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जहाँ भारत में सबसे पहले उगता है सूरज, वहाँ कैसे डूब गई कॉन्ग्रेस: कभी था गढ़-अब उम्मीदवार के पड़े लाले, अरुणाचल में फिर से BJP सरकार

अरुणाचल भाजपा2024 लोकसभा परिमाणों में अभी कुछ समय शेष है। इससे पहले अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आ गए हैं। देश के सरहदी राज्य अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है और अपनी सत्ता बरकरार रखी है। कॉन्ग्रेस राज्य में खाता खोलने में भी संघर्ष करते दिखाई दी है।

अरुणाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पेमा खांडू की अगुवाई में भाजपा को 60 में से 46 सीटें हासिल हुई हैं। भाजपा की इस बार यहाँ 5 सीटें बढ़ गई हैं। 2019 में अरुणाचल प्रदेश में भाजपा को सीट मिली थी। भाजपा का वोट प्रतिशत भी राज्य में 50% के पार रहा है। भाजपा के सामने चुनाव लड़ रही कॉन्ग्रेस राज्य से लगभग समाप्त हो गई है।

कॉन्ग्रेस को राज्य में मात्र 1 सीट मिली है। अरुणाचल के मुख्यमंत्री रहे कॉन्ग्रेस नेता नबाम तुकी तक चुनाव हार गए हैं। राज्य में पार्टी को जहाँ चुनावी हार तो मिली ही है, उसका वोट प्रतिशत भी घट गया है। कॉन्ग्रेस से अधिक सीटें नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPEP) को मिली हैं, जिसने राज्य में 5 सीटें हासिल की हैं।

10 निर्विरोध जीते, एक तिहाई सीट से बनेगी भाजपा सरकार

भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में 60 में से 46 यानि एक तिहाई सीटें जीत ली हैं, उसका वोट प्रतिशत 54% रहा है। उसका यह प्रदर्शन 2019 के मुकाबले और भी बढ़िया है, तब राज्य में भाजपा ने 41 सीटें जीतीं थी और उसे 50% वोट मिले थे। भाजपा की जीत की पटकथा राज्य में पहले ही लिखी जा चुकी थी।

चुनाव के लिए मतदान से पहले ही राज्य में भाजपा की जीत चालू हो गई थी। मुख्यमंत्री पेमा खांडू समेत राज्य में भाजपा के 10 विधायक मतदान से पहले ही निर्विरोध निर्वाचित होने में सफल रहे थे। उसके बाद आए परिणामों में भाजपा ने और बड़ी जीत हासिल की।

अरुणाचल प्रदेश में भाजपा बीते कुछ सालों से लगातार मजबूत होती आई है। 2016 में भाजपा खेमे में पेमा खांडू के आने के बाद से यह राज्य की सत्ता में रही है। 2016 में राज्य की कॉन्ग्रेस सरकार छोड़ कर पेमा खांडू 43 विधायकों के साथ भाजपा के साथ आ गए थे। वह राज्य के मुख्यमंत्री, जुलाई 2016 में बने थे।

पेमा खांडू के कॉन्ग्रेस से भाजपा में आने के बाद राज्य में कॉन्ग्रेस की स्थिति लगातार बदतर होती गई है। दूसरी तरफ भाजपा की राज्य सरकार को केंद्र की मोदी सरकार का लगातार समर्थन मिला है। इसका फायदा भी चुनावों में उसे हो रहा है। भाजपा की जीत में बड़ा योगदान विकास कार्यों का भी है।

अरुणाचल में इतिहास में सबसे बुरी स्थिति में कॉन्ग्रेस

अरुणाचल प्रदेश में कॉन्ग्रेस अपने इतिहास में सबसे बुरी स्थिति में है। उसे 2024 विधानसभा चुनावों में मात्र 1 सीट मिली है। उसका वोट प्रतिशत राज्य में 5.5% ही रह गया है। जहाँ भाजपा की जीत की पटकथा राज्य में चुनाव से पहले ही लिखी जा चुकी थी, वैसे राज्य में कॉन्ग्रेस की इस फटेहाल स्थिति को भी कोई पहले ही भाँप सकता था।

राज्य में कॉन्ग्रेस का इतना बुरा हाल रहा है कि उसे सभी 60 सीटों पर लड़ने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिले। जो लोग मिले भी उन्होंने चुनाव का पर्चा ही नहीं भरा। कॉन्ग्रेस ने राज्य के विधानसभा चुनाव के लिए मात्र एक ही सूची जारी की थी। इसमें भी कॉन्ग्रेस ने मात्र 34 ही नाम दिए थे। इनमें से भी कई ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।

कॉन्ग्रेस जहाँ आज अरुणाचल प्रदेश में अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं, वहीं वह 2016 तक राज्य में सत्ता में काबिज थी। वह इससे पहले अरुणाचल की सत्ता से कभी बाहर नहीं हुई थी। राज्य में 2019 चुनावों में कॉन्ग्रेस मात्र 4 सीट ही जीत पाई थी। इनमें से भी कुछ विधायकों ने उसका साथ छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ले ली थी।

