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लखनऊ की तहजीब, नजाकत, नफासत और मुस्कुराहट की पहचान है जीवनदायिनी तैराकी संघ

रविन्द्र को भावी अध्यक्ष से वर्तमान अध्यक्ष का ख्वाब आसमान से पानी मे उतारना है

जीवनदायिनी तैराकी संघ अदब के शहर लखनऊ की तैराकी की विरासत की कमान संभाले जाने कितने दशकों से खामोशी के साथ गंगा जमुनी तहजीब को समेटे खामोश लहरों की तरह बहती जा रही है, गोमती और गंगा का पानी भले ही दूषित हो गया हो लेकिन इस टीम के जज़्बे और संघ में न तो कोई गंदगी दिखाई देती है और न ही इसके दशकों पुराने सदस्यों में जंग लगा है।

राम राम, दुआ सलाम से सुबहे लखनऊ की आवाज़ गुंजामय होती है तो वहीं गोमती नदी किनारे डुबकी मारकर तैराक बनाने वाले हैदर भाई आज भी पूरी तनमय्यता से नई पीढ़ी को तैराक बनाने की कमान संभाले दिखते है। सुर सूरा के संगम से तैराकी संघ में हर वक़्त खुशहाली का तराना सुनाने के लिए जिंदादिल और कोकिल कंठ की मादक आवाजों के फनकार सैनी साहब के तराने गुंजामय ऐसे होते हैं जैसे चिड़ियों की चहचहाट और कोयल की कू कू की आवाज कानों में तरंगे बजाती है।

सुंदरी के रूप में।तैराकी संघ का पानी से ऐसा नाता है कि पुराने लखनऊ के हर बाज़ी के फनकारों की त्रिमूर्ति, आरिफ, पांडे और द्विवेदी के हाथों तैराकी संघ में नया उछाल मारा है और अध्यक्ष का ही कार्यकाल बदल डाला है, 400 पार का तराना ऐसा गूंजा की 50।मीटर की दौड़ के खिलाड़ी रविन्द्र को अध्यक्ष का सुनहरा ख़्वाब ज़मीनी धरातल पर दिखाई देने लगा लेकिन असली ताजपोशी का इम्तिहान बाकी है, भाई शरद के साथ ऊंची हवा से उछाल मारकर पानी के भीतर जाकर अध्यक्ष का दायित्व निभाना है, नारों के उद्धगोश के बीच में अभिभावक का फ़र्ज़ निभाना है।
अभी तो पहला पड़ाव सिर्फ मक्खन लगा कर पार किया है, असली इम्तिहान तो मुन्ना भैय्या को टॉनिक पिलाना है और बौव्वा को भी पटाना है, मंज़िल दूर है लेकिन शैलेश जैसे शीतल स्वभाव के व्यक्तिव की नेटवर्किंग का सहारा है, अभी तो रविन्द्र को भावी अध्यक्ष से वर्तमान अध्यक्ष का ख्वाब आसमान से पानी मे उतारना है और दिल मे इन्ही अल्फाज़ो को ज़िंदा रखना है ::
जब हौसला बना लिया,ऊंची उड़ान का
फिर देखना फिजूल है, कद आसमान का

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