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भारत के नजदीक सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिकी सैन्य अड्डा, बांग्लादेश को काट कर ईसाई मुल्क बनाना… शेख हसीना ने US के प्लान का किया पर्दाफाश

शेख हसीना ने एक संदेश में कहा- यह समाचार पाकर मेरा दिल रो रहा है कि मेरी पार्टी आवामी लीग के कई नेता मारे गए, कार्यकर्ताओं को परेशान किया जा रहा है और उनके घरों में तोड़फोड़ और आगजनी की जा रही है. अल्लाह की रहमत से मैं जल्द ही वापस लौटूंगी.

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी सरकार के पतन के पीछे अमेरिका का हाथ बताया. (PTI Photo)

साल 1937 में म्यांमार ब्रिटिश भारत से अलग हुआ था, तब भी यह द्वीप ब्रिटिश-भारत का हिस्सा था। 1947 में भारत के विभाजन के बाद सेंट मार्टिन द्वीप पाकिस्तान को मिल गया। आखिरकार 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद स्वतंत्र बांग्लादेश बना तो यह बांग्लादेश के हिस्से में आ गया। साल 1974 में बांग्लादेश और बर्मा (वर्तमान म्यांमार) इस समझौते पर पहुँचे कि सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा है।

हिंसाग्रस्त बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि सेंट मार्टिन द्वीप नहीं देने के कारण अमेरिका ने उन्हें सत्ता से बेदखल किया है। शेख हसीना ने कहा कि सेंट मार्टिन द्वीप दे देने से अमेरिका को ‘बंगाल की खाड़ी’ पर प्रभाव जमाने में मदद मिलती। इतना ही नहीं, उन्होंने बांग्लादेश के नागरिकों को कट्टरपंथियों के बहकावे में नहीं आने की भी सलाह दी।

अपने करीबी सहयोगियों के माध्यम से भेजे गए संदेश में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा, “मैंने इस्तीफा दे दिया, ताकि मुझे शवों का जुलूस न देखना पड़े। वे (विपक्षी BNP) छात्रों की लाशों पर सत्ता में आना चाहते थे, लेकिन मैंने ऐसा नहीं होने दिया। मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मैं अपने देश के लोगों से विनती करती हूँ- कृपया कट्टरपंथियों के बहकावे में न आएँ।”

फिलहाल भारत में रह रहीं शेख हसीना ने आगे कहा, “मैं सत्ता में बनी रह सकती थी अगर मैंने सेंट मार्टिन द्वीप को सौंपकर अमेरिका को बंगाल की खाड़ी पर कब्ज़ा करने दिया होता। अगर मैं देश में रहती तो और भी लोगों की जान चली जाती, और भी संसाधन नष्ट हो जाते। मैंने देश छोड़ने का बेहद कठिन फैसला लिया। मैं आपकी नेता बनी, क्योंकि आपने मुझे चुना। आप मेरी ताकत थे।”

सेंट मार्टिन द्वीपअपने पिता को याद करके वह बोलीं, “जब मुझे यह खबर मिली कि कई नेता मारे गए, कार्यकर्ताओं को परेशान किया जा रहा है, उनके घरों में आगजनी की है, तो मेरा दिल रो पड़ा। मैं सर्वशक्तिमान अल्लाह की कृपा से जल्द वापस आऊँगी। मैं बांग्लादेश के भविष्य के लिए प्रार्थना करूँगी। यह वह राष्ट्र जिसके लिए मेरे महान पिता ने संघर्ष किया। जिसके लिए मेरे पिता और परिवार ने अपनी जान दे दी।”

बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति के लिए अमेरिका पर आरोप

आरक्षण आंदोलन विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने से पहले शेख हसीना ने इस साल अप्रैल में संसद को बताया था कि अमेरिका उनके देश में शासन परिवर्तन की रणनीति पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा था, “वे (अमेरिकी) लोकतंत्र को खत्म करने और ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रहे हैं जिसका लोकतांत्रिक अस्तित्व नहीं होगा।”