कॉन्ग्रेस का राज्य में बुरा हाल है और उसका शीर्ष नेतृत्व भी राज्य पर ध्यान नहीं दे रहा है। राज्य में पार्टी के संगठन को मजबूत करने और नए नेता तलाशने में भी कॉन्ग्रेस विफल रही है। पेमा खांडू के कॉग्रेस से 2016 में निकलने के बाद पार्टी को कई संकटों का सामना करना पड़ रहा है।

पेमा खांडू: मैन ऑफ़ द मैच

राज्य में भाजपा की इस जीत का बड़ा श्रेय मुख्यमंत्री पेमा खांडू का है। पेमा खांडू देश के कुछ सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में एक हैं। 44 वर्ष के पेमा खांडू राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू के बेटे हैं। 2011 में दोरजी खांडू की मौत के बाद वह सक्रिय राजनीति में आए थे। वह इसके बाद नबाम तुकी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे।  दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ने वाले खांडू ने 2016 में राज्य की कॉन्ग्रेस सरकार को गिरा दिया था। उनके साथ 43 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी।

खांडू खुद भी मझे हुए नेता हैं, खांडू ने जुलाई 2016 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कई बार राजनीतिक झंझावत झेले हैं और उनसे पार पाए हैं। खांडू दिसम्बर 2016 में भाजपा में शामिल हो गए थे। तबसे राज्य की कमान उनके हाथों में है। खांडू के नेतृत्व में राज्य में काफी विकास हुआ है। विशेष कर इन्फ्रा क्षेत्र में राज्य बड़ा बदलाव आया है। पेमा खांडू, गेगोंग अपांग के बाद सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति हैं। वह 7 वर्षों से अधिक से राज्य के मुख्यमंत्री हैं।

एक बैठक से बदल गई पूर्वोत्तर की राजनीति

अरुणाचल प्रदेश में जहाँ कॉन्ग्रेस सबसे खराब दौर से गुजर रही है, वहीं उसकी स्थिति पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कॉन्ग्रेस का सफाया करने में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का भी बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने एक बार बताया था कि एक बैठक ने कैसे उन्हें कॉन्ग्रेस छोड़ने और कॉन्ग्रेस का उत्तरपूर्व में सफाया करने को लेकर उद्वेलित कर दिया। यह बैठक राहुल गाँधी और कुछ कॉन्ग्रेस नेताओं के साथ हुई थी।

हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि उन्होंने सकारात्मक रूप से इस बैठक की शुरुआत की थी और कॉन्ग्रेस पार्टी के हित की बातें कर रहे थे। लेकिन, उन्होंने बताया कि पूरी बातचीत के दौरान राहुल गाँधी बैठक में कोई रुचि ही नहीं दिखा रहे थे और अपने कुत्ते के साथ खेल रहे थे। हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि उन्हें बाद में पता चला कि उसका नाम ‘पीडी’ है।

2016 के विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को असम की सत्ता से उखाड़ फेंकने में बड़ी भूमिका निभाने वाले हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया, “बैठक के दौरान वहाँ उपस्थित नेताओं के लिए चाय-कॉफी लाई गई। राहुल गाँधी के कुत्ते ने टेबल के पास जाकर उस पर रखी प्लेट से एक बिस्किट निकाल लिया और खाने लगा। फिर राहुल गाँधी मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगे। मैं ये सोच रहा था कि वो भला मुझे देख कर क्यों ऐसा कर रहे हैं?”

दरअसल, हिमंत बिस्वा सरमा इस हाथ में चाय का कप लेकर इस बात का इंतजार कर रहे थे कि राहुल गाँधी कब कुत्ते द्वारा जूठी की गई उस प्लेट के बदले दूसरी प्लेट मँगवाएँगे। उन्होंने 5 मिनट तक इंतजार किया लेकिन फिर देखा कि तरुण गोगोई और सीपी जोशी जैसे वरिष्ठ नेता उसी प्लेट से बिस्किट उठा कर खा रहे हैं। सरमा ने कहा कि वो हमेशा राहुल गाँधी से मिलने तो नहीं जाते थे, लेकिन उस दिन उन्हें एहसास हुआ कि ये सामान्य है।

उन्होंने कहा, “उसी दिन मुझे इसका एहसास हुआ कि अब बहुत हुआ, अब मैं इस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकता। लेकिन, मैं उनका धन्यवाद भी करता हूँ। मैं आज इस पद पर हूँ, तो इसका श्रेय उस बैठक को भी जाता है और इस तथ्य को भी कि राहुल गाँधी को मेरा कॉन्ग्रेस में होना पसंद ही नहीं था।” बता दें कि सरमा ने कॉन्ग्रेस में 22 साल बिताए थे।

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