव में बिखरी तो सपा लेकिन कांग्रेस हो गई चारों खाने चित्त, बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग ने बढ़ाई कांग्रेस की मुसीबत

सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटो)राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के सात विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की और एक विधायक गैरहाजिर रहा. इसका नतीजा यह हुआ कि सपा के तीसरे उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा. सपा के चीफ व्हिप मनोज पांडेय समेत सात विधायकों के पार्टी लाइन से हटकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार को वोट करने को कांग्रेस के लिए भी बुरे सपने की तरह देखा जा रहा है. राज्यसभा चुनाव में झटके सपा को लगे लेकिन अगर किसी एक पार्टी को शॉक लगा है तो वह है कांग्रेस.

अब सवाल यह भी उठ सकता है कि कांग्रेस पार्टी तो इस चुनाव में ‘न तीन में थी, ना तेरह में’ फिर सपा विधायकों की क्रॉस वोटिंग उसके लिए झटका कैसे है? तर्क यह भी दिए जा सकते हैं कि कांग्रेस अपने दो विधायकों का छोटा सा कुनबा एकजुट रखने में सफल रही. असल में सपा के जिन सात विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, उनमें से एक-एक विधायक रायबरेली और अमेठी से हैं. जिन महाराजी देवी ने वोटिंग से किनारा कर लिया, वह भी अमेठी की ही हैं.

सपा उम्मीदवार की बजाय बीजेपी कैंडिडेट के लिए क्रॉस वोटिंग करने वाले राकेश प्रताप सिंह अमेठी जिले की गौरीगंज सीट से विधायक हैं तो वहीं पार्टी के चीफ व्हिप रहे मनोज पांडेय रायबरेली जिले की ऊंचाहार सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. राकेश सिंह की गिनती जहां सपा के मजबूत नेताओं में होती है तो वहीं मनोज पांडेय अखिलेश के करीबियों में गिने जाते थे. सपा का बड़ा ब्राह्मण चेहरा रहे मनोज पांडेय पार्टी के चीफ व्हिप भी थे और वोटिंग से से ठीक पहले उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया. कुम्हार बिरादरी से आने वाली अमेठी की महाराजी देवी, अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं. ओबीसी वर्ग के मतदाताओं के बीच गायत्री की पकड़ मजबूत मानी जाती है.

अब इन सबका सपा की लाइन से अलग जाकर क्रॉस वोटिंग करना कांग्रेस को इसलिए टेंशन में डालने वाला है क्योंकि तीनों का ही नाता गांधी परिवार का गढ़ रहे रायबरेली और अमेठी से है. सपा के साथ हुई सीट शेयरिंग में यह सीटें कांग्रेस के हिस्से आई हैं. ऐसे में अमेठी और रायबरेली में सपा के झंडाबरदार रहे मजबूत कंधे लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी छोड़ गए तो कांग्रेस की राह मुश्किल हो सकती है. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि एक-एक कर इन इलाकों के मजबूत नेता सपा छोड़ गए तो क्या कांग्रेस गांधी परिवार की ये दो सीटें जीत पाएगी? वह भी तब, जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को पिछले चुनाव में अमेठी सीट से शिकस्त का सामना करना पड़ा था.

दरअसल रायबरेली में कांग्रेस ने ठाकुर और ब्राह्मण, दोनों बिरादरी के मतदाताओं को अपने साथ जोड़ रखा था. रायबरेली में अदिति सिंह और दिनेश प्रताप सिंह जैसे ठाकुर नेता कांग्रेस को झटका देकर पहले ही बीजेपी के साथ जा चुके हैं. बीजेपी ने 2017 के चुनाव से ही यहां अपनी जमीन तैयार करने का अभियान शुरू कर दिया था.