सूत्रों के हवाले से ET ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि शेख हसीना के करीबी अवामी लीग के नेताओं ने ढाका में शासन परिवर्तन के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि इस साल मई महीने में ढाका का दौरा करने वाले एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक इसके लिए जिम्मेदार थे। नेताओं ने आगे आरोप लगाया कि राजनयिक हसीना पर चीन के खिलाफ पहल करने के लिए दबाव डाल रहे थे।

इन नेताओं ने बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर हास ने खालिदा जिया की कट्टरपंथी सोच वाली विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का समर्थन किया था। अमेरिकी राजूदत पीटर हास का इस साल जुलाई में कार्यकाल समाप्त हो गया है। दरअसल, अमेरिकी सरकार ने मानवाधिकारों और चुनाव प्रक्रिया को लेकर ढाका की लगातार आलोचना की थी।

सैन्य अड्डा के लिए ईसाई देश बनाने को भी तैयार अमेरिका

इस साल मई में पीएम रहते हुए शेख हसीना ने कहा था कि म्यांमार और बांग्लादेश के हिस्से काट कर एक ईसाई मुल्क बनाए जाने की साजिश है, जो कि पूर्वी तिमोर की तर्ज पर बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसे बांग्लादेश के चट्टोगाम और म्यांमार के सीमाई इलाके लेकर बनाया जाएगा, इसी के साथ बंगाल की खाड़ी में एक सैन्य ठिकाना बनाए जाने की भी योजना है।

अमेरिका का नाम लिए बिना शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि यह सब गोरी चमड़ी वाले देश के लोग करना चाहते हैं। उन्होंने बताया था कि उन्हें यह प्रस्ताव मिला था कि यदि वह इस देश को बंगाल की खाड़ी में अपना सैन्य अड्डा बनाए जाने की अनुमति दे दें तो उनका दोबारा चुन कर आना काफी आसान कर दिया जाएगा। हालाँकि, उन्होंने देश का नाम नहीं लिया।

पीएम शेख हसीना ने कहा कि वह अपने देश के हिस्सों को बेच कर सत्ता में नहीं आना चाहती थीं। उन्होंने लोगों को चेताया कि अभी आगे और भी समस्याएँ बांग्लादेश के लिए खड़ी की जाएँगी, लेकिन उनसे घबराने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने नया ईसाई मुल्क बनाने के बारे में कहा कि साजिश करने वालों की नजरें बंगाल की खाड़ी पर हैं।

दरअसल, इस इलाके में नियंत्रण के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। वह किसी भी स्थिति में अपना सैन्य अड्डा बनाना चाहता है। सेंट मार्टिन द्वीप नहीं मिलने की स्थिति में वह एक ईसाई देश का निर्माण ही कर देना चाहता है, जिसकी सुरक्षा के नाम वह वहाँ अपना सैन्य अड्डा बना सके। इसके लिए वह भारत, बांग्लादेश और म्यामांर के ईसाई वाले इलाकों को रेखांकित किया है।

द्वीप का अमेरिकी निगाह और इनकार

हालाँकि, अमेरिका ने इन सारे आरोपों से इनकार कर दिया था। 27 जून 2023 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा था कि अमेरिका ने सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण करने के बारे में कभी कोई चर्चा नहीं की है और न ही ऐसा करने का कोई इरादा है। उन्होंने कहा था कि अमेरिका बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करता है।

इससे पहले 2003 में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत मैरी एन पीटर्स ने सेंट मार्टिन द्वीप कब्जे को लेकर मीडिया में चल रही अटकलों को खारिज कर किया था। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि वॉशिंगटन सुदूर और मध्य-पूर्व के बीच कहीं अपनी सेना को तैनात करने के लिए ढाका से एक सैन्य अड्डा पट्टे पर लेने की कोशिश कर रहा है।

