नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर यूपी सरकार बैकफुट पर आ गई है. एक दिन पहले योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक-2024 विधानसभा में पास कराया था. इसके बाद विधेयक विधानपरिषद में भी पास होना था. मगर विधेयक पास नहीं हो सका ल्कि विधएयक को प्रवर समिति के पास समीक्षा के लिए भेज दिया है.
विधानसभा के सत्र के आखिरी दिन विधानमंडल सत्र के दौरान एक अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिली. दरअसल जिस नजूल संपत्ति विधेयक को योगी सरकार ने बुधवार को ध्वनिमत से विधानसभा से पास कर लिया था, एक दिन के भीतर ही योगी सरकार उससे पीछे हटती दिखी और ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. यानि विधानपरिषद में इसे पास करने की जगह उसे प्रवर समिति को भेज दिया गया.
अपनी ही सरकार के विधेयक पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विधान परिषद में ब्रेक लगा दिया. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बिना किसी चर्चा या मंथन के इसे विधेयक के तौर पर विधानसभा में लाया गया था? और सरकार इसके विरोध के स्तर को नहीं भांप पाई?
प्रवर समिति के पास भेजा विधेयक
जैसे ही केशव मौर्य ने नजूल संपत्ति विधेयक विधान परिषद में पेश किया, भूपेंद्र चौधरी एक बार फिर खड़े हुए और उन्होंने यह कहकर प्रवर समिति में भेजने की अपील की की अभी इस मुद्दे पर पूरी सहमति नहीं है इसलिए इसे प्रवर समिति को भेजा जाए. विधान परिषद के अध्यक्ष ने इस बात को मान लिया और इसे प्रवर समिति को भेज दिया.
प्रवर समिति नजूल संपत्ति विधेयक के भेजे जाने के साथ ही सरकार की जान में जान आई क्योंकि विधानसभा से पारित होने के कुछ घंटे बाद ही या पता चल गया कि यह सरकार के गले की सबसे बड़ी फांस साबित होने वाला था. अपनी ही सरकार के विधेयक को विधान परिषद में रोके जाने पर हंगामा मच गया.चर्चा ये चल पड़ी कि संगठन ने सरकार के फैसले को विधान परिषद में रोक दिया लेकिन अंदर की कहानी कुछ और थी.
बीजेपी विधायक तक कर रहे थे विधेयक की खिलाफत
जैसे ही यह विधेयक आया तभी से कई विधायक इसके खिलाफ लामबंद होने लगे थे. राजा भैया ने कमान संभाली, बीजेपी विधायक हर्ष वाजपेई सहित कई विधायकों ने इसका विरोध किया. प्रयागराज से विधायक और पूर्व मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कुछ संशोधनों की मांग की और कहा कि नजूल की जमीन के लीज को बढ़ाने का प्रावधान होना चाहिए, जिसे सरकार ने मान लिया. लेकिन 99 साल की जगह 30 साल का संशोधन तय किया गया. सरकार और विपक्ष के विधायकों ने मुद्दे पर योगी सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर ली थी.
सरकार को हो गया था खतरे का अंदाजा
बुधवार देर रात तक कई विधायकों ने मुख्यमंत्री से संपर्क साधा और दोबारा पुनर्विचार करने की मांग की. फिर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी इस विधेयक को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई कि शहर दर शहर लाखों लोग इससे प्रभावित होंगे और कई लोग जो पीढ़ियों से बसे हुए हैं उनके मकान और जमीन प्रशासन जब चाहेगा कभी भी छीन लेगा.
मुख्यमंत्री को भी लगा कि शायद जल्दबाजी में यह काम हो गया है, तो उन्होंने भी इसे ठंडे बस्ती में डालने की अनुमति दे दी. गुरुवार दोपहर में तय हो गया कि इसे विधानपरिषद से पास नहीं कराया जाएगा और इसे प्रवर समिति में भेजा जाएगा. बाकायदा इसके लिए रणनीति तय की गई. मुख्यमंत्री ने दोनों उपमुख्यमंत्री प्रदेश अध्यक्ष और संसदीय कार्य मंत्री को यह जिम्मा दिया कि कि सहमति बनने तक इस प्रवर समिति को भेजा जाए.
इस तरह तैयार हुई स्क्रिप्ट
विधानसभा में मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, संसदीय कार्य मंत्री की 15 मिनट की बैठक अलग से की गई जिसमें यह तय हुआ कि केशव मौर्य से विधान परिषद में पेश करेंगे और भूपेंद्र चौधरी इसे प्रवर समिति में भेजने की सिफारिश करेंगे. इसके बाद सभापति से प्रवर समिति को भेज देंगे जिससे यह कुछ दिनों के लिए ठंडे बस्ते में चला जाएगा.
बीजेपी भांप गई थी विपक्ष की रणनीति
सवाल यह है कि क्या विधानसभा में इसे पास करने के बाद सरकार को लगा कि यह जल्दबाजी में हो गया? और जमीन का यह मुद्दा सरकार के गले की हड्डी बन जाएगा? अगर ऐसा हुआ तो फिर केशव मौर्य ने इसे पेश क्यों किया क्या उन्हें अंधेरे में रखा गया? बहुत सारे ऐसे सवाल हैं जिस पर अब जवाब सरकार को देना होगा. लेकिन ऐसा दिखाई देता है कि नजूल संपत्ति विधेयक के मामले में सरकार फंस गई.
पहली बार सीएम बैकफुट पर आए!
भाजपा की सहयोगी अनुप्रिया पटेल ने ट्वीट कर लिखा कि इस नजूल संपत्ति विद्या को तुरंत वापस लिया जाए और उन अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए जिन्होंने इस विधेयक को तैयार किया है. साफ है अब संगठन और पार्टी के नेता बड़े फैसलों में अपना हस्तक्षेप करने लगे हैं. योगी सरकार में यह पहला मौका है जब मुख्यमंत्री के इस फैसले को ठंडे बस्ते में डाला गया है.
क्या होती है नजूल भूमि
ब्रिटिशराज में आंदोलन करने वालों की जमीनों को जब्त कर लिया गया था. अंग्रेज हुकूमत जमीनों को अपने कब्जे में ले लिया करती थी, आजादी के बाद जब्त की गई वही भूमि नजूल कही जाने लगी.आजादी के बाद नजूल जमीन पर सरकार का कब्जा हो गया. राज्य सरकारें नजूल जमीन को लीज पर देने लगी. लीज की मियाद 15 से 99 साल के बीच हो सकती है. पूरे देश में नजूल भूमि है.