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राम गोपाल ने भोंका आलोक रंजन की पीठ में छुरा !

लखनऊ। जया बच्चन को 41 तो रामजी लाल सुमन को अलॉट किए 40 एमएलए आलोक रंजन को अलॉट किए सिर्फ़ 19 एमएलए जया बच्चन कहती हैं मै कायस्थ नहीं ब्राह्मण हूँ कायस्थों को मिला सपा से धोखा राम गोपाल को खटक गया था आलोक रंजन का नामांकन राम गोपाल नहीं चाहते अखिलेश का करीबी राज्य सभा में पहुँचे समाजवादी पार्टी के तीसरे कैंडिडेट आलोक रंजन के राज्यसभा में न पहुँचने के पीछे सबसे बड़े विलेन रहे राम गोपाल यादव। राम गोपाल यादव को आलोक रंजन का नामांकन ही खटक गया था, लिहाज़ा कहने वाले तो यहाँ तक कह रहे कि आख़िरी दिन बीजेपी के संजय सेठ के नामांकन में भी राम गोपाल यादव का ही हाथ है। कहने वाले तो यहाँ तक कह रहे कि पार्टी की टूट फूट और विधायकों की क्रास वोटिंग की भनक राम गोपाल और अखिलेश दोनों को थी पर दोनों के कानों पर जूं तक न रेंगी। वजह दोनों के मनपसंद कैंडिडेट जया बच्चन और रामजी लाल सुमन तो निकल ही रहे थे, अब ज़रा वोटों के अलॉटमेंट पर गौर करें तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

दरअसल अखिलेश और राम गोपाल किसी कायस्थ को पहले ही पसंद नहीं करते और न ही सपा के एजेंडे में कहीं दूर तक ऐसा नज़र आता है। मुलायम सिंह यादव के समय से ही कभी किसी कायस्थ को न तो राज्य सभा और न ही विधान परिषद में भेजा गया। पिछले कई बार से जया बच्चन ही सपा के कोटे से राज्य सभा जाती रही हैं और वो खुलेआम ये बात कहती हैं कि वो कायस्थ नहीं ब्राह्मण हैं। अखिलेश सरकार में कुछ दिनों के लिए दिल्ली के कायस्थ शंकर सुहेल को राज्य मंत्री के बराबर वाले राज्य संस्कृत संस्थान का चेयरमैन बनाया गया और फिर योगी सरकार में वाराणसी क्षेत्र की स्नातक सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधान परिषद पहुँचे आशुतोष सिन्हा, लेकिन ये सपा से ज़्यादा आशुतोष की खुद की जीत थी उन्होंने सालों से लगकर अपने को वोट देने वाले स्नातकों के जमकर मतदाता बनवाए थे। हाँ 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बिहारी बाबू शॉटगन की पत्नी पूनम सिन्हा को कायस्थ कैंडिडेट के तौर पर लखनऊ से लड़ाया था वो भी राजनाथ सिंह के खिलाफ नतीजा वो हार गईं।

आलोक रंजन के अलावा के के श्रीवास्तव दीपक रंजन नवीन कुमार सक्सेना दीपक श्रीवास्तव जैसे कायस्थ पार्टी के लिए समर्पित होकर सालों से जान दे रहे पर हासिल कुछ न कर सके। यादवों मुसलमानों की पार्टी मानी जाने वाली सपा में सरकार बनने पर ब्राह्मण और ठाकुर भी मंत्री संत्री बन जाते हैं थोड़ा अखिलेश के करीब पहुँच सके तो मनोज पांडेय की तरह मुख्य सचेतक तक बन जाते हैं पर एक बार नहीं कई बार का इतिहास रहा है कि जब पार्टी को इनकी ज़रूरत हुई इस बिरादरी के नेताओं ने सपा को धोखा ही दिया।

अखिलेश यादव को राम गोपाल और शिवपाल के साथ ये मंथन करना चाहिए कि वाक़ई अगर उन्हें कायस्थ वोटों की दरकार है तो पार्टी के संगठन से लेकर आने वाले चुनावों में कायस्थ बहुल सीटों पर कायस्थ नेताओं को चुनाव लड़ाने की पहल करें।
कायस्थों को भी ये देखना और समझना पड़ेगा कि कौन सी पार्टी उनकी क़ौम का सम्मान करते हुए उन्हें राजनीतिक सहभागिता दे रही है। कायस्थ लगभग 90% बीजेपी को वोट करता आ रहा है पर बीजेपी भी राज्य सभा या विधान परिषद तक में किसी कायस्थ को भेजने से गुरेज़ करती है और ऐसा इसलिए कि कायस्थ अपने संगठित वोट की ताक़त इन राजनीतिक दलों को मुफ़्त में नहीं देनी होगी वक़्त का तक़ाज़ा है कि राजनीतिक हिस्सेदारी की माँग प्रबल होनी चाहिए जो सम्मान के साथ शासन सत्ता में हमारी हिस्सेदारी सुनिश्चित करें हम उसे जिताएँ और जो हमारी उपेक्षा और हमारे वोट की ताक़त का निरादर करें हम उसे हराने में कोई कोर कसर न छोड़ें।

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