उन्होंने 2 जुलाई 2003 को बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज (BIISS) में ‘दक्षिण एशिया की सुरक्षा: एक अमेरिकी परिप्रेक्ष्य’ शीर्षक से एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा था, “संयुक्त राज्य अमेरिका के पास सेंट मार्टिन द्वीप, चटगाँव या बांग्लादेश में कहीं और सैन्य अड्डा बनाने की कोई योजना, आवश्यकता या कोई इच्छा नहीं है।”

सेंट मार्टिन द्वीप का इतिहास?

सेंट मार्टिन द्वीप भारत और बांग्लादेश के पास बंगाल की खाड़ी में 8 वर्ग किलोमीटर में फैला एक द्वीप है। इस द्वीप को नारिकेल जिंजीरा (नारियल द्वीप) या दारुचिनी द्वीप (दालचीनी द्वीप) के नाम से भी जाना जाता है। सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश के अधिकार क्षेत्र में है, लेकिन यह म्यांमार तट से केवल आठ किलोमीटर दूर है। वहीं, राजधानी ढाका से इसकी दूरी 537 किलोमीटर है।

सेंट मार्टिन द्वीप के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से बंगाल की खाड़ी से घिरे हैं, जबकि उत्तरी तट बांग्लादेश की ओर है। यह द्वीप कॉक्स बाज़ार जिले के एक उपजिले टेकनाफ़ से लगभग नौ किलोमीटर दूर है। सेंट मार्टिन के पूर्व में म्यांमार का रखाइन राज्य स्थित है। यह वही प्रांत है, जहाँ के मुस्लिमों की चरपंथी गुट अराकान आर्मी ने म्यामांर की सेना के खिलाफ हथियार उठा लिया था।

इस द्वीप को लेकर म्यांमार और बांग्लादेश के बीच भी खींचतान चलती रहती है। म्यामांर आर्मी के जहाज और विमान कभी-कभी इस इलाके में घुस आते हैं। इसको देखते हुए बांग्लादेश द्वीप की हिफाजत के लिए सैन्य कार्रवाई भी करता है। इतना ही नहीं, म्यामांर से नाविक और मछुआरे से इस द्वीप पर घुस आते हैं। इसको लेकर दोनों देशों बीच संंबंधों में दरार है।

लगभग 5,000 साल पहले यह स्थान मुख्य भूमि टेकनाफ़ का हिस्सा थ। बाद में यह समुद्र के नीचे डूब गया। आधुनिक सेंट मार्टिन द्वीप का दक्षिणी क्षेत्र लगभग 450 साल पहले उभरा है। द्वीप का उत्तरी भाग और शेष भाग एक सदी बाद सामने आया। 18वीं शताब्दी में लगभग 250 साल पहले अरब व्यापारियों ने इस द्वीप की खोज की थी। दक्षिण पूर्व एशिया के साथ अपने व्यापार के दौरान अरब व्यापारी इस द्वीप पर रुकते थे।

उन्होंने इसका नाम ‘जज़ीरा’ रखा था। बाद में स्थानीय लोग ‘नारिकेल जिंजीरा’ कहने लगे, जिसका अर्थ है ‘नारियल द्वीप’। साल 1900 में एक ब्रिटिश भूमि सर्वेक्षण दल ने सेंट मार्टिन द्वीप को ब्रिटिश-भारत के हिस्से के रूप में शामिल किया और इसका नाम एक ईसाई पादरी सेंट मार्टिन के नाम पर रखा। उस समय बांग्लादेश में स्थित चटगाँव के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर मार्टिन थे। यह भी होे सकता है कि यह नाम उनके नाम पर रखा गया हो।