बीजेपी पहले रायबरेली के कई बड़े ठाकुर चेहरों को अपने साथ लाने में सफल रही, अब मनोज पांडेय जैसा दमदार ब्राह्मण चेहरा भी पार्टी के साथ खड़ा हो गया है. मनोज पांडेय का बीजेपी के साथ खड़ा होना कांग्रेस के लिए कितना बड़ा झटका है, इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि ब्राह्मणों को कांग्रेस और सोनिया गांधी के पक्ष में लामबंद रखने में भी उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है. शायद यही वजह है कि मनोज पांडेय ने जब मकान का निर्माण करा गृह प्रवेश किया, तब उस आयोजन में शामिल होने के लिए सोनिया गांधी भी ऊंचाहार पहुंची थीं.

राज्यसभा चुनाव के बहाने बीजेपी ने रायबरेली और अमेठी में जिस तरह से सोशल इंजीनियरिंग की है, वह कांग्रेस की मुसीबत बढ़ाती नजर आ रही है. सिर्फ ठाकुर और ब्राह्मण ही नहीं, मौर्य और कुम्हार बिरादरी को भी अपने पाले में लाने की सत्ताधारी दल की कवायद नजर आ रही है. ऊंचाहार विधायक मनोज पांडेय बीजेपी के साथ खड़े हो गए हैं तो वहीं ऊंचाहार से ही पिछली बार चुनाव लड़ने वाले अमरपाल मौर्य को पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया है. गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी ने राज्यसभा चुनाव में वोटिंग से दूरी बना ली लेकिन बीजेपी के साथ उनकी नजदीकी के भी चर्चे हैं. इन सभी की बीजेपी से नजदीकी से रायबरेली और अमेठी में पहले ही कड़ी चुनौती से जूझ रही कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ती नजर आ रही हैं.

रायबरेली की बात करें तो पहले ही साफ हो गया है कि सोनिया गांधी इस सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगी. सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा जा चुकी हैं. वहीं, राहुल गांधी अमेठी से पिछला चुनाव हार चुके हैं. राजा संजय सिंह सरीखे नेता पहले ही बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. ऐसे में गांधी परिवार के लिए इन सीटों पर अब कोई उतना मजबूत कंधा दिखाई नहीं दे रहा. कांग्रेस को सपा के साथ गठबंधन से ही उम्मीद थी. सपा के रसूखदार विधायकों की बैसाखी के सहारे अपने गढ़ में खड़े होने की कोशिश में थी जो पहले भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी की चुनावी नैया पार लगाने में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं.

रायबरेली-अमेठी में कैसे मुश्किल होगी कांग्रेस की राह

सपा रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर तब भी कांग्रेस का समर्थन करती रही है जब दोनों दल पूरे प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ते थे. इन दोनों सीटों पर सपा बिना शर्त कांग्रेस को समर्थन देती रही है. कांग्रेस के बाद अब सपा के मजबूत नेता भी अब एक-एक करके बीजेपी के साथ खड़े होते जा रहे हैं, कांग्रेस पार्टी के सामने अपना गढ़ रहीं ये दोनों सीटें जीतने की चुनौती होगी. गौरतलब है कि कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली को गांधी परिवार की सीट बताते हुए यह ऐलान किया है कि इसबार भी पार्टी इन सीटों से परिवार के ही किसी सदस्य को चुनाव मैदान में उतारेगी.

हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं है कि क्या राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में से कौन किस सीट से चुनाव लड़ेगा. अगर गांधी परिवार का कोई सदस्य यहां से चुनाव लड़ने आता है तो कांग्रेस या सपा का वह कौन नेता होगा जो यहां गांधी परिवार के लिए दमदारी से खड़ा होगा? यह सवाल इसलिए भी गहरा हो गया है क्योंकि बीजेपी, कांग्रेस-सपा के लगभग सभी मजबूत कंधों को अपने पाले में ला चुकी है. ऐसे में यह झटके सपा के लिए जितने बड़े हैं, उससे कहीं अधिक इन झटकों से गांधी परिवार के सियासी रसूख पर बन आई है. राज्यसभा चुनाव के लिए यूपी में बीजेपी की व्यूह रचना को रायबरेली में कांग्रेस और गांधी परिवार की जमीन खिसकाने, अमेठी में अपनी जमीन मजबूत करने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.

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