साल 1937 में म्यांमार ब्रिटिश भारत से अलग हुआ था, तब भी यह द्वीप ब्रिटिश-भारत का हिस्सा था। 1947 में भारत के विभाजन के बाद सेंट मार्टिन द्वीप पाकिस्तान को मिल गया। आखिरकार 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद स्वतंत्र बांग्लादेश बना तो यह बांग्लादेश के हिस्से में आ गया। साल 1974 में बांग्लादेश और बर्मा (वर्तमान म्यांमार) इस समझौते पर पहुँचे कि सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा है।

हालाँकि, विवाद जारी रहा। बांग्लादेश ने मार्च 2012 में इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ ऑफ़ द सी (ITLOS) में म्यांमार के खिलाफ समुद्री सीमा विवाद जीत गया। उस समय फिर स्पष्ट हो गया कि सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश का है। हालाँकि, इसको लेकर परोक्ष रूप से समुद्री सीमांकन के नाम पर दोनों देशों के विवाद बना रहता है।

सेंट मार्टिन द्वीप का क्या है रणनीतिक महत्व?

दरअसल, हिंद महासागर एवं विश्व में चीन की बढ़ती गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका सेंट मार्टिन द्वीप पर नौसैनिक अड्डा स्थापित करना चाहता है। इसके लिए वह 1990 के दशक के अंतिम दौर से ही प्रयासरत है। हालाँकि, इसमें वह सफल नहीं हो पा रहा है। अमेरिका का यहाँ सैन्य अड्डा चीन के साथ-साथ भारत के लिए खतरनाक होगी।

दक्षिण एशिया के लिए इस द्वीप का एक व्यापक प्रभाव है। क्षेत्र में शक्ति संतुलन की जो स्थिति है, उसे देखते हुए किसी भी प्रमुख सैन्य प्रतिष्ठान से तनाव बढ़ सकता है। अमेरिका की यहाँ गतिविधि कम होने के कारण उसे हिंद महासागर एवं बंगाल की खाड़ी में भारत का पर्याप्त प्रभाव है। अगर अमेरिका का यह नौसेना अड्डा स्थापित हो जाता है तो वह चीन को नियंत्रित करने के बहाने भारत पर अपने लादने की कोशिश कर सकता है।

इसके अलावा, यहाँ अमेरिकी गतिविधि के कारण भारत की रणनीतिक एवं व्यवसायिका गतिविधियाँ भी प्रभावित हो सकती हैं। भले ही यह शॉर्ट टर्म में दिखाई ना दे, लेकिन लॉन्ग टर्म में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इसको देखते हुए भारत भी इस पक्ष में नहीं है कि अमेरिका का यहाँ सैन्य अड्डा हो।

अमेरिका का सबसे पड़ा प्रतिद्वंद्वी होने के कारण चीन तो कतई नहीं चाहता है कि बांग्लादेश का सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका का सैन्य अड्डा बने। अमेरिका एक साथ भारत, चीन, पाकिस्तान, रूस आदि अन्य अन्य देशों के साथ-साथ इस इलाके के समुद्री व्यवसायिक मार्ग पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इस द्वीप पर अपना कब्जा चाहता है।

शेख हसीना की सरकार में वित्त एवं योजना मामलों की उप-समिति के सदस्य रहे स्क्वाड्रन लीडर (सेवानिवृत्त) सदरुल अहमद खान ने इस साल जून में बताया था कि अमेरिका वास्तव में नौसैनिक अड्डे की स्थापना के लिए बांग्लादेश से सेंट-मार्टिन द्वीप हासिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। यह द्वीप रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा था कि यदि अमेरिका चीन को नियंत्रित करना चाहता है, तो उसके पास प्रशांत क्षेत्र में ऐसा करने के लिए पर्याप्त अवसर हैं, जैसे मलक्का जलडमरूमध्य को नियंत्रित करना। हालाँकि, द्विपक्षीय व्यापार को देखते हुए उसने इस तरह की कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है। चीन भारत का सबसे बड़ा द्विपक्षीय व्यापार भागीदार है।